
ज्ञानवापी (Gyanvapi) परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे कराने को लेकर दायर याचिका पर वाराणसी कोर्ट 22 मई 2023 को सुनवाई करेगी। इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएसआई को परिसर में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के निर्देश दिए थे। इस्लामी आक्रांताओं ने ज्ञानवापी (Gyanvapi) ही नहीं बल्कि काशी के कई हिस्सों में मंदिरों को तोड़कर उस पर मस्जिद बनवाई थी।
भारत में हिन्दू मंदिरों पर हुए आक्रमण किसी से छुपे नहीं हैं। मंगोंलो-मुगलों-अंग्रेजों आदि ने बारी-बारी से हिन्दू आस्था पर प्रहार (Aurangzeb The Distroyer) किया। हाल के दिनों में काशी विश्वनाथ प्रांगण स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर और परिसर में मिले शिवलिंग को लेकर बवाल मचा हुआ है। आज भी गूगल (Google) पर ज्ञानवापी (Gyanvapi) सर्च करने पर मंदिर पर कब्जा किए मस्जिद की ही तस्वीर समाने आती है। इसी मुद्दे पर न्यायालय में बहस भी छिड़ी हुई है।
एक ओर जहां हिन्दू पक्ष इसे मंदिर साबित करने में लगा हुआ है। वहीँ दूसरी ओर वामपंथी और इस्लामी विचारधारा ग्रसित लोग इसे मस्जिद साबित करने में कोई कसर बाकि नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि ‘सत्य को प्रमाण को आवश्यकता नहीं होती’ सत्य कितना भी कमजोर क्यों न हो, पराजित नहीं हो सकता। तभी तो महादेव की कृपा से आए दिन हिन्दुओं के पक्ष में कोई न कोई सबूत स्वत: ही कोर्ट में पेश किए जा रहे हैं।

मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) ने 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में एक के बाद एक लूट और विध्वंस की घटनाओं को अंजाम दिया। सन् 1193 में कन्नौज के राजा जयचंद और कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच यमुना नदी के किनारे चंदावर (अभी फिरोजाबाद) में एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें जयचंद की मृत्यु हो गई। पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) के बीच हुए युद्ध में इस्लामी सेना की जबरदस्त हार हुई थी, लेकिन अगले एक वर्ष में ही वो दोबारा लौटा और पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ ही दिल्ली में इस्लामी सत्ता की स्थापना हो गई।
जयचंद के खिलाफ युद्ध में खुद मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) और कुतुबुद्दीन ऐबक अपनी-अपनी फौज के साथ था। जयचंद का कटा हुआ सिर इन दोनों इस्लामी शासकों के सामने लाया गया। इसके बाद, मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) वाराणसी की तरफ बढ़ा।
पृथ्वीराज चौहान और जयचंद जैसे हिन्दू राजाओं की मृत्यु के बाद वाराणसी को बचाने वाला शायद ही कोई था। वाराणसी में लूटपाट का भयंकर मंजर देखने को मिला। मंदिर के मंदिर तोड़ डाले गए। वाराणसी न सिर्फ एक धार्मिक नगरी थी, बल्कि व्यापार और वित्त का भी बड़ा केंद्र था। ऐसे में मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) ने मनमाने ढंग से लूटपाट मचाई। कहते हैं, यहाँ से लूटे हुए माल को ले जाने के लिए उसे 1400 ऊँटों की जरूरत पड़ी थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) को भी इसी दौरान ध्वस्त किया गया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी उठाई। कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र हरीशचंद्र और आम लोगों ने जब मंदिर का निर्माण पुन: शुरू कर दिया, तब कुतुबुद्दीन ऐबक ने 4 वर्षों बाद फिर से अपनी फौज के साथ हमला किया और भारी तबाही मचाई।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने विश्वेश्वर, अविमुक्तेश्वर, कृतिवासेश्वर, काल भैरव, आदि महादेव, सिद्धेश्वर, बाणेश्वर, कपालेश्वर और बालीश्वर समेत सैकड़ों शिवालयों को तबाह कर दिया। इस तबाही के कारण अगले पाँच-छ: दशकों तक ये मंदिर इसी अवस्था में रहे।
तुर्कों का शासन था और दिल्ली में उनकी स्थिति और मजबूत ही होती जा रही थी। ऐसे में कुछेक साधु-संतों के अलावा धर्म की मशाल को जिंदा रखने वाले लोग कम ही बचे थे। काशी वही है, जिसके बारे में 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग ने वर्णन किया है कि उसने यहाँ सैकड़ों शिव मंदिर देखे और हजारों साधु-श्रद्धालु भी अपने शरीर पर भस्म मल कर घूमते हुए उसे दिखे। उसने एक 30 मीटर ऊँची शिव प्रतिमा का भी जिक्र किया है।
हालाँकि, 13वीं शताब्दी के मध्य में ही मुहम्मद गोरी (Muhammad Gori) की मौत हो गई और कुतुबुद्दीन ऐबक भी इस दशक के अंत तक मर गया। लेकिन, दिल्ली सल्तनत का काशी पर कब्जा जारी रहा। इसके बाद इल्तुतमिश और फिर उसकी बेटी रजिया सुल्तान (Rajia Sultan)का शासन हुआ। जिस रजिया सुल्तान (Rajia Sultan)को ‘बहादुर महिला’ बता कर वर्षों तक पढ़ाया जाता रहा उसने भी काशी में मंदिरों को ध्वस्त कर विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही एक मस्जिद बनवाई थी। ज्ञानवापी (Gyanvapi) विवादित ढाँचे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘रजिया मस्जिद’ की जगह भी कभी मंदिर ही हुआ करता था।
Gyanvapi: जब-जब हिन्दुओं ने खड़ा किया, आक्रान्ताओं ने तोड़ा
इसके बाद सन् 1448 में मुहम्मद शाह तुगलक ने आसपास के छोटे-बड़े मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया और रजिया मस्जिद को और बड़ा बना दिया। काशी के प्राचीन इतिहास को पढ़ें तो पता चलता है कि यहाँ कई पुष्कर थे, जिन्हें व्यवस्थित ढंग से तबाह कर इस्लामी शासकों ने मस्जिद बनवाए।
हालाँकि, उससे पहले 13वीं सदी में हिन्दुओं ने फिर से मंदिर को बना कर खड़ा कर दिया था। इसे हिन्दुओं की जिजीविषा कहें या फिर श्रद्धा, इतने अत्याचार और खून-खराबे के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। इस्लामवादी लगातार मंदिरों को तोड़ते रहे और हिंदू पुनर्निर्माण में लगे रहे।
इन्हीं मंदिरों में से एक था पद्मेश्वर मंदिर, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)के सामने ही बनवाया गया था। हालाँकि, 1296 ईस्वी में बने पद्मेश्वर मंदिर को भी 15वीं शताब्दी के मध्य में तोड़ डाला गया। पद्म नाम के एक साधु ने इसका निर्माण करवाया था। आप जानते हैं कि ये मंदिर अब कहाँ है?
