Varanasi Loksabha: काशी जितनी प्राचीन और आध्यत्मिक है, उतना ही रोचक इसका राजनीतिक इतिहास है, वैसे तो वाराणसी लोकसभा सीट 1957 में हुए आम चुनाव में यह सीट अस्तित्व में आई थी, लेकिन तब से अब तक बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लगभग सभी दलों के प्रत्याशियों को मिलता रहा है। फिर चाहे वह कांग्रेस हो, भाजपा हो या अन्य कोई दल।
वाराणसी लोकसभा सीट (Varanasi Loksabha) पर कभी कांग्रेस का डंका बजा तो कभी कमल भी खिला। भाकपा के खाते में भी यह सीट जाती रही। नरेंद्र मोदी ने इस सीट से चुनाव जीता और प्रधानमंत्री बने। इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव में यहां दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। इस बार वाराणसी लोकसभा में किसका जादू जनता के बीच चलेगा, इसका पता तो 4 जून चलेगा, लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी से ही इस सीट पर सियासी बिसातबिछा दी है।
विश्व की प्राचीन नगरी वाराणसी को बनारस और काशी के नाम से भी जानते हैं। काशी नगरी का बाबा विश्वनाथ मंदिर और गंगा से अटूट रिश्ता है। 2014 में ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है’ इस स्लोगन के साथ काशी ने नरेन्द्र मोदी को अपनाया। जो कि दो बार से यहां के सांसद रहे। यह शहर आदिकाल से भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केंद्र रहा है।
वाराणसी के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व के साथ ही राजनीतिक पृष्ठभूमि भी अत्यंत रोचक है। वर्ष 1957 के आम चुनाव में पहली बार यह लोकसभा सीट (Varanasi Loksabha) अस्तित्व में आई और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सीट से दो बार बंपर जीत की वजह से इस सीट का महत्व और खास हो गया है।
Varanasi Loksabha: 1967 में पहली बार इस सीट पर कांग्रेस को मिली शिकस्त
वर्ष 1951-52 में जब पहले आम चुनाव हुए थे, तब वाराणसी जिले में बनारस पूर्व, बनारस पश्चिम और बनारस मध्य नाम से तीन लोकसभा सीटें थीं। इसके बाद साल 1957 में वाराणसी सीट के लिए हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रघुनाथ सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार शिवमंगल राम को 71926 मत से पराजित किया था। फिर जब 1962 में लोकसभा चुनाव हुए तो यह सीट फिर से कांग्रेस के रघुनाथ सिंह के खाते में रही। उन्होंने इस बार जनसंघ उम्मीदवार रघुवीर को 45,907 वोटों से हराया।
वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट (Varanasi Loksabha) पर भाकपा के एसएन सिंह ने कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को 18,167 मतों से हराया था। फिर से 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के कमला प्रसाद सिंह को 52,941 वोट से हराया और यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में आ गई। देश में 1971 के बाद जब इमर्जेंसी लगी और फिर साल 1977 में चुनाव हुए तो कांग्रेस को इस सीट पराजय का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के राजाराम को भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर ने 171854 वोट से हराया।
1980 में इस सीट पर फिर कांग्रेस की हुई वापसी
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से वाराणसी सीट (Varanasi Loksabha) पर जीत दर्ज कर वापसी की और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने इस सीट पर पार्टी को जीत दिलाई। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) के प्रत्याशी राज नारायण को 24735 मतों से हराया। 1984 में भी यह सीट कांग्रेस के पास बरकरार रही और श्याम लाल यादव ने भाकपा के प्रत्याशी ऊदल को 94430 वोटों से हराया।
वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकलकर जनता दल के अनिल शास्त्री के हाथों में चली गई। 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट (Varanasi Loksabha) पर भाजपा को जीत मिली, जब शीश चंद्र दीक्षित ने माकपा के राजकिशोर को हराया और तब से इस सीट पर भाजपा की जीत होती रही। 1991 के बाद 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने इस सीट पर जीत दर्ज की। जायसवाल ने माकपा के राजकिशोर को 100,692 वोटों से हराया।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट (Varanasi Loksabha) पर 15 साल बाद कांग्रेस ने वापसी की और राजेश कुमार मिश्रा ने भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को हराकर जीत दर्ज की। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट तब देश की वीवीआइपी सीटों में शामिल हो गई, जब भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ० मुरली मनोहर जोशी के मुकाबले बसपा के मुख्तार अंसारी चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में मुरली मनोहर जोशी ने मुख्तार अंसारी को पराजित किया था।
Varanasi Loksabha: 2014 में मोदी को काशी ने अपनाया
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट (Varanasi Loksabha) पर नरेंद्र मोदी को चुनाव मैदान में उतारा और साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर दिया। नरेंद्र मोदी पहले से अपनी परंपरागत सीट वडोदरा से चुनाव लड़ रहे थे और उन्होंने वाराणसी से भी चुनाव लड़ा। इस सीट पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल तो कांग्रेस ने अजय राय को टिकट दिया था।
इस घमासान में यह लोकसभा सीट देश की सबसे चर्चित सीट बन गई। इस बार नरेंद्र मोदी ने इस सीट पर अपनी अच्छी जीत दर्ज की तो वहीं दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल। इस सीट पर जीत दर्ज करने के साथ ही नरेंद्र मोदी संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री भी बने। उन्होंने प्रतिनिधित्व के लिए वाराणसी को ही चुना।
दूसरी बार भी काशी ने मोदी को बनाया ‘सौभाग्यशाली’
फिर बारी आई 2019 के लोकसभा चुनाव की, जहां भाजपा ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी सीट से चुनाव मैदान में उतारा। इस बार उनके सामने कांग्रेस के अजय राय और समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव मुकाबले में थीं। इस सीट पर जनता ने पीएम मोदी को ही फिर से चुना और शालिनी यादव बड़े अंतर से चुनाव हार गईं।
Highlights
नरेंद्र मोदी को 6,74,664 वोट मिले, सपा की शालिनी यादव को 1,95,159 और कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय को 1,52,548 वोट मिले। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव एक बार मोदी यहां से प्रत्याशी और उनके सामने कांग्रेस व सपा के इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में अजय राय हैं। वहीं बसपा ने अतहर जमाल लारी को चुनावी मैदान में उतारा है। इस बार काशीवासी किसे जीत की सौगात देंगे यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।
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