
Independence Day: साहित्य ने वर्षों तक समाज को जगाने का काम किया है। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम उसी साहित्य और उन्हें लिखने वाले महान साहित्यकारों के बारे में बात करेंगे। जब हमारा देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब उन्हीं साहित्यकारों ने भी अपने साहित्य की बदौलत लोगों के दिलों में राष्ट्रप्रेम जगाने और अंग्रेजों को भगाने का काम किया। यूं तो इस धरती पर ऐसा कोई मनुष्य नहीं, जिसे अपनि मातृभूमि और राष्ट्र से प्रेम ना हो। रामायण में भगवन श्री राम ने कहा है-
अपिस्वर्णमयीलंकानमेलक्ष्मणरोचते।
जननीजन्मभूमिश्चस्वर्गादपिगरीयसी।
सभी देशभक्तों को नमन करने के लिए इन पंक्तियों से बेहतर क्या हो सकता है:
जो उतरे थे मुर्दा लाशों को लड़ने का पाठ पढ़ाने,
जो आए थे आजादी के मतवालों का जोश बढ़ाने,
मैं आया हूँ उन राजद्रोही चरणों पर फूल चढ़ाने।
स्वतंत्रता (Independence Day) के इस यज्ञ में सभी देश प्रेमियों ने अपने योगदानों की आहुति दी। समाज के सभी वर्ग ने अपने अपने स्तर से आजादी की लड़ाई में बलिदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम में सभी कवियों व लेखकों ने अपना योगदान दिया। जब हमारे देश में स्वतंत्रता आंदोलन का यज्ञ आरंभ हुआ तो लगभग हर प्रांत के, हर भाषा के साहित्यकारों कवियों और लेखकों ने अपनी मूर्धन्य लेखनी द्वारा देश के व अपने क्षेत्र के लोगों से अपनी-अपनी आहुतियां डालने का आवाहन किया।
सभी ने देश की जनता को जगाने का काम किया। सहित्यकारों की बात की जाय, तो उन्होंने साहित्य के मध्यम से स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद भी कई बिन्दुओं पर अपनी लेखनी में क्रांति की लौ जलाए रखी।
संस्कृत समेत कई भाषाओँ के रचनाकारों ने अपनी लेखनी का जरिए अपने राष्ट्र के नवजवानों को जागरुक करने का कार्य किया। इन्होंने अपने दृश्य-श्रव्य काव्य के माध्यम से जनमानस के हृदय में राष्ट्रीय भावनाएँ उत्पन्न की। परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को स्वतन्त्र कराने के लिए इन कवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा लोगों के मस्तिष्क को झकझोर दिया। इस राष्ट्र को स्वतन्त्र कराने में इन सभी भाषा भाषी लेखकों का महनीय योगदान रहा है। आज इन्हीं लेखकों के बारे में हम आपको बताने वाले हैं।

रामनाथ तर्करत्न
रामनाथ तर्करत्न का जन्म सन 1840 ई० के आस-पास बंगाल के शांतिपुर नमक गांव में हुआ था। इन्होंने अपने काव्य में लिखा है –
हिनस्तिशौर्यंसुरुचिंरुणद्धिभिनत्तिचित्तंविवृणोतिवित्तम्।
पिनष्टिंनीतिञ्चयुनक्तिदास्यंहापारतन्त्र्यंनिरयंव्यनक्ति।।
अर्थात पराधीनता व्यक्ति की वीरता को नष्ट कर देती है। दासता व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है।
कवि ने इसके बाद भी लिखा है कि पराधीनता से अच्छा है कि व्यक्ति की मृत्यु हो जाय।
असुव्यपायेष्वपिनोजहीम: स्वतन्त्रतामन्त्रमतन्द्रिणोऽद्य।
उपागतायांपरतन्त्रतायांयशोधनानांशरणंहिमृत्यु;।।
पंडिता क्षमाराव
पंडिता क्षमाराव संस्कृत के अलावा अंग्रेजी और मराठी में भी अपनी रचनाएं किया करती थी। इनकी राष्ट्रभक्ति प्राक तीन रचनाएं हैं – सत्याग्रहगीता, उत्तरसत्याग्रहगीता और स्वराज्यविजय:।
सत्याग्रह गीता (महाकाव्य) में उन्होंने 1931-1944 ईस्वी तक की घटनाओं का वर्णन किया है। यह तीन भागों में बंटा हुआ है। इसमें अनुष्टुप छन्द का प्रयोग हुआ है। कवयित्री लिखती हैं कि मैं भले ही मन्दबुद्धि की हूँ, लेकिन मैं अपने राष्ट्र से प्रेम करती हूँ और इसका यशोगान करती हूँ।
तथापिदेशभक्त्याऽहंजाताऽस्मिविवशीकृता।
अतएवास्मितद्गातुमुद्यतामन्दधीरपि।।
