
Hinglaz Bhawani: भगवान विष्णु ने जब सती के शरीर के 51 टुकड़े किए, उनके शरीर के हिस्से दुनिया में जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। आज हम ऐसे ही एक शक्तिपीठ का निर्माण करने वाले हैं। जो कि पाकिस्तान (Pakistan) के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। हालांकि पाकिस्तान का यह क्षेत्र पाकिस्तानी इस्लामी कट्टरपंथियों के अत्याचर के वजह से भी जाना जाता है। लेकिन इसके प्रसिद्द होने का मुख्य कारण हिन्दुओं की आस्था का केंद्र मां हिंगलाज भवानी का विश्व विख्यात मंदिर है।
मान्यता है कि माता हिंगलाज भवानी (Hinglaz Bhawani) की यात्रा अमरनाथ धाम से भी कठिन है। श्रद्धालु दुर्गम रास्तों को पार कर यहां बड़ी मुश्किल से पहुंचते हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता का दर्शन करने के लिए दुनिया भर से भक्त बलूचिस्तान पहुंचते हैं। इस मंदिर की देख-रेख मुस्लिम करते हैं।
मंदिर तक के रास्ते में 1,000 फुट ऊँचे पहाड़, दूर तक फैला सुनसान रेगिस्तान, जंगली जानवर से भरे घने जंगल और 300 फीट ऊँचा मड ज्वालामुखी पड़ता है। इन सबको पार करने के बाद भी डाकुओं और आतंकियों का खतरा बना रहता है। इसी कारण वहाँ जाने वाले लोग 40-50 का समूह बनाकर जाते हैं। अकेले इस मंदिर की यात्रा करना मना है।
बलूचिस्तान के लसबेला (Lasbela) कस्बे में किर्थार पहाड़ों की तलहटी में हिंगोल नदी (Hingol River) के किनारे स्थित इस मंदिर को लेकर ना सिर्फ हिंदुओं में बल्कि पाकिस्तान के मुस्लिमों में भी असीम श्रद्धा है। यहाँ के हिंदू के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी माता हिंगलाज (Hinglaz Bhawani) के दर्शन के लिए जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
हिंगलाज माता (Hinglaz Bhawani) को माँ भगवती का रूप माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति अपनी बेटी सती (माँ पार्वती का पूर्व रूप) के भगवान शंकर से विवाह करने पर खुश नहीं थे। इसलिए, एक बार जब उन्होंने यज्ञ किया तो सबको बुलाया, लेकिन भगवान शंकर को नहीं बुलाए।
भगवान शंकर के मना करने पर भी माता सती नहीं मानीं और वहाँ चली गईं। वहाँ सती ने अपने पिता के मुख से अपने पति के लिए तिरस्कार सुनकर वहाँ लज्जित और क्रोधित होकर यज्ञ के हवनकुंड में कूद कर प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को इसका पता चला तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपनी जटा का बाल उठाकर भूमि पर फेंका, जिससे वीरभद्र पैदा हुए। वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति के यहाँ जाकर उनका सिर काट दिया। इसके पहले भगवान शिव एक बार ब्रह्मा पर भी क्रोधित हो चुके थे। उनके क्रोध से उत्पन्न कालभैरव ने ब्रह्मा का पाँचवा सिर काटकर काशी में विसर्जित कर दिया था।
क्रोधित भगवान शिव भी वहाँ पहुँचे और माता सती के अर्धजले शव को कंधे पर लादकर तांडव करने लगे। भगवान शिव के इस रूप के देखकर सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि शिवजी को शांत करने का प्रयत्न करने लगे, लेकिन वे शांत नहीं हुए। अंत में देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए।

