
Ramnagar Ramleela: कहते हैं कि भगवान कब किसे कहां बुला लें या कब किस पर अपनी कृपा दृष्टि बना दें, यह कोई नहीं जानता। सनातन धर्म में मान्यता है कि बच्चे भगवान का स्वरुप होते हैं। काशी में चल रही रामलीला में भक्त पात्रों में भगवान को देखते हैं। ऐसी कई किवदंतियां हैं, जब सैकड़ों साल से चली आ रही रामलीला में भक्तों ने अपने भगवान के दर्शन किए हों, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिसे आप भगवान राम के रूप में देख रहे हैं, उसे साक्षात् भगवान ने अपना किरदार निभाने के लिए चुना हो।
जी हां, यह सच है। काशी में विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला (Ramleela) में राम का किरदार निभाने वाले 12 वर्षीय दीपक पांडेय को किसी और ने नहीं, बल्कि भगवान श्री राम ने ही चुना है। आपको शायद इसे पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन ये सच है। आइए जानते हैं चंदौली के रहने वाले दीपक पांडेय के बारे में –
रामलीला (Ramleela) देखने आए एक 12 वर्षीय बच्चे ने अपने पिता से पूछा कि पापा राम कैसे बनते हैं? पिता को इसकी जानकारी नहीं थी, उन्होंने उससे इंकार कर दिया। लेकिन उस बालक ने हार नहीं मानी। खुद ही इसके बारे में पता किया और निकल पड़ा सिलेक्शन के लिए। और सेलेक्ट भी हुआ। इसके बाद उसने घर आकर अपने पिता को यह कहानी सुनाई।
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यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल 221 वर्ष पुरानी रामनगर की रामलीला (Ramleela) में इस साल राम की भूमिका चंदौली के नियामताबाद विकासखंड के छोटे से गांव रंगीली के निवासी नरेंद्र पांडेय के इकलौते पुत्र दीपक पांडेय निभा रहे हैं। पिता नरेंद्र पांडेय चंद्ररखा में एक स्कूल बस चलाते हैं। दीपक उसी स्कूल में सातवीं का छात्र है। दीपक की मां आरती और दो छोटी बहनें चांदनी और सुषमा हैं। दीपक के पिता ने बताया कि हमारे पूर्वज रामलीला (Ramleela) के नेमी थे। मेरे पिताजी ने एक दिन की भी लीला नहीं छोड़ी। उनके बाद हमें जब कभी समय मिलता, रामलीला चला जाता था।

2022 में पुत्र दीपक को भी रामलीला (Ramleela) दिखाने ले गया था। लेकिन, एक ही दिन में रामनगर की रामलीला उसके जेहन में ऐसी बसी कि फिर उसको राम बनने की धुन सवार हो गई। मेले में ही हठ करने लगा कि मुझे पता करना है कि राम कैसे बनते हैं। मैंने खिलौने दिलाकर उसके फुसला दिया लेकिन घर आने के बाद भी दिन-रात वह उसी के बारे में सोचता रहा। खुद ही जानकारी की और परीक्षा देने गया। जब उसने आकर बताया कि मेरा चयन राम के लिए हो गया है तो हमें एकबारगी विश्वास नहीं हुआ, जब किले में गए और प्रशिक्षण शुरू हुआ तो लगा जैसे भगवान की कृपा हो गई।
भगवान राम ने सुनी बच्चे के दिल की आवाज
नरेंद्र पांडेय ने बताया कि हमारे पूर्वजों के कई जन्मों के पुण्य फलीभूत हुए हैं। बेटे ने मेले कहा था उसकी हृदय की आवाज थी और शायद भगवान राम ने बच्चे के हृदय की बात सुनी नहीं तो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस राम को देखने के लिए हमारी पीढ़ियां कई किलोमीटर पैदल जाया करती थी, वह राम हमारे ही पर में होगे। बताया कि संस्कारवश दौरक ने पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया था इस वजह से उसकी संस्कृत अच्छी थी। स्वयं परीक्षा में यहाँ उसके काम आया।

रामलीला (Ramleela) के पात्रों के प्रशिक्षण के दौरान अनुशासन और रामादि की भावना और गौरव का प्रारंभ हो जाता है। पंच स्वरूपों को प्रशिक्षण के दौरान उनके नाम राम, सीता, भरत, लक्ष्मण, समुन ही पुकारा जाता है। पात्रों में परस्पर वैसा व्यवहार भी प्रारंभ हो जाता है। श्रीराम के उठ खड़े होने पर अन्य सभी पात्र उठ खड़े होते है संवाद समाप्त होने पर राम के बैठने के बाद सभी पात्र उनको प्रणाम कर वरिष्ठता के क्रम में बैठते हैं।

Ramleela: किले में ही बेटे के साथ एक महीने से रह रही मां
जानकारी के मुताबिक, रामलीला (Ramleela) के मुख्य पात्र राम, सीता, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न में हर साल परिवर्तन किया जाता है। चुनाव में सर्वप्रथम वरीयता उनकी आवाज को दी जाती है। साथ ही उनका उपनयन सरकार होना अनिवार्य है। उनकी कमनीयता, रंग रूप का भी ध्यान रखा जाता है। चयन की प्रक्रिया दो चरणों में होती है अंतिम चरण के पांच नामों पर कुंवर अनंत नारायण की स्वीकृति मिलती है। दीपक के साथ उनकी मां आरती भी एक महीने से किले में रह यहाँ है। पिता नरेंद्र ने बताया कि वे रोजाना लीला में जाते हैं। आरती के बाद पुत्र से मिलकर घर चले आते हैं।
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