स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है, जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्म सम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के विषय में कवि लिखता है –
संसार नमन करता जिसको ऐसा कर्मठ युग नेता था,
अपना सुभाष जग का सुभाष भारत का सच्चा नेता था
सीमा प्रांत की धरती का रत्न बलिदानी हरकिशन 9 जून 1931 को मियाँवाली जेल में (वर्तमान में पाकिस्तान) फाँसी पर लटकाया गया। उनके विषय में कवि ने क्या सुंदर लिखा है-
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
हमको भी माँ-बाप ने पाला था दु:ख सह कर।
प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ उपन्यास हो या भारतेंदु हरिश्चंद्र का ‘भारत-दर्शन’ नाटक या जयशंकर प्रसाद का ‘चंद्रगुप्त’- सभी में देशप्रेम (Independence Day) की भावना कूट-कूट कर भरी है। इसके अलावा वीर सावरकर का ‘1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ हो, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की ‘गीता रहस्य’ या शरद बाबू का उपन्यास ‘पथ के दावेदार’ ये सभी किताबें ऐसी हैं, जो लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने में कारगर साबित हुईं।
भारत की राष्ट्रीयता का आधार राजनीतिक एकता न होकर सांस्कृतिक एकता रही है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जिस आधुनिक युग का प्रारंभ किया, उसकी जड़ें स्वाधीनता आंदोलन (Independence Day) में ही थीं। भारतेंदु और भारतेंदु मंडल के साहित्यकारों ने युग चेतना को पद्य और गद्य दोनों में अभिव्यक्ति दी। इसके साथ ही इन साहित्यकारों ने स्वाधीनता संग्राम और सेनानियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए भारत के स्वर्णिम अतीत में लोगों की आस्था जगाने का प्रयास किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी के पक्ष में अलख जगा रहे थे: निज भाषा उन्नति अहै सब भाषा को मूल। वहीं दूसरी ओर उन्होंने अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों का खुलकर विरोध किया। उन्हें इस बात का क्षोभ था कि अंग्रेज यहां से सारी संपत्ति लूटकर विदेश ले जा रहे थे। इस लूटपाट और भारत की बदहाली पर उन्होंने काफी कुछ लिखा।

‘अंधेर नगरी चौपट राजा‘ नामक व्यंग्य के माध्यम से भारतेंदु ने तत्कालीन राजाओं की निरंकुशता और उनकी मूढ़ता का सटीक वर्णन किया है। अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है:-
‘भीतर भीतर सब रस चुसै, हँसी-हँसी के तन मन धन मुसै।
जाहिर बातिन में अति तेज, क्यों सखि साजन, न सखि अंगरेज।’
द्विवेदी युग के साहित्यकारों ने भी स्वाधीनता संग्राम में अपनी लेखनी द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, श्रीधर पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी आदि इन कवियों ने आम जनता में राष्ट्रप्रेम (Independence Day) की भावना जगाने तथा उन्हें स्वाधीनता आंदोलन का हिस्सा बनने हेतु प्रेरित किया।
मैथिलीशरण गुप्त ने भारतवासियों को स्वर्णिम अतीत की याद दिलाते हुए वर्तमान और भविष्य को सुधारने की बात की:-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत–भारती‘ में उन्होंने लिखा-
‘हम क्या थे, क्या हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारे मिल कर ये समस्याएँ सभी।’
‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।’
तो वहीं माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ लिखकर जनमानस में सेनानियों के प्रति सम्मान (Independence Day) के भाव जागृत किए। सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झांसी की रानी’ कविता ने अंग्रेजों को ललकारने का काम किया:-
