
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) को मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। लेकिन ऐसे में राष्ट्रवादी हिंदुओं का मन बेचैन हो उठा है। लेकिन ऐसे में राष्ट्रवादी हिंदुओं का मन बेचैन हो उठा है। यह बेचैनी कोई और नहीं बल्कि राम भक्त कोठारी बंधुओं के कारण है। बता दें कि जिस समय मुलायम सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे, उस समय कोठारी बंधुओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। और उनका पार्थिव शरीर उनके घर नहीं लौट पाया था।
यहां से शुरू होती है कहानी
समय था 1990 का और महीना था दिसंबर का। पहले हफ्ते के 1 दिन डाकिया आज के कोलकाता और तब के कलकत्ता के खेलत घोष लेन स्थित एक घर में पोस्टकार्ड लेकर पहुंचता है। बकौल पूर्णिमा कोठारी, “चिट्ठी देख मैं बिलख पड़ी। उसने माँ और बाबा का ध्यान रखने को लिखा था। साथ ही कहा था कि चिंता मत करना हम तुम्हारी शादी में पहुँच जाएँगे।” यह पत्र था पूर्णिमा के भाई शरद कोठारी का जो अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ अयोध्या में 2 नवंबर को ही बलिदान हो चुके थे। चिट्ठी बलिदान से कुछ घंटों पहले ही लिखी गई थी।
कभी न पूरा होने वाला वादा
22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोलकाता में अपने घर के करीब बड़ा बाजार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखा में नियमित रूप से जाते थे। दोनों द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित थे। ऑप इंडिया की खबर के अनुसार, कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही राम और शरद ने भी विहिप की कार सेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी को बताया। उसी साल दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बहन पूर्णिमा की शादी होनी तय थी। पिता ने कहा- कम से कम एक भाई तो घर पर रुको ताकि शादी के इंतजाम हो सके। पर दोनों भाई इरादे से पीछे नहीं हटे।

बकौल पूर्णिमा, “आखिर में एक शर्त पर पिता राजी हुए। उनसे हर रोज अयोध्या से खत लिखते रहने को कहा। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड खरीदे ताकि चिट्ठियाँ लिख सके। मुझे जब पता चला कि भाई अयोध्या जा रहे हैं तो मैं दुखी हो गई। उन्होंने वादा किया कि वे मेरी शादी तक जरूर लौट आएँगे।” दिसंबर के पहले हफ्ते में पूर्णिमा को जो चिट्ठी मिली वो इनमें से ही एक पोस्टकार्ड पर लिखा गया था। पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए।
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कभी न लौटे घर
राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। हेमंत शर्मा ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं- बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियाँ रद्द कर दी थी तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। यहाँ से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुँचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुँचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने पताका फहराई। दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही थी।

दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुँचे। वे बताते हैं कि विवादित ढाँचे की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। मुलायम ने कहा था, “वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता।”
घर से खींच मारी गोली
फिर आया 2 नवंबर का दिन। ‘युद्ध में अयोध्या’ के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।
पुण्यतिथि पर कार्यक्रम के लिए अखिलेश सरकार ने नहीं दी इजाजत
शरद कोठारी और रामकुमार कोठारी की बहन पूर्णिमा की दिसम्बर के दूसरे हफ्ते में शादी होनी थी। उनके पिता ने बड़ी मुश्किल से उन दोनों को कारसेवा में शामिल होने के लिए रजामंदी दी थी, साथ ही अपना हालचाल पोस्टकार्ड के जरिए लिखते रहने को कहा था। जब दोनों की मौत की खबर घर पहुंची तो पुरे परिवार में सन्नाटा छा गया। पुलिस ने दोनों के शव परिवार वालों को देने से मन कर दिया। राम कुमार और शरद के बड़े भाई ने सरयू के घाट पर 4 नवंबर को दोनों भाइयों का अंतिम संस्कार किया, जिसमें लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। साल 2015 में कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी अपने भाइयों की 25वीं पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम करना चाहती थीं किन्तु अखिलेश सरकार से इसकी इजाजत नहीं मिली।
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