BSP Analysis: यूपी में लंबे समय से अपना अस्तित्व ढूंढ रही बहुजन समाज पार्टी इस बार पूरी तैयारी के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी है। बसपा अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद के जरिए यूपी में अधिक से अधिक लोकसभा सीटें पाने की जदोजहद में है। लेकिन जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी ने पूर्वांचल की प्रमुख सीटों वाराणसी, आजमगढ़ और भदोही में प्रत्याशियों को बदला है, कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी हवा का रुख भांप कर प्रत्याशियों का चयन कर रही है। पार्टी की जो वर्तमान गतिविधियां हैं, फ़िलहाल वह यही कह रही है।
बसपा ने पिछले 20 दिनों के भीतर तीन सीटों पर तीन बार प्रत्याशी बदले हैं। जबकि बीते दिनों पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक इन पुराने प्रत्याशियों के पक्ष में वाराणसी और आजमगढ़ में रैली भी कर चुके हैं। जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि पार्टी इन तीन सीटों पर जातिगत संतुलन बनाए रखना चाहती है। जिसके कारण प्रत्याशियों का चयन तीसरी बार किया गया है।
राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि पार्टी यहां दलित-मुस्लिम समीकरण साधना चाहती है। वहीं दूसरी ओर वाराणसी व भदोही में प्रत्याशियों का जनता में अच्छी पैठ न होना भी इसका एक आधार माना जा रहा है। वाराणसी सीट पर पहले पार्टी ने अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी बनाया, उसके ठीक दो दिन बाद इनका नाम वापस लेकर नियाज अली मंजू को टिकट दिया। इसके बाद वाराणसी में मंजू के समर्थन में जनसभा भी हुई। लेकिन इसके एक सप्ताह बाद ही नियाज अली मंजू का नाम वापस कर पुन: अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी बनाया गया।
दलबदलू नेता हैं अतहर जमाल लारी
बात अतहर जमाल लारी की करें, तो वह पुराने नेता हैं, वह कई राजनीतिक उतार चढाव की समझ रखने वाले भी बताए जा रहे हैं। वह इससे पहले भी विधानसभा व लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। मगर जब कुछ दिन पहले जब लारी का टिकट काटकर नियाज अली मंजू को प्रत्याशी बनाया गया, इस पर बसपा के बड़े नेता चुप्पी साधे हुए थे।
बसपा द्वारा गुरुवार को जारी लिस्ट में एक बार पुन: अतहर जमाल अंसारी पर भरोसा जताया है, वहीं आजमगढ़ सीट पर बसपा ने पहले भीम राजभर को प्रत्याशी बनाया। भीम राजभर के लिए पार्टी की ओर से प्रचार प्रसार भी किया। लेकिन फिर 16 दिनों बाद 28 अप्रैल को बसपा ने यूटर्न लेते हुए सबीहा अंसारी को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके साथ ही भीम राजभर को सलेमपुर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी बना दिया।
इसके ठीक तीन दिन बाद ही दो मई को बसपा ने सबीहा अंसारी की जगह उनके पति मशहूद अहमद को प्रत्याशी बना दिया है। दरअसल आजमगढ़ में इस बदलाव की वजह को जातिगत संतुलन माना जा रहा है। आजमगढ़ में दलित वोट करीब सवा दो लाख और मुस्लिम करीब डेढ़ लाख है। ऐसे में सपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ लड़ना चाहती है। भीम राजभर को इस सीट से हटाया जाना इसलिए भी माना जा रहा है, क्योंकि यहां राजभर की आबादी करीब 20 हजार है।
बसपा नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को संदेश दिया कि भीम राजभर के रहने मुकाबला त्रिकोणीय नहीं बन सकेगा, ऐसे में सबीहा अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया। मगर फिर पार्टी नेताओं ने उनके पति को टिकट देने की मांग की और इसी आधार पर उन्हें टिकट दिया गया। हालांकि सबीहा अंसारी का कहना है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, ऐसे में उन्होंने खुद ही पति को प्रत्याशी बनाने की अपील पार्ट से की थी। जिसके कारण उन्हें टिकट दिया गया।
BSP Analysis: भदोही में भी बदले गए तीन प्रत्याशी
भदोही में पार्टी ने अतहर अंसारी को टिकट दिया। इनकी पत्नी भदोही नगर पालिका अध्यक्ष भी हैं, बाद में पार्टी ने मंडल कोऑडिनेटर रहे इरफान आमद बबलू को मैदान में उतारा। इसकी वजह पर अतहर अंसारी ने बताया था कि उनके बेटे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इसीलिए उन्होंने खुद ही पार्टी से बदलाव करने की बात कही थी, मगर इस पर भी अलग ही चर्चाओं का बाजार गरम रहा।
गुरुवार देर शाम पार्टी ने यहां भी बदलाव करते हुए हरिशंकर सिंह उर्फ दादा चौहान को मैदान में उतार दिया। दादा चौहान 2022 में बसपा से विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं, चार बार जिला पंचायत सदस्य भी रहे हैं और अभी मिर्जापुर मंडल के प्रभारी भी हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी की समीक्षा में यह आया कि इरफान आमद उतनी मजबूती से चुनाव कोलड़ने की स्थिति में नहीं थे जितनी की पार्टी उम्मीद कर रही थी।
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