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी की रानी थी।’
पं० श्याम नारायण पांडेय ने महाराणा प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ के लिए ‘हल्दी घाटी’ में लिखा:-
‘रण बीच चौकड़ी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था
गिरता न कभी चेतक तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था।’
जयशंकर प्रसाद ने ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’, सुमित्रानंदन पंत ने ‘ज्योति भूमि, जय भारत देश।’ लिखा। इकबाल ने ‘सारे जहाँ से अच्छा हिदुस्तां हमारा’ मुंशी प्रेमचंद भी स्वतंत्रता आंदोलन (Independence Day) में अपनी भागीदारी निभाने में पीछे नहीं रहे और मृतप्राय: भारतीय जनमानस में भी उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए एक नई ताकत व एक नई ऊर्जा (Independence Day) का संचार किया। आंदोलन में विस्फोटक का काम करती रही। उन्होंने लिखा:-
‘मैं विद्रोही हूँ जग में विद्रोह कराने आया हूँ, क्रांति-क्रांति का सरल सुनहरा राग सुनाने आया हूँ।
प्रेमचंद की कहानियों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ (Independence Day) एक तीव्र विरोध तो दिखा ही, इसके अलावा दबी-कुचली शोषित व अफसरशाही के बोझ से दबी जनता के मन में कर्तव्य-बोध का एक ऐसा बीज अंकुरित हुआ जिसने सबको आंदोलित (Independence Day) कर दिया।न जाने कितनी रचनाओं पर रोक लगा दी गई और उन्हें जब्त कर लिया गया।कई रचनाओं को जला दिया गया, परंतु इन सब बातों की परवाह न करते हुए वे अनवरत लिखते रहे। उन पर कई तरह के दबाव भी डाले गए और नवाब राय की स्वीकृति पर उन्हें डराया-धमकाया भी गया।

Independence Day: दमनकारी नीतियों के आगे प्रेमचंद ने कभी हथियार नहीं डाले
लेकिन इन कोशिशों व दमनकारी नीतियों के आगे प्रेमचंद ने कभी हथियार नहीं डाले। उनकी रचना ‘सोजे वतन’ पर अंग्रेज अफसरों ने कड़ी आपत्ति जताई और उन्हें अंग्रेजी खुफिया विभाग ने पूछताछ के लिए तलब किया। अंग्रेजी शासन का खुफिया विभाग अंत तक उनके पीछे लगा रहा। परंतु प्रेमचंद की लेखनी रुकी नहीं, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने ‘विप्लवगान‘ में लिखा:-
‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए
एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर को जाए
नाश! नाश! हाँ महानाश!!! की
प्रलयंकारी आँख खुल जाए।’
बंकिमचंद्र चटर्जी का देशप्रेम (Independence Day) से ओत-प्रोत ‘वंदे मातरम्’ गीत:-‘
वंदे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयज शीतलां
शस्य श्यामलां मातरम्! वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम् … वंदे मातरम्…’
निराला ने लिखा – ‘भारती! जय विजय करे। स्वर्ग सस्य कमल धरे..’ कामता प्रसाद गुप्त ने ‘प्राण क्या हैं देश के लिए। देश खोकर जो जिए तो क्या जिए।।’ लिखा। कविवर जयशंकर प्रसाद की कलम भी बोल उठी-
‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।’
कविवर रामधारी सिंह दिनकर भी कहाँ खामोश रहने वाले थे। मातृभूमि के लिए हँसते-हँसते प्राणोत्सर्ग करने वाले बहादुर वीरों व रणबाँकुरों की शान में उन्होंने कहा:-
‘कलम आज उनकी जय बोल जला अस्थियाँ बारी-बारी
छिटकाई जिसने चिंगारी जो चढ़ गए पुण्य-वेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल।’
