
वाराणसी। हमारे देश की संस्कृति व परंपराएं लोगों को जोड़ कर रखती है, तभी तो कहते है कि विविधता में एकता है। इसी कारण विदेशियों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं की ओर आकृषित होते देखा जाता है। रूस के एंटोन एंड्रीव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जो हिंदू धर्म (Sanatan Dharma) से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने वाराणसी के शिवाला स्थित वाग्योग चेतना पीठम में गुरुवार को आयोजित अनुष्ठान के दौरान तंत्र दीक्षा ग्रहण की और अनंतानंद नाथ बन गए।
तंत्र दीक्षा के साथ ही अनंतानंद को गुरु मंत्र और गोत्र कश्यप मिला। इसके साथ ही उनकी सनातन धर्म (Sanatan Dharma) की यात्रा भी शुरू हो गई। तंत्र दीक्षा की शुरुआत आशापति शास्त्री के आचार्यत्व में पं. सत्यम शास्त्री और पं. विनीत शास्त्री ने की। विधि-विधान व दीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अनंतानंद नाथ ने बताया कि वे परमात्मा की शरण में जाने और उच्च साधना के लिए मंत्र की दीक्षा ली है।

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रूस और युक्रेन युद्ध से थे परेशान
वर्तमान में वह रूस और यूक्रेन के युद्ध से काफी व्यथित हैं और इसकी शांति के लिए मां तारा से प्रार्थना करेंगे। एंटोन महामहोपाध्याय आचार्य वागीश शास्त्री के संपर्क में 2015 में आए थे लेकिन समय नहीं होने के कारण साधना पूरी नहीं कर सके थे। उन्होंने आशापति के सानिध्य में कुंडलिनी साधना की संपूर्ण 10 कक्षाएं पूर्ण कीं।
यह सनानत धर्म की है शक्ति
एंटोन एंड्रिव ने बताया कि वह रूस में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। उन्हें रूस में बनारस के वागीश शास्त्री के बारे में पता चला और कुंडलिनी जागृत करने की इच्छा हुई। कुछ कक्षाएं भी लीं लेकिन पूरा नहीं कर पाए। कई व्यवधान के बाद 2022 में गुरु वागीश शास्त्री का निधन हो गया था। 10 दिनों के ध्यान के दौरान मुझे जो अनुभूति हुई है उसको शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। यह सनातन धर्म (Sanatan Dharma) और काशी की मिट्टी की शक्ति है, जिसने मेरी दीक्षा को पूर्ण किया।

रूस और युक्रेन से दीक्षा लेने वालों की संख्या ज्यादा
पंडित आशापति शास्त्री ने बताया कि दुनिया में यूक्रेन और रूस से दीक्षा लेने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। गुरु वागीश शास्त्री और मेरे द्वारा अब तक 80 देशों के 15 हजार विदेशी शिष्यों को दीक्षा दी गई है। दीक्षा लेने की परंपरा 1980 में शुरू की गई थी। तब से लगातार यह काम चल रहा है। जो व्यक्ति पात्र है, उसी को दीक्षा दी जाती है।
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