
- धरोहर को सहेजना चाहिए था, बाजारवाद के अंधे कूएँ में धकेलना नहीं चाहिए था।
हमारी काशी दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत नगरी है। इसका विकास इसकी प्राचीनता को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए था। ये कॉरिडोर, फूड कोर्ट, रोप वे, टेंट सिटी वगैरह वगैरह तो दुनिया की बहुत सारी जगहों पर मिल जाती न ! पर वो प्राचीन संकरी गलियों का जाल, जिसके लिए हमारा बनारस जग प्रसिद्ध है…
यहां की अलमस्त बनारसी संस्कृति, वो वाला सुबह ए बनारस जिसमें बनारस की आत्मा बसती थी, (अस्सी घाट वाला सुबहे बनारस का मंच नहीं)… उसे संवारने का काम करना चाहिए था। पूरी दुनिया से लोग बाबा विश्वनाथ के साथ-साथ बनारस की जीवंतता को देखने आते हैं न कि टेंट सिटी में मौज करने। उसके लिए तो ढेरों जगहें हैं पूरी दुनिया में। बनारस की सड़कों पर खाने की स्वादिष्ट, सुस्वादु, सस्ती और विविध वस्तुओं का समृद्ध बाजार है।
हमें अपने अतिथियों का परिचय उनसे करवाना था, न कि महंगे और दिखावटी फूड कोर्ट से। आध्यात्मिक विकास के लिए क्या किया गया? शहर की आत्मा मार दी गयी। अपनी मरी हुई आत्मा का बोझ ढोता बूढ़ा शहर… स्थानीय लोग खुद को नहीं जोड़ पा रहे इस महान् विकास से।।। न ही कभी जुड़ पाएंगे। असली बनारसियों का दर्द बाहरी लोग नहीं महसूस कर सकते।
आदरणीय मोदी जी… जो अधिकारी यहां के विकास का खाका खींच रहे वो यहां की तासीर कभी नहीं समझ पाएंगे क्योंकि वो बनारसी नहीं हैं। निःसंदेह बनारस का सचमुच बहुत विकास हुआ पर बनारस एक पुरनिया शहर है। इसकी गरिमा और सौंदर्य इसकी प्राचीनता में ही है। इसे बेमतलब आर्टिफिशिएल मेकअप करके और बदरंग मत बनाईये।

- प्रतिभा सिंह आर्य, सोशल वर्कर, सुंदरपुर वाराणसी,