हिन्दी के अलावा बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तमिल व अन्य भाषाओं में भी माइकेल मधुसूदन, नर्मद, चिपलुन ठाकर, भारती आदि कवियों व साहित्यकारों ने राष्ट्रप्रेम की भावनाएं जागृत कीं और जनमानस को आंदोलित किया। कवि गोपालदास नीरज का राष्ट्रप्रेम (Independence Day) भी उनकी रचनाओं में साफ परिलक्षित होता है। जुल्मो-सितम के आगे घुटने न टेकने की प्रेरणा उनकी रचनाओं से प्राप्त होती रही। उन्होंने लोगों को उत्साहित करते हुए लिखा है-
‘देखना है जुल्म की रफ्तार बढ़ती है कहाँ तक
देखना है बम की बौछार है कहाँ तक।’
आजादी के बाद के हालातों को स्पष्ट करते हुए नीरज ने कई रचनाएं लिखी हैं।
‘चंद मछेरों ने मिल कर, सागर की संपदा चुरा ली
काँटों ने माली से मिल कर, फूलों की कुर्की करवा ली
खुशियों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी हुई
अनेकों आई आजादी, मगर उजाला बंदी है।‘
इसी श्रृंखला में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, रामनरेश त्रिपाठी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, राधाचरण गोस्वामी, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृष्ण दास, श्रीधर पाठक, माधव प्रसाद शुक्ल, नाथूराम शर्मा शंकर, गयाप्रसाद शुक्ल स्नेही (त्रिशूल), सियाराम शरण गुप्त, अज्ञेय जैसे अगणित कवि थे।
इसी प्रकार राधाकृष्ण दास, बद्रीनारायण चौधरी, प्रताप नारायण मिश्रा, पंडित अंबिका दत्त व्यास, बाबू रामकिशन वर्मा, ठाकुर जगमोहन सिंह, रामनरेश त्रिपाठी, सुभद्रा कुमारी चौहान एवं बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जैसे प्रबुद्ध रचनाकारों ने राष्ट्रीयता (Independence Day) एवं देशप्रेम की ऐसी गंगा बहाई जिसके तीव्र वेग से जहाँ विदेशी हुक्मरानों की नींव हिलने लगी, वहीं नौजवानों के अंतस में अपनी पवित्र मातृभूमि (Independence Day) के प्यार का जज्बा गहराता चला गया।

हिंदी अखबार का प्रकाशन पंडित युगलकिशोर शुक्ल के संपादन में कलकत्ता से हुआ। कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादन में निकले प्रताप, राष्ट्रीय कवि माखनलाल चतुर्वेदी के संपादन में निकले कर्मवीर, कालांकांकर से राजा रामपाल सिंह के द्वारा निकाले गए हिंदोस्थान ने राष्ट्रवादियों (Independence Day) का मिल कर आहवान किया। बंगदूत, अमृत बाजार पत्रिका, केसरी, हिेंदू, पायनियर, मराठा, इंडियन मिरर, हरिजन आदि ब्रिटिश हुकूमत की गलत नीतियों (Independence Day) की खुल कर आलोचना करते थे।
आज के समय में भी वैसी ही धारदार रचनाओं की जरूरत है, जो जन-जन को आंदोलित (Independence Day) कर सके, उनमें जागृति ला सके। भ्रष्टाचार व अराजकता को दूर कर हर हृदय में भारतीय गौरव-बोध एवं मानवीय-मूल्यों का संचार कर सके। आज के हमारे कवियों और साहित्यकारों का यह महती दायित्व बनता है। यहाँ दरबार कवि ढूँढता है, कवि दरबारों को नहीं ढूँढ़ते। यहाँ पर कवि किसी मोह के वशीभूत होकर नहीं लिखते।
यहाँ तो राष्ट्र जागरण (Independence Day) के लिए लिखा जाता है, आज हमारा देश आजाद हो चुका है, पर आज भी हम देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों और देश के गद्दारों से त्रस्त हैं। हमारी महान परंपराओं और संस्कृति का पतन और दमन करने का प्रयास किया जा रहा है। आज भी देश में जयचंदों की कमी नहीं है।
अधिकांश नेता केवल अपने स्वार्थ के लिए कुर्सी पाना चाहते हैं। ऐसे में हमें फिर से ऐसे साहित्यकारों व लेखकों की जरूरत है, जो अपनी लेखनी की धार से इन भ्रष्टाचारियों, स्वार्थी, सत्ता लोलुप व देश के गद्दारों के विरुद्ध लिखकर एक जन क्रांति (Independence Day) उत्पन्न कर सकें, जिसे पढ़कर व सुनकर फिर से हमारे देश मे सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और बिस्मिल जैसे देश प्रेमी (Independence Day) पैदा हों।
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