माता सती का शरीर 51 टुकड़ों में कटकर अलग-जगहों पर गिरा। जिन-जिन जगहों पर माता सती के शरीर के अंग गिरे वे शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि हिंगलाज में माता सती का सिर गिरा था। इसलिए इस शक्तिपीठ को सबसे चमत्कारिक माना जाता है।
कैसे नाम पड़ा हिंगलाज (Hinglaz Bhawani)?
हिंगलाज माता (Hinglaz Bhawani) का नाम हिंगलाज कैसे पड़ा, इसे लेकर एक कहानी है। किवदंतियों के अनुसार, यहाँ पर कभी हिंगोल नाम का एक राज हुआ करता था। इसका राजा हंगोल था। हंगोल बहुत ही बहादुर और न्यायप्रिय राजा था, लेकिन उसके दरबारी उसे पसंद नहीं करते थे।
राज्य पर कब्जा करने के लिए मंत्री ने राजा को कई तरह के व्यसन के लत लगा दिए। राजा की हालत को देखकर राज्य के लोग परेशान हो गए। उन्होंने देवी से राजा को सुधारने की प्रार्थना की। माता ने उनकी प्रार्थना सुन ली। तभी से वह हिंगलाज माता कहलाने लगीं।
Highlights
स्वयंभू है माता का स्वरुप
हिंगोल नदी के किनारे चंद्रकूप पहाड़ के ऊपर एक गुफा में हिंगलाज का मंदिर (Hinglaz Bhawani) स्थित है। इस मंदिर में का स्वरूप पिंडी रूप में है। वहीं, बगल में भगवान शिव यहाँ भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के परिसर में भगवान गणेश और कालिका माता की प्रतिमा लगी हुई हैं। इसमें किसी तरह का दरवाजा भी नहीं लगा रहता है।

कहा जाता है माता का स्वरूप स्वयंभू है। यह खुद ही गुफा में प्रकट हुआ है। इस शक्ति पीठ का वर्णन शिव पुराण, देवी भगवती पुराण और कलिका पुराण आदि में ग्रंथों में मिलता है। इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर 2000 वर्ष से भी पुराना है।
कहा जाता है कि जहाँ माता का पिंड स्थित है, वहाँ देखकर ऐसा लगता है, जैसे जम्मू स्थित माता वैष्णो देवी का दरबार हो। इस मंदिर को अत्यंत चमत्कारिक माना जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो इस मंदिर का एक बार दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के क ष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
इस मंदिर के साथ ही एक सरोवर है। इसे गुरु गोरखनाथ के सरोवर के नाम से जाना जाता है। लोगों के बीच मान्यता है कि इस सरोवर में माता हिंगलाज (Hinglaz Bhawani) आज भी सुबह-सुबह स्नान के लिए आती हैं। इसके अलावा, यहाँ ब्रह्मकुंड और तीर्थकुंड भी हैं।
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भगवान राम से लेकर गोरखनाथ तक कर चुके हैं पूजा
कहा जाता है कि भगवान श्रीराम भी यहाँ आकर माता हिंगलाज (Hinglaz Bhawani) की पूजा-अर्चना कर चुके हैं। इसके अलावा महर्षि परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि भी यहाँ कठोर तपस्या कर चुके हैं। इसके अलावा नाथ पंथ के संस्थापक और भगवान शंकर के रूप कहने जाने वाले गुरु गोरखनाथ भी यहां तपस्या कर चुके हैं।
इसके अलावा, सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव, दादा मखान जैसे संतों ने आध्यात्मिक शक्ति के लिए यहाँ पूजा-अर्चना की है। इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्री रह चुके राजीव गाँधी और उप-प्रधानमंत्री रह चुके लालकृष्ण आडवाणी भी इस मंदिर में आ चुके हैं।

मंदिर जाने से पहले लेने पड़ते हैं दो प्रण
2007 में चीन द्वारा रोड बनवाने से पहले तक हिंगलाज मंदिर पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कम-से-कम 200 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। इसमें 2 से 3 महीने तक लग जाते थे। अब दर्शनार्थी 4 पड़ाव में 55 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर हिंगलाज मंदिर (Hinglaz Bhawani) पहुँचते हैं।
कहा जाता है कि हिंगलाज माता के दर्शन (Hinglaz Bhawani) के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा शुरू करने से पहले 2 प्रण लेनी पड़ते हैं। पहला प्रण यह कि माता के दर्शन करके वापस लौटने तक संन्यास ग्रहण करना होगा। वहीं, दूसरा प्रण ये होता है कि पूरी यात्रा में कोई भी यात्री अपने साथी यात्रियों को अपनी सुराही का पानी नहीं देगा। भले ही वह रास्ते में प्यास से तड़प कर मर जाए।
कहा जाता है कि ये दोनों प्रण हिंगलाज माता (Hinglaz Bhawani) तक पहुँचने के लिए भक्तों की परीक्षा लेने की प्राचीन परंपरा है और यह अभी भी चली आ रही है। इन दोनों शपथों को पूरा नहीं करने वाले श्रद्धालु की यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है।
इसके साथ ही इस मंदिर पर पहुँचने वाले ऐसे श्रद्धालु, जो विशेष मनोरथ की पूर्ति के लिए मंदिर आते हैं, उन्हें 10 फीट लंबे अग्नि से धधकते ‘माता की चूल’ से होकर गुजरते हैं। कहा जाता है कि इस चूल से गुजरने के बाद हर हाल में उनकी मनोकामना पूरी होती है।
मान्यता है कि एक हिंदू भले ही चारों धाम की यात्रा कर ले, काशी-अयोध्या में स्नान और पूजा-पाठ कर ले, लेकिन जब तक माता हिंगलाज का दर्शन नहीं करता, तब तक सब व्यर्थ है।

