
Nag Nathaiya Leela
Nag Nathaiya Leela: तुलसी घाट की सीढियां, डमरूवादकों की ध्वनि, भजन कीर्तन करते श्रद्धालु, पलभर के लिए काशी आज वृंदावन बन गई। घाट का वह मनोरम दृश्य, जब जगत के तारणहार कन्हैया एक गेंद के लिए कदंब की डाल से यमुना में छलांग लगा देते हैं। वही यमुना जो कल तक गोकुलवासियों के लिए विषमय हो गई थी। उसी यमुना को कालिया नाग के विष से मुक्त कराने आज जगत के पालनहार यमुना बनी गंगा की गहराईयों में कूद पड़े हैं। काशी के तुलसीघाट पर रचित इस लीला का दृश्य हर काशीवासी के आंखों व मन में बस गया हो।

आज काशीवासी वृंदावनवासी बने अपने कन्हैया को निहारने में लगे हुए थे। सबको इंतजार था, अपने इस कन्हैया का, जब वह कालिया के फन पर तांडव करते हुए यमुना के जल से बाहर निकलें। काशी के घाट पर इस अति दुर्लभ दृश्य को देखने के लिए मानो, देवता भी धरती पर उतर आए हों। तुलसीदास द्वारा शुरू की गई इस कृष्ण लीला का लगभग पांच शताब्दियों से काशी के तुलसीघाट पर मंचन हो रहा है। क्षणभर के इस नागनथैया लीला (Nag Nathaiya Leela) को देखने के लिए लाखों की संख्या में भक्तगण एकत्रित होते हैं। नागनथैया प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है।

काशी में ज्यादातर लीलाओं (Nag Nathaiya Leela) का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को जाता है, जिसमें तुलसीघाट पर होने वाली नाग नथैया की लीला भी शामिल है। गोस्वामी तुलसीदास ने ही लगभग 495 वर्ष पूर्व इस श्री कृष्ण लीला की शुरुआत की थी। त्योहार से जुड़ी पौराणिक मान्यता यह है कि यमुना में एक नाग कालिया ने मथुरा के मूल निवासियों को परेशान किया था। भगवान कृष्ण ने उसके फन पर नृत्य करके दुष्ट सांप को वश में किया और मूल निवासियों को उसके आतंक से बचाया था।

Nag Nathaiya Leela: भगवान की गेंद गिरी यमुना में, फिर …
हर साल की तरह कंदुक क्रीड़ा के समय भगवान श्रीकृष्ण की गेंद यमुना में गिर गई। श्री कृष्ण ने कदम्ब की डार से जमुना रूपी गंगा में छलांग लगा दी। सभी श्रद्धालु यमुना रूपी गंगा में एक टक लगाकर देखते रहे। तभी भगवान कृष्ण जहरीले कालिया नाग को नथ कर उसके फन पर नृत्य (Nag Nathaiya Leela) करते दिखाई दिए। प्रभु को देखते ही पूरा वायुमंडल भगवान श्रीकृष्ण के जयकारे से गूंज गया। नाग नथैया को काशी के तत्कालीन राजा कुंवर अनंत नारायण सिंह ने भी अपनी शाही नाव से देखा था। संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्रा व काशी राजघराने के कुंवर अनंत नारायण सिंह भी इस लीला में शामिल हुए।
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