इसके ऊपर ही लाल दरवाजा मस्जिद बनवा दिया गया, जिसे आज भी शर्की सुल्तानों का भव्य आर्किटेक्चर बता कर प्रचारित किया जाता है। फिरोजशाह तुगलक से लेकर सिकंदर (Sikandar) लोदी तक, कई इस्लामी सुल्तानों ने काशी में मंदिरों को बारम्बार ध्वस्त किया। सन् 1494 में सिकंदर (Sikandar) लोदी ने काशी में कई ऐसे मंदिर तोड़े, जिनका पुनर्निर्माण हिंदुओं ने अपने खून-पसीने से किया था।
2 दिसम्बर, 1669 का वह काला दिन, जब मुगल आक्रान्ता औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) के फरमान पर काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)को ध्वस्त किया गया और उसके जगह एक विवादित ढांचा खड़ा कर दिया गया। जिसे मस्जिद का नाम दिया गया। उससे पहले अकबर के समय राजस्व मंत्री रहे राजा टोडरमल ने नारायण भट्ट नामक साधु के कहने पर इसे बनवाया था। औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) के समय ही शिवलिंग को ज्ञानवापी (Gyanvapi) में डाल दिया गया था।
बताया जाता है कि जिस समय मंदिर को ध्वस्त किया गया, तब वहाँ के मुख्य पुजारी ने जल्दी-जल्दी में प्रतिमाओं को बचाने के लिए कुएँ (ज्ञानवापी (Gyanvapi)) में समाहित कर दिया। साथ ही शिवलिंग को भी उसमें ही स्थापित कर दिया। इसके बाद से ही ज्ञानवापी (Gyanvapi) हिन्दुओं की श्रद्धा का और बड़ा केंद्र बन गया। मंदिर को पूरा ध्वस्त न करते हुए औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) ने उसके ऊपर मस्जिद के गुंबद उठवा दिए। गर्भगृह को मस्जिद का दालान बना दिया गया। शिखर को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। मंदिर के अधिकतर द्वार बंद कर दिए गए।
इतिहासकार मीनाक्षी जैन की पुस्तक ‘Flight Of Deities And Rebirth Of Temples’ के अनुसार, औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) ने होली और दीवाली जैसे त्योहारों को प्रतिबंधित करने के अलावा हिन्दुओं को यमुना के किनारे अंतिम संस्कार पर भी रोक लगा दिया था। उसने केशव देव मंदिर को ध्वस्त करने के भी आदेश दिए। फिर वहाँ शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दिया गया।
मीनाक्षी जैन की किताब में वाराणसी के अन्य मंदिरों का भी वर्णन मिलता है। वाराणसी का केदार मंदिर, जिन्हें विश्वेश्वर का बड़ा भाई मान कर पूजा की जाती थी और ये काशी का सबसे प्राचीन शिवलिंग है।
स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित था कि जब औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) की फौज ने नंदी की प्रतिमा को तबाह किया तो उनके गर्दन से खून टपकने लगा, जिसके बाद वो वहाँ से डर के मारे भाग खड़े हुए। औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) के समय बनारस में कृत्तिवासेश्वर, ओंकार महादेव, मध्यमेश्वर, विश्वेश्वर, बिंदु माधव और काल भैरव समेत अनगिनत मंदिर ध्वस्त कर दिए गए।
उस समय वाराणसी में रह रहे विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरण में लिखा है कि पुरातन काल के मंदिरों को मुस्लिम शासन ने ध्वस्त कर के मस्जिद और दरगाहों में बदल दिया। हालाँकि, औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) की फौज को इस मंदिर को ध्वस्त करने से पहले दशनामी साधुओं से युद्ध लड़ना पड़ा। अखाड़ों के साधुओं ने हथियारों का प्रशिक्षण लिया था और वो मुगल फौज का सामना करने निकले।
‘अखाड़ा’ नाम से ही पता चलता है कि वहाँ पहलवानी और युद्धकालाओं का प्रशिक्षण मिलता रहा होगा। जानबूझ कर मंदिर की दीवारों पर ही मस्जिद बना दिया गया, लेकिन इसका नाम ‘ज्ञानवापी (Gyanvapi)’