
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश (UP Politics) की सियासत में कब किसकी किस्मत पलट जाए, यह कोई नहीं जानता। यहां कब ऊंट पहाड़ के नीचे आ जाए, या फिर पहाड़ ही ऊंट के नीचे, सब कुछ संभव है। घोसी के सियासी अखाड़े में बीजेपी ने जो दांव खेला था, वह दांव उस पर ही भारी पड़ गया। बीजेपी ने घोसी में जिसे सम्राट बनाकर भेजा, वह युधिष्ठिर की तरह सभी दांव पेंच हार कर आ गया। दारा सिंह चौहान से पार्टी को जो उम्मीदें थी, वह टूट गईं। बीजेपी को दारा को चुनाव लड़ाने के मंसूबों पर पूरी तरह से पानी फिर गया।
दारा के हारने की एक वजहों में से एक वजह राज्य यूनिट (UP Politics) की असहमति भी बताई जा रही है। पार्टी के राज्य यूनिट की असहमति के बाद भी दिल्ली ने दारा सिंह चौहान को लेकर जो फैसला लिया, वह उसपर ही भारी पड़ गया। नतीजा, दारा सिंह चौहान को इस चुनाव में करारी शिकस्त मिली, वहीं विपक्ष ने इसे इनके नए गठबंधन ‘इंडिया’ की जीत बताया। दारा सिंह केवल चुनाव नहीं हारे, बल्कि घोसी में बीजेपी ने जो समीकरण बैठा रखे थे। वह समीकरण भी फेल साबित हुए।
वैसे यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों (UP Politics) के मद्देनजर अहम भी माना जा रहा था। ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद से यह चुनाव ‘इंडिया’ बनाम NDA का बताया जा रहा था। वहीं 2024 के लिए सबसे सियासी रणभूमि माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में भी मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में सीधी टक्कर थी।
UP Politics: जनता ने दलबदलू छवि को साफतौर पर नकारा
घोसी उपचुनाव के जो नतीजे (UP Politics) आए, उससे यह साफ़ हो गया कि घोसी की जनता ने साफ तौर पर बीजेपी के दो नेताओं की दलबदलू छवि को एक सिरे से नकार दिया। समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने न सिर्फ बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हराया, बल्कि राजनीतिक पार्टियों को एक संदेश दिया कि जनता कभी भी दलबदलू नेताओं को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा सकती है।
Highlights
इधर दारा सिंह चौहान घोसी में हार (UP Politics) के बाद दिल्ली में अपना भविष्य टटोलने लगे हैं। वहीँ चौहान के समर्थकों ने मऊ से लेकर लखनऊ तक इस बात का शोर कर दिया कि पूर्व डिप्टी सीएम डॉ० दिनेश शर्मा के राज्यसभा में जाने के बाद खाली हुई विधानपरिषद की सीट पर दारा को उच्चसदन में भेजा जा सकता है। ये इसलिए भी अहम है क्योंकि मंत्री बनने के लिए किसी सदन का सदस्य होना ज़रूरी है। दारा की बीजेपी में वापस एंट्री के बाद से ही इसकी अटकलें लगाई जा रही थी कि उन्हें योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा।
दिल्ली दरबार में सियासी उथलपुथल
राजनीति के जानकारों के मुताबिक, इसका फैसला दिल्ली में ही होगा। वैसे यह कहना गलत नहीं होगा कि दारा सिंह चौहान को उनके समर्थक (UP Politics) भावी कैबिनेट मंत्री के तौर पर देखते थे। सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली दरबार की भी इस पर सहमति थी, लेकिन अब घोसी के सियासी मैदान में करारी शिकस्त के बाद इन अटकलों पर विराम लगने की उम्मीद है। घोसी में हार के बाद जब चौहान बुधवार को दिल्ली स्थित मुख्यालय पहुंचे, तो उनके चेहरे पर मायूसी दिखाई दी। अब बीजेपी नेतृत्व के सामने एक चुनौती यह भी है कि दारा की पार्टी में एंट्री में स्टेट यूनिट की सहमति नहीं थी।
राजनीतिक गलियारों से यह भी खबर सामने आ रही है कि मुख्यमंत्री ने भी दारा सिंह चौहान को चुनावी मैदान (UP Politics) में उतारने पर असहमति जताई थी। किन्तु तमाम समीकरणों को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने यह फैसला लिया। अब हार के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी के तौर पर दारा सिंह चौहान का साथ नहीं दिया। वहीं दारा अपने ‘सजातीय’ वोटों को साधने में भी असफल रहे।
दारा सिंह को दोबारा मौका देना बीजेपी के लिए आग की भट्ठी में हाथ डालने जैसा
अभी पार्टी के सामने दारा सिंह चौहान को दोबारा मौके देना फिलहाल आग की भट्ठी में हाथ डालकर बाहर खींचने (UP Politics) जैसा है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि पार्टी में दारा के लिए ‘भीतरघात’ है। पार्टी में एक ओर दारा सिंह चौहान के समर्थक हैं, तो दूसरी ओर उनके विरोधी। दूसरी बात यह भी है कि दिनेश शर्मा की सीट पर जो भी व्यक्ति चुना जाएगा, उसके लिए यह सीट 2027 तक फिक्स रहेगी। यानी उस व्यक्ति का कार्यकाल अगले विधानसभा चुनाव तक होगा। ऐसे में पार्टी में हर व्यक्ति अपने कार्यकर्ता को उतारना चाहेगा। वहीं सूत्रों के मुताबिक, इस सीट पर पार्टी के ‘बड़कवा’ भी अपने करीबियों को लाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं।

UP Politics: दारा सिंह को पद देना बीजेपी की मजबूरी
फ़िलहाल दारा के समर्थक परिषद की सीट को लेकर लामबंदी में जुटे हुए हैं। क्योंकि यदि दारा सिंह चौहान को पार्टी में रखना है, तो उन्हें कोई पद देना पार्टी की मजबूरी है। हालांकि पार्टी ने चौहान और विशेषकर उस क्षेत्र के मतदाताओं को साधने के लिए फागू चौहान को पहले ही बिहार का और उसके बाद मेघालय का राज्यपाल बनाकर सन्देश देने की कोशिश की है।
दूसरी ओर, ओमप्रकाश राजभर भी भाजपा के साथ कमबैक के बाद अपनी पहली परीक्षा में नाकाम हो गये। घोसी में राजभर मतदाताओं ने भी ओपी राजभर की एक न सुनी। हालांकि राजभर ने इसे लोगों की दारा के प्रति नाराजगी बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।
18-22 सितम्बर तक हो सकता है कोई बड़ा फैसला
माना तो यह भी जा रहा है कि आगे उनको मंत्री पद देने पर सहमति (UP Politics) बन चुकी है। हालांकि, योगी मंत्रिमंडल विस्तार पर अटकलें काफी समय से लगाई जा रही हैं। पर फिलहाल पार्टी के एजेंडे में पांच राज्यों में चुनाव के साथ तात्कालिक रूप से संसद का विशेष सत्र है। 18-22 सितम्बर तक चलने वाले सत्र में अगर कोई बड़ा फैसला होता है तो उसको देश भर में फैलाने पर पार्टी की राज्य यूनिट से लेकर शीर्ष नेतृत्व का ध्यान रहेगा। ऐसे में इसकी सितम्बर में होने की सम्भावना फिलहाल नहीं दिख रही। हालांकि, पार्टी पर राजभर को ‘एडजस्ट’ करने का दबाव है। ओम प्रकाश राजभर लगातार इस बात को लेकर बयान दे रहे हैं।
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