
Shakti Swaroopa: कहते हैं कि जब मन में जब कुछ अच्छा कर गुजरने का जज्बा हो, तो दिक्कतें तमाम आती हैं। लेकिन इन दिक्कतों को कोई पार कर आगे निकल जाए, उसे ही सफलता हासिल होती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, वाराणसी की संतोषी शुक्ला ने। संतोषी शुक्ला ने समाज को शिक्षित करने का जो संकल्प उठाया है, उसमें उन्होंने बेहद कम समय में सफलता हासिल की है।
नवरात्रि (Shakti Swaroopa) के नव दिनों में हम बात करेंगे काशी के नव शक्तियों की, जिसमें प्रथम दिन हम बताएंगे काशी में महिला शक्ति को जगाने वाली संतोषी शुक्ला के बारे में, जिन्होंने शिक्षा और आत्मनिर्भरता के माध्यम से महिलाओं समेत पूरे समाज को सुधारने का बीड़ा उठाया है।

वैसे तो नवरात्र का प्रथम दिन शैलपुत्री की आराधना (Shakti Swaroopa) का दिन होता है, लेकिन हम जिस संतोषी के बारे में बात कर रहे हैं, उनका व्यक्तित्व शैलपुत्री की तरह ही साधारण है। एक ओर जहां संतोषी समाज में आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। वहीँ, उन्होंने समाज के गरीब व पिछड़े बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी भी ली है।
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एक मध्यम परिवार में जन्म लेने वाली संतोषी की सकारात्मक सोच व सही लक्ष्य ने आज उन्हें समाज में नई पहचान दिलाया है। साथ ही संतोषी द्वारा शुरू की गई संस्था से आज सैकड़ों महिलाओं को रोजगार समेत कई गरीब, असहाय बच्चों को शिक्षा मिली है।

Shakti Swaroopa: 9 वर्षों से कर रहीं समाजसेवा
संतोषी शुक्ला ने बताया कि वे पिछले 9 वर्षों से समाजसेवा का काम कर रही हैं। उन्होंने न सिर्फ बच्चों बल्कि उनकी माताओं को भी आत्मनिर्भर बनाकर उन्हें गरीबीमुक्त (Shakti Swaroopa) करना है। संतोषी ने बताया कि वर्ष 2014 में दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान की स्थापना एक कमरे महिलाओं को प्रशिक्षण देने के साथ किया गया। लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया। हमारा लक्ष्य है कि समाज में हर महिला स्वावलंबी बने, उन्हें किसी के आगे हाथ न पसारना पड़े।

9 वर्षों से संस्था चला रही संतोषी ने देखते-देखते ही संस्था की दूसरी शाखा भी खोल ली। जहां सैकड़ों गरीब बच्चों के भीतर शिक्षा की अलख जगा रही हैं। जिन बस्तियों में लोगों के पांव तक नहीं पड़ते, उन बस्तियों के गरीब बच्चों का पढ़ाने का जिम्मा संतोषी ने उठाया है। उनका उद्देश्य केवल बच्चों को पढ़ाना ही नहीं, बल्कि शिक्षा और आत्मनिर्भर अभियान के मदद से उनके माता-पिता को भी स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देना है।
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