
New Perliament Row
एक स्वाभिमानी राष्ट्र तब तक संसद की कार्यवाही टेंट डालकर करता, जब तक उसका अपना संसद भवन बनकर तैयार नहीं हो जाता। जमींदोज कर देते अंग्रेजों द्वारा दान में दिए गए उस विक्टोरिया महल को, जिसका इतिहास लाखों भारतीयों के खून से लिखा गया है।
क्या राहुल गांधी अब संसद में नहीं जाएंगे ?
क्या विपक्षी दलों के सांसद अब अपने पद से इस्तीफा देंगे ?
ऐसे ही कुछ सवाल आम जनता के बीच घूम रहे हैं, जबकि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने नए संसद भवन (New Perliament Row) के उद्घाटन का विरोध किया है। नए संसद भवन को लेकर देश की राजनीती में हलचल मची हुई है। इस मामले में राहुल गांधी के एक ट्वीट के बाद भूचाल सा आ गया। जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री के जगह नए संसद (New Perliament Row) का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों कराने की बात कही।
राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना – यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 24, 2023
संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है।
खैर ! इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राहुल गाँधी ने अब संसद में बोलना शुरू कर दिया है। उन्होंने पहले ही कहा था कि मैं बोलूंगा तो भूकंप आ जाएगा। उन्होंने जनता को इसके लिए चेताया भी था। अब राहुल गांधी ने साबित भी कर दिया कि उनके बोलने से भूकंप आता है।
राहुल गांधी समेत समस्त विपक्षी दलों ने नए संसद के उद्घाटन का विरोध (New Perliament Row) किया है, लेकिन इससे पहले उन्होंने नए संसद भवन के बनने का भी विरोध किया था, शायद इसलिए भी क्योंकि इसे केंद्र की मोदी सरकार बनवा रही है। अब विपक्ष इस मामले को लेकर अलग ही राग अलाप रहा है। विपक्षी दलों के अनुसार , “जब संसद से लोकतंत्र की आत्मा को चूस लिया गया और सरकार डेमोक्रेसी के लिए खतरा बन गई है तो नए भवन का कोई मूल्य नहीं है।”
वहीँ बीजेपी भी इस मुद्दे पर आक्रामक हो गयी है। बीजेपी ने विपक्षियों को ऐसे मौके गिनाए हैं, जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन या कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी में सदन का उद्घाटन (New Perliament Row) किया गया था। इस मुद्दे पर वामपंथी चैनलों ने भी चिल्लाना शुरू कर दिया है। जब कांग्रेस सरकार में बिना राज्यपाल के सदन का उद्घाटन किया गया था, तब इनके हाथ की नसें जम गई थीं।
भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं है कि जब किसी प्रधानमंत्री या किसी नेता ने संसद या सदन का उद्घाटन किया हो। पहले भी ऐसा कई बार हुआ है। आज हम उन्हीं मौकों के बारे में बात करेंगे, जब बिना राष्ट्रपति के कई उद्घाटन हुए।

New Perliament Row: अमर ज्योति जवान
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद जवानों के स्मृति में नई दिल्ली के इंडिया गेट के पास अमर ज्योति जवान बनाई गई थी। इस स्मारक के चारों तरफ सोने से अमर ज्योति जवान लिखा गया है।
अमर ज्योति जवान के उद्घाटन पर सवाल भी उठा, लेकिन युद्ध की वजह से मामला दब गया। विपक्षी नेताओं का कहना था कि राष्ट्रपति तीनों सेना के प्रमुख होते हैं, इसलिए उनसे इसका उद्घाटन करवाना चाहिए था। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के लिए पाकिस्तान पर भारत ने कार्रवाई की थी। 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत 3,843 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद अमर ज्योति बनाने का सरकार ने फैसला किया था।
दिल्ली मेट्रो का उद्घाटन
दिसंबर 2022 का समय, राष्ट्रीय राजधानी में मेट्रो का उद्घाटन होना था। शहरी विकास मंत्रालय ने इसके लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रण भेज दिया। उस वक्त एपीजे अब्दुल कलाम आजाद राष्ट्रपति थे।
राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और यह सीधे राष्ट्रपति के अधीन होता है। उपराज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर सरकार को मॉनिटरिंग करते हैं। फाइनल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास फाइलें भेजी जाती है।
