
तुलसीदास की कहानी तो सबने सुनी होगी। जब तुलसीदास जी को चित्रकूट में भगवान श्री राम ने स्वयं दर्शन देकर रामचरितमानस की रचना करने को प्रेरित किया था। अब अयोध्या में भव्य मंदिर बन रहा है। साथ ही पूरी अयोध्या प्रभु श्री राम के रंग में रंगने को तैयार है, तो ऐसे अवसर पर हम आपको भगवान श्री राम और अयोध्या से जुडी एक कहानी बताने जा रहे। जब टेंट में भगवान अपने भाइयों समेत साक्षात् प्रकट हुए थे।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा की किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ के अनुसार, उस रात कड़ाके की ठंड थी। सम्पूर्ण अयोध्या में घना कोहरा छाया हुआ था। अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा में तैनात कोई दो दर्जन पुलिसवाले (पीएसी) तंबू में सो रहे थे। अंदर दो सिपाहियों की ड्यूटी बारी-बारी से लगी हुई थी।
पिछले नौ दिन से वहां रामचरितमानस का नवाहन पाठ चल रहा था। यज्ञ-हवन का दिन होने के कारण वहां इतने ज्यादा पुलिस वाले तैनात थे कि अमूमन समूचा परिसर तीन-चार पुलिसवालों के हवाले ही रहता था। रात 12 बजे से कॉन्स्टेबल अब्दुल बरकत की ड्यूटी थी। हवलदार बरकत समय से ड्यूटी पर नहीं पहुंचे थे। रात एक बजे के बाद कॉन्स्टेबल शेर सिंह उन्हें नींद से जगा ड्यूटी पर भेजते हैं। जगमग रोशनी में अष्टधातु की मूर्ति देख सिपाही बरकत भौंचक्का हो उठे। उन्हें जैसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। उन्होंने एफआईआर में बतौर गवाह पुलिस को बताया-
कोई 12 बजे के आसपास बीच वाले गुंबद के नीचे अलौकिक रोशनी हुई। रोशनी कम होने पर मैंने जो देखा उस पर विश्वास नहीं हुआ। वहाँ अपने तीन भाइयों के साथ भगवान राम की बालमूर्ति विराजमान थी।
बरकत का ये बयान राम जन्मभूमि की कार्यशाला के बाहर मोटे-मोटे हर्फों में लिखा है। इस बयान में अब्दुल बरकत कहता है –
मस्जिद के भीतर से नीली रोशनी आ रही थी जिसे देख कर मैं बेहोश हो गया।
हालांकि हेमन्त शर्मा की किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ के अनुसार, मूर्तियां बाहर से लाकर रखी गई थी। शर्मा लिखते हैं कि सुबह चार बजे के आसपास राम जन्मभूमि स्थान में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई थी। बाहर टेंट में खबर आई कि भगवान प्रकट हो गए हैं। तड़के साढ़े चार बजे के आसपास मंदिर में घंटे-घड़ियाल बजने लगे, साधु शंखनाद करने लगे और वहॉं मौजूद लोग जोर-जोर से गाने लगे,
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
ये पंक्तियॉं गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखी है, भगवान के जन्म लेने के मौके पर। कितना दिलचस्प संयोग है कि तुलसीदास ने इन पंक्तियों की रचना उसी कालखण्ड में की थी, जब अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाई गई थी।
उस समय हिंदुओं की पंचायती संस्था निर्मोही अखाड़ा ने मस्जिद से सटे राम चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा किया था। जिसे अदालत ने ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि ऐसा होने से रोज़-रोज़ सांप्रदायिक झगड़े और ख़ून-ख़राबे होंगे। अदालत ने ये भी कहा कि इतिहास में हुई ग़लती को साढ़े तीन सौ साल बाद ठीक नही किया जा सकता।
विवाद 350 साल पुराना था, लेकिन इसने जोर पकड़ा राजीव गांधी के कार्यकाल में। 1986 में शाहबानो केस में हाथ जला चुके राजीव गांधी ने अयोध्या का कार्ड इस्तेमाल किया। 1986 तक बंद पड़ी रही बाबरी मस्जिद का ताला अदालती आदेश के बाद खोला गया। इसी की प्रतिक्रिया में फ़रवरी, 1986 में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ और मुस्लिम समुदाय ने भी विश्व हिंदू परिषद की तरह आन्दोलन और संघर्ष का रास्ता अख़्तियार किया।

मुलायम सिंह ने हिन्दुओं को उकसाया
राजीव गांधी के कदम ने विश्व हिंदू परिषद का हौसला बुलंद कर दिया और मंदिर बनाने की उसकी कोशिशों ने जोर पकड़ा। 1990 में मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में मुसलमानों की सहानुभूति हासिल करने के लिए परिंदा पर नहीं मार सकता जैसे बयान देकर हिंदुओं को उकसाया। यूपी पुलिस की चलाई गोलियों से कई कारसेवक मारे गए और आंदोलन ने आग पकड़ ली।
और दिन आया 6 दिसंबर 1992 का। सूबे में बीजेपी की सरकार थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित ढ़ांचे की रक्षा का वादा किया। हजारों कारसेवकों की भीड़ इकट्ठा थी और अचानक भीड़ का रेला बीजेपी के बड़े नेताओं की मौजूदगी में विवादित परिसर में घुस गया। इसके बाद वो हुआ जिसकी उम्मीद नहीं थी।
6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराया गया
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने गिरा दिया था। इसके बाद पूरा देश सांप्रदायिक हिंसा की आग में जलने लगा था। कारसेवकों की भीड़ के आगे केंद्र सरकार और राज्य सरकार लाचार दिखी। 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को इस दिन जय श्रीराम के उद्घोष के साथ ढहा दिया था।
एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो
6 दिसंबर 1992 को देशभर से लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने पूरा का पूरा विवादित ढांचा कुछ ही घंटों में तोड़ दिया। उस समय कारसेवकों का नारा था- ‘एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो।‘

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो उस दिन कोई ऐसा नहीं था जिसने ‘जयश्रीराम’ का उद्घोष न किया हो, यहां तक की घटना स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मी भी वहां नारे लगा रहे थे। धीरे-धीरे देशभर के कारसेवकों का हुजूम अयोध्या में बढ़ रहा था, भीड़ हिंसक हो रही थी। दोपहर होते-होते भीड़ हिंसक होने लगी और विवादित ढांचे की सुरक्षा के लिए मौजूद पुलिस और कार्यकर्ताओं में झड़प तेज हो गई। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिसकर्मी भी इधर-उधर निकल गए। जयघोष के साथ मस्जिद पर लोग चढ़ गए और छैनी-हथौड़ी लेकर विवादित ढांचा तोड़ने में जुट गए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
फिलहाल मस्जिद वाले स्थान पर राम का मंदिर टेंट में बनाया गया है वहां भगवान राम की मूर्ति स्थापित है। सुबह शाम वहां पूजा, आरती की जाती है। वर्ष 2023 की रामनवमी रामलला की टेंट में आखिरी रामनवमी होगी। वहां पर कोर्ट के आदेश से भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। जल्दी ही रामलला पाने भव्य मंदिर में विराजमान होंगे।
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