मुस्लिमों का ‘नानी मंदिर’
हिंगलाज मंदिर (Hinglaz Bhawani) हिंदू के साथ-साथ मुस्लिम लोगों के लिए भी पूजनीय है। आज भी इस मंदिर में मुस्लिमों की गहरी श्रद्धा है। मंदिर में जाकर पता नहीं चलता कि कौन हिंदू है और कौन मुस्लिम। कई बार पुजारी और सेवक नमाजी टोपी पहने दिखते हैं तो मुस्लिम पूजा करते दिख जाते हैं।
बलूचिस्तान और सिंध के मुस्लिम सहित पाकिस्तान के मुस्लिम हिंगलाज मंदिर (Hinglaz Bhawani) को ‘नानी मंदिर’, ‘नानी पीर’ या नानी का ‘हज’ के तौर पर मानते हैं। पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान, मिस्र और ईरान के मुस्लिम भी यहाँ पूजा करने के लिए आते हैं। वे माता हिंगलाज को नानी के तौर पर लाल फूल, इस्त्र और अगरबत्ती चढ़ाते हैं और मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
यही नहीं, इस मंदिर की देखरेख और यहाँ की व्यवस्था भी स्थानीय मुस्लिम देखते और करते हैं। पाकिस्तान में जो स्त्रियाँ यहाँ दर्शन के आती हैं, उन्हें ‘हाजियानी’ कहा जाता है और समाज में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
कई बार मंदिर (Hinglaz Bhawani) पर हो चुके हैं हमले
मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत (अब पाकिस्तान सहित) के मंदिरों को नष्ट करने की तरह ही इस मंदिर को भी नष्ट करने की कोशिश की थी। हालाँकि, हर बार स्थानीय हिंदू और मुस्लिम इसे बचाने के लिए मिलकर साथ-साथ खड़े हुए और लड़े।
कहा जाता है कि भारत के विभाजन के बाद धार्मिक उन्माद से पीड़ित कुछ धर्मांधों ने इसे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वे हवा में लटक गए और मंदिर का नुकसान नहीं पहुँचा पाए। इसके बाद से इसे आतंकी भी इस मंदिर की ओर नहीं देखते।
भारत में तनोट माता के रूप में हिंगलाज भवानी (Hinglaz Bhawani)
हिंगलाज माता का दूसरा स्वरूप भारत में तनोट माता के रूप में स्थित है। तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिला से करीब 130 किलोमीटर दूर पाकिस्तान सीमा पर स्थित है। 1965 के भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के दौरान यह मंदिर चर्चा में आया।
कहा जाता है कि पाकिस्तान ने इस इलाके में भारत पर 3,000 बम फेंके, लेकिन इस मंदिर को खरोंच तक नहीं आई। कहा जाता है कि इस मंदिर के आसपास 500 बम गिरे, जो कभी फटे ही नहीं। आज भी ये बम मंदिर के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं।

भारत के अलावा विदेशों में भी है शक्तिपीठ
हिंदुओं के 51 शक्तिपीठों में 10 शक्तिपीठ विदेशों में हैं। इनमें दो शक्तिपीठ पाकिस्तान में, 4 बांग्लादेश में, 2 नेपाल में, एक श्रीलंका में और एक शक्तिपीठ तिब्बत में (चीन) हैं। वहीं, 42 शक्तिपीठ भारत में हैं।
पाकिस्तान में हिंगलाज शक्तिपीठ एवं शिवहरकराय शक्तिपीठ (कराची), तिब्बत में मानस शक्तिपीठ, श्रीलंका में लंका शक्तिपीठ स्थित हैं। वहीं, नेपाल में गण्डकी शक्तिपीठ और गुह्येश्वरी शक्तिपीठ हैं। बांग्लादेश में सुगंध शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ और यशोर शक्तिपीठ स्थित हैं। इन शक्तिपीठों पर हर साल हजारों श्रद्धालु माता का दर्शन करने के लिए जाते हैं।