दिल्ली मेट्रो के उद्घाटन के राष्ट्रपति के सर्वेसर्वा होने दलील दी गई थी। उस वक्त विपक्षी नेताओं का कहना था कि दिल्ली में राष्ट्रपति से ही मेट्रो का उद्घाटन करवाना चाहिए।
नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन
2019 में इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति के पास नेशनल वॉर मेमोरियल बनकर तैयार हुआ। उस वक्त चर्चा थी कि राष्ट्रपति इसका उद्घाटन करेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया। उस वक्त राष्ट्रपति थे- रामनाथ कोविंद।
शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री से उद्घाटन (New Perliament Row) कराए जाने का विरोध भी किया। उनका तर्क था कि राष्ट्रपति सभी सेनाओं के प्रमुख होते हैं, इसलिए सैन्य से जुड़े चीजों का उद्घाटन उन्हें ही करना चाहिए।
New Perliament Row : कांग्रेस ने देश में कभी स्वाभिमान जगने ही नहीं दिया
अब जबकि इतने स्मारकों का उद्घाटन स्वयं पीएम मोदी कर चुके हैं, तो इस नए संसद का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री ही करेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं। रही बात कांग्रेस के साथ उद्घाटन (New Perliament Row) का विरोध कर रहे विपक्षी दलों की तो उनका विरोध भी निरर्थक ही है। कांग्रेस को तो इसका विरोध करना ही नहीं चाहिए। आजादी के बाद से जिसकी सरकार ने वर्षों तक राज किया हो, उसने कभी अंग्रेजों द्वारा दान में दिए गए संसद (New Perliament Row) के परित्याग के बारे में नहीं सोचा, तो अब इतना हंगामा क्यों बरपा रहे हैं?
जिन अंग्रेजों ने हम पर सैकड़ों वर्षों तक राज किया, जिन अंग्रेजों का इतिहास भारतीयों के खून से सींचा गया, हम आज तक उसके दिए दान पर आश्रित हैं। उनके द्वारा बनाए गये विक्टोरिया महल और तमाम ऐसी चीज़ों हमने आज तक संभाल कर रखा हुआ है। कांग्रेस ने कभी देश में स्वाभिमान जगने ही नहीं दिया।
एक स्वाभिमानी राष्ट्र तब तक संसद (New Perliament Row) की कार्यवाही टेंट डालकर करता, जब तक उसका अपना संसद भवन बनकर तैयार नहीं हो जाता। जमींदोज कर देते अंग्रेजों द्वारा दान में दिए गए उस विक्टोरिया महल को, जिसका इतिहास लाखों भारतीयों के खून से लिखा गया है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, यहां तो बस प्रधानमंत्री बनने की होड़ थी। कब अंग्रेज कुर्सी खाली करें, और कब हम जाकर कुर्सी प अपना कब्ज़ा जमाएं। भले ही वह कुर्सी भारत के दो टुकड़े और हिन्दू-मुसलमान का खून बहाकर मिले।
वैसे कांग्रेस का बहिष्कार कार्यक्रम कई बार चला है, लेकिन वह असफल ही रहा। पत्रकार दीपक पाण्डेय के अनुसार, कांग्रेस पूरी तरह से बहिष्कार जीवी हो गई है। जब-जब कांग्रेस ने बहिष्कार करना चाहा, तब-तब मुंह की खायी।
- कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने GST के विशेष सत्र के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण का बहिष्कार किया।
- फिर मुखर्जी को भारत रत्न दिए जाने के समारोह का बहिष्कार किया।
- उसके पहले रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर सामान्य शिष्टाचार और औपचारिक मुलाकात में जानबूझकर देरी की। उन पर बीच-बीच में उल्टा सीधा बयान आते रहे इनके।
- इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की उम्मीदवारी का विरोध किया, उनके खिलाफ अनादर दिखाया। फिर द्रौपदी मुर्मु की आड़ में अनुसूचित जातियों और अनुसूचीति जनजातियों का अपमान किया। फिर चाहे कांग्रेस रही हो या टीएमसी रही हो।
- फिर अधीर रंजन चौधरी ने मुर्मु को राष्ट्रपत्नि कहकर उनका उपहास उड़ाया।
- फिर मौजूदा बजट सेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया।
- अभी तक विपक्षी दलों ने मैडम प्रेसिडेंट से सामान्य शिष्टाचार और औपचारिक मुलाकात तक नहीं की है।
ये तो हाल फिलहाल की घटनाएं है। थोड़ा और पीछे इतिहास में जाइए और देखिए ये लोग राष्ट्रपति का कितना सम्मान करते हैं?
- प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बिना नेहरू जी की इच्छा के सोमनाथ मंदिर का लोकार्पण करने चले गये थे। उस एक अपराध के कारण वे आजन्म जवाहर के घृणा का पात्र रहे और न पीएम नेहरू राजेंद्र बाबू के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
- इंदिरा गांधी ने पीएम रहते हुए लोकतंत्र की हत्या तो की ही, उस हत्याकांड में राष्ट्रपति को इतना भरोसे में लिया कि उस समय एक कार्टून बड़ा प्रसिद्ध हुआ था, जिसमें नंगे-पुंगे बाथटब में बैठे तब के राष्ट्रपति फखरुद्दीन ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया था।
- इसके बाद एक राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह हुए, जो यह कहने में गर्व अनुभव करते थे कि उन्हें प्रसन्नता होगी इंदिरा के घर में झाड़ू लगाने में।
- इसके बाद सोनिया गांधी का भी शासन चल रहा था। तब की मीडिया का रिपोर्ट पढ़िए। प्रतिभा पाटिल थीं तब देश की महामहिम। यात्राओं और पुरस्कार को लेकर कई विवाद भी हुए। पर व्यक्तिगत तौर पर बड़े ही शांत और सहज स्वभाव के व्यक्तित्व की धनी हैं वे।
- इन्हीं की राज्य सरकार में मंत्री रहे और बाड़मेर से कांग्रेस विधायक अमीन खान ने कार्यकर्ताओं को वफादारी का प्रवचन देते हुए कहा था कि देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री स्व० इंदिरा गांधी के घर में रसोई संभालती थीं। इसी वफादारी के नतीजे में सोनिया गांधी ने उन्हें राष्ट्रपति बना दिया। तुम लोग भी कांग्रेस की ऐसी ही सेवा करो।
तो ये है इन लोगों का महामहिम के प्रति सम्मान। बाकी यह तो दुनिया जानती है कि जिस महामहिम के लिए आज ये भाई साब लोग घड़ियाली आंसू (New Perliament Row) बहा रहे हैं, उन्हें हराने में कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था इन्होंने।
आदिवासी प्रदेश छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी विधायकों से द्रौपदी मूर्मू जी के विरुद्ध मतदान करने पर कांग्रेस ने विवश किया। और तो और, जब छत्तीसगढ़ में नवीन विधानसभा का भूमिपूजन किया गया तो उसमें सोनिया और राहुल को बुलाया गया न कि राज्यपाल को।
तो पूछना यही है कि कोई मुद्दा है आपके पास?
केवल मोदी से ईर्ष्या-नफरत, गाली-गलौज, विदेशी पैसे और विचार की मदद और हर बात पर,बात दर बात पर विवाद और विरोध खड़ा कर, घनीभूत घृणा और नफरत उगल कर क्या साबित करना चाहते हो आप? ऐसे तो 2024 की नैया नहीं संभलने वाली…
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