Azamgarh Loksabha: यूपी एक आजमगढ़ सीट पर MY समीकरण हमेशा से रहा है। यह बात भाजपा को वर्ष 1999 के बाद समझ आई। जब बीजेपी ने वर्ष 1999 में इस लोकसभा सीट से रामसूरत राजभर को मैदान में उतारा, लेकिन वह इस सीट पर जीत पर हासिल करने में नाकाम रहे। जिसके बाद बीजेपी को यह बात समझ आई कि यदि इस सीट (Azamgarh Loksabha) पर जीत हासिल करनी है, तो उसे भी समाजवादी पार्टी की तरह MY समीकरण की बिसात बिछानी ही होगी।
जिसके बाद अगले लोकसभा चुनाव वर्ष 2004 में बीजेपी ने शाह मोहम्मद को यहां (Azamgarh Loksabha) से चुनावी मैदान में उतारा। बीजेपी को उसे उम्मीद थी कि भाजपा के परंपरागत वोटों के साथ अगर शाह मोहम्मद के नाम पर मुस्लिम मत प्लस कर गया, तो नैया पार हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 1999 में भाजपा के रामसूरत राजभर ने 1,61,878 वोट प्राप्त किया था, जबकि 2004 में शाह मोहम्मद 34735 वोटों पर ही सिमट गए। शाह मोहम्मद से ज्यादा सुभासपा के डॉ० कृष्ण मोहन त्रिपाठी ने 40536 मत प्राप्त कर चैथा स्थान हासिल किया था।
वर्ष 2004 का प्रयोग फेल हुआ, तो भाजपा ने 2008 में हुए उपचुनाव में उस रमाकांत यादव के हाथों झंडा पकड़ा दिया, जिनके बारे में पहले टिप्पणी करती रही। फिलहाल उसका लाभ भी भाजपा को मिला। रमाकांत ने 1,70,479 मत प्राप्त कर भाजपा को दूसरे स्थान पर ला दिया। वर्ष 2009 में हुए चुनाव में भाजपा ने फिर रमाकांत पर भरोसा किया तो उन्होंने आजमगढ़ लोकसभा (Azamgarh Loksabha) के इतिहास में पहली बार कमल खिला दिया। वर्ष 2014 में भाजपा ने रमाकांत पर तीसरी बार भरोसा तो किया, लेकिन सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने जब खुद ताल ठोकी, तो रमाकांत को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
2019 में निरहुआ को मिली मात, 2022 में मिली जीत
वर्ष 2019 के चुनाव में किन्ही कारणों से भाजपा ने रमाकांत को टिकट न देकर भोजपुरी सिनेमा स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को पार्टी का झंडा प्रदान कर दिया, लेकिन सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने ढाई लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
बाद में अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट (Azamgarh Loksabha) पर 2022 में उपचुनाव हुआ तो झंडा फिर निरहुआ के हाथ में था और निरहुआ ने भी इस सीट को पार्टी की झोली में डाल दिया। यह बात लग रही की जीत का अंतर मात्र 8679 ही रहा। एक बार फिर भाजपा ने निरहुआ को मैदान में उतारा है। कुल मिलाकर वर्ष 1999 के बाद भाजपा ने भी यहां के समीकरण को समझते हुए एम-वाई फैक्टर को अपनाना मुनासिब समझा।
Azamgarh Loksabha: सपा ने कभी मुस्लिम प्रत्याशी पर नहीं जताया भरोसा
सपा और बसपा की बात करें तो बसपा ने इस सीट पर 1998, 1999,2008 (उपचुनाव), 2009, 2014, 2022 के उपचुनाव व इस बार यानी सातवीं बार मुस्लिम प्रत्याशी उतारा। वहीं कांग्रेस ने 1978 (उपचुनाव),1980, 1991 तथा 2008 (उपचुनाव) में मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा किया। यह अलग बात है कि कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी सफलता से दूर रहे। सपा ने तो मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा ही नहीं किया।
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