
Bihar Politics: बिहार एक ऐसा राज्य, जहां वर्तमान में राजनीति की दशा भले ही न बदले, लेकिन दिशा ज़रूर बदलती रहती है। बिहार में नेताओं के बयानबाजी से बवाल मचा हुआ है। ये भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां सत्ता पक्ष बिहार की दशा सुधारने से ज्यादा राजसी सुख भोगने और खुद को कुर्सी पर बैठे हुए देखना चाहते हैं।
अभी RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झा के ठाकुर वाले बयान पर विवाद (Bihar Politics) मचा ही हुआ था कि RJD के ही एक और नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने महिलाओं पर विवादित बयान देकर माहौल गरम कर दिया। अब्दुल बारी सिद्दकी के महिलाओं पर शर्मनाक बयान से बिहार की राजनीति में सियासी हलचल मची हुई है। अब्दुल बारी सिद्दीकी ने महिला आरक्षण पर बात करते हुए कहा कि यदि ऐसा हुआ तो, लिपस्टिक वाली सारा हक ले जाएंगी’। बिहार में बयानों का नफा-नुकसान पहले भी काफी हुआ है। अब इन बयानों के बाद सवाल उठता है कि RJD ‘बिना बवाल’ ‘कैसा बिहार’ बनाना चाहता है?
Bihar Politics: सबसे पहले शरद यादव ने किया था महिला आरक्षण का विरोध
महिला आरक्षण लाने की कवायद सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने वर्ष 1996 में शुरू की थी। तब समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शरद यादव (Bihar Politics) ने इसका विरोध किया था। उन्होंने इसका विरोध करते हुए कहा था ‘क्या परकटी महिलाओं को सदन में लेकर आना चाहते हैं?’ वहीं जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने 27 वर्ष बाद महिला आरक्षण बिल को संसद के दोनों सदनों से पास कर लिया, तो आरजेडी से संबंध रखने वाले बिहार के एक सीनियर लीडर अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भी शरद यादव जैसा ही विवादित बयान देकर बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दिया।
शरद की राह पर चले सिद्दीकी
सिद्दीकी ने कहा कि महिला आरक्षण के नाम पर बाब कट और क्रीम लिपस्टिक वाली महिलाएं आपके घर की महिलाओं का हक मार लेंगी। उनका इरादा पिछड़े और ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग करने का था, लेकिन आवेश में आकर उन्होंने शरद की तरह ही महिलाओं का अपमान कर दिया।
‘ठाकुर का कुआं’ पर छिड़ी जुबानी जंग
दूसरी ओर बिहार (Bihar Politics) में ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ पर भी जुबानी जंग छिड़ी हुई है। जिसे लेकर भी बिहार के राजनीति में कोहराम मचा हुआ है। राज्यसभा में पढ़ी RJD सांसद मनोज झा की कविता पर बिहार के राजनीति में बवाल मचा हुआ है। ओम प्रकाश वाल्मीकि द्वारा लगभग साढ़े चार दशक पहले लिखी इस कविता के पाठ पर ठाकुर समाज भड़का हुआ है। ठाकुरों को इसमें अपना अपना अपमान दिख रहा है। इसके बाद मनोज झा को राजपूत नेताओं से गर्दन काटने और जीभ खींच लेने जैसी धमकियां भी मिल रही हैं। धमकियां भी गुमनाम नहीं, बल्कि पार्टी लाइन तोड़कर हर दल के राजपूत नेता सामने आ गए हैं।
JDU व भाजपा के राजपूत नेता आमने-सामने
इसमें आश्चर्य करने वाली बात यह है कि मनोज झा की बिरादरी से आने वाले जदयू नेता और बिहार सरकार (Bihar Politics) के मंत्री संजय झा भी राजपूत नेताओं के समर्थन में आ गए हैं। खुद को राजपूत का नेता बताने वाले आनंद मोहन फिलहाल अभी किसी पार्टी में नहीं है। लेकिन उनकी रिहाई राजद और जेडीयू की गठबंधन वाली सरकार की कृपा से सुनिश्चित हो गई। यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही वे किसी पार्टी में ना हो लेकिन उन पर राजद की मेहरबानी उनके लिए आगे पार्टी के रास्ते खोल देगी। बिहार की राजनीति में आनंद मोहन को राजद से अलग देखना भूल होगी।
सबसे पहले आनंद मोहन के परिवार ने ही मनोज झा द्वारा पढ़ी कविता पर विवाद (Bihar Politics) की शुरुआत की थी। आरजेडी में उनके विधायक बेटे चेतन आनंद ने पहला हमला बोला, तो शाम होते होते आनंद मोहन ने मैदान संभाल लिया। उन्होंने मनोज झा को जीभ खींच लेने की धमकी दी। इसके बाद जेडीयू और भाजपा के राजपूत नेता भी सामने आने लगे।
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Bihar Politics: 2015 में दिखा था बयानबाजी के अर्थ का अनर्थ
प्रसंगवश यह उल्लेख आवश्यक है कि ऐसे बयानों का चुनाव (Bihar Politics) में क्या असर होता है। यह 2015 में सभी देख चुके हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उस वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि समय-समय पर आरक्षण की समीक्षा होती रहनी चाहिए। उस समय राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने इस बयान को आरक्षण विरोधी बताया था।
उन्होंने कहा था कि भाजपा आरएसएस के लोग आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं। इसका फल भी महागठबंधन को मिला और बिहार में एनडीए को मात खानी पड़ी। अभी बिहार में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में नेताओं के यह बयान क्या गुल खिलाएंगे, यह देखना बाकी रह गया है।

वर्षों से ब्राह्मण और राजपूतों के अच्छे संबंधों में अब पड़ने लगी दरार
बिहार में ठाकुर ब्राह्मणों के बीच शुरू से ही अच्छे संबंध रहे हैं। बावजूद इसके मनोज झा के सदन में काव्य पाठ से दोनों समाज की आपस में ठन गई है। हालांकि राजपूत की तरह ब्राह्मण खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन इस बात का मलाल तो है ही कि एक ब्राह्मण नेता की जीभ और गर्दन काटने की खुलेआम चेतावनी दी जा रही है, यह अभी सबको पता है कि राजपूत और ब्राह्मण वोट बीजेपी को मिलते रहे हैं। बीजेपी का आरोप है कि राजद जानबूझकर इन दोनों जातियों में मतभेद पैदा करना चाहती है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका क्या असर पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी।
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