
भोपाल। आपने अक्सर मां दुर्गा के भक्तों को उन्हें ‘पहाड़ वाली मैया’ (Maihar Devi Temple) के नाम से पुकारते सुना होगा।ये सच भी है, माता रानी का घर अक्सर पहाड़ों पर ही होता है। इन्हीं पहाड़ों के बीच मध्यप्रदेश के मैहर में मां दुर्गा के ही एक रूप शारदा माता का मंदिर (Maihar Devi Temple) स्थापित है। मैहर में होने के कारण लोग इन्हें ‘मैहर देवी’ के नाम से भी जानते हैं। ‘मैहर’ शब्द दो शब्दों ‘मां और हार’ से मिलकर बना है तथा इसका अर्थ है मां का हार। इस हार की कहानी जुड़ी है देवाधिदेव महादेव से। आइए जानते हैं इस हार से जुड़े रहस्य-

कहानी-
कालान्तर में भगवान शिव का विवाह सती से हुआ था। सती के पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। वे शिव के अपमान का कोई भी अवसर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। एक बार दक्ष प्रजापति एक बड़ा यज्ञ कर रहे थे। उन्होंने उस यज्ञ में न तो शिव को ही आमंत्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को।
पिता के न बुलाने पर भी सती उस यज्ञ में बिना बुलाए ही पहुंच गईं। वहां पहुँचने पर दक्ष प्रजापति ने शिव को बहुत भला-बुरा कहा और उनका अपमान किया। महादेव का यह अपमान सती से बर्दाश्त नहीं हुआऔर उन्होंने उसी हवन कुंड में स्वयं को खत्म करने की ठानी। उन्होंने अपने पिता को बहुत समझाया लेकिन दक्ष नहीं माने। अंत में सती ने अपना विकराल दुर्गा रूप धारण कर उसी रूप में हवन कुंड में स्वयं को भस्म करने बैठ गईं। जिससे कि तत्काल उनके प्राण निकल गए।
सती की मृत्यु की खबर लगते ही महादेव अत्यंत क्रोधित हुए।जिससे तीनों लोकों में तांडव मच गया। देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य आदि विचलित हो उठे। क्रोध में शिवशंकर ने अपनी जटा के एक बाल से वीरभद्र को प्रकट किया। तत्पश्चात वीरभद्र ने दक्ष का वध कर दिया।
Highlights
वीरभद्र ने दक्ष का वध तो कर दिया लेकिन भगवान शिव सती के शव को देख अत्यंत क्रोधित हो रहे थे, जिससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।महादेव का क्रोध इतना ज्यादा बढ़ गया कि वे क्रोध में सारी श्रृष्टि ही समाप्त करने लगे थे। ऐसे में समस्त देवी-देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। भगवान विष्णु ने महादेव के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को इक्यावन टुकड़ों में काट दिया। सती के शव के 51 टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे, वहां इक्यावन शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इसी के साथ ही जिस पर्वत पर मां के गले से हार गिरा, उस जगह का नाम मैहर (Maihar Devi Temple) पड़ा।

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Maihar Devi Temple: 522 ईसा पूर्व स्थापित हुआ था मंदिर
वैसे तो मंदिर का इतिहास अपने-आप में कई कहानियां समेटे हुए है। शास्त्रों के मुताबिक लेकिन वर्तमान मंदिर (Maihar Devi Temple) का निर्माण पिरामिडाकार त्रिकुट पर्वत पर 522 ईसा पूर्व नृपल देव ने कराया था।तभी से त्रिकुट पर्वत पर पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ। तत्पश्चात सन 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने मंदिर परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था। विन्ध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर (Maihar Devi Temple) के बारे में यह मान्यता है कि मां शारदा की पोर्ट पूजा आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा की गई थी।
शिलालेख की लिपि अभी भी है रहस्य
मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्मग्रंथ ‘महेन्द्र’ में मिलता है। इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है। प्रसिद्ध इतिहासकार ए० कनिंघम द्वारा मां शारदा मंदिर (Maihar Devi Temple) का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया गया है। मैहर स्थित जनसूचना केन्द्र के प्रभारी पण्डित मोहनलाल द्विवेदी शिलालेख के हवाले से बताते हैं कि कनिंघम के प्रतीत होने वाले 9वीं व 10 वीं सदी के शिलालेख की लिपि न पढ़े जा सकने के कारण अभी भी रहस्य बने हुए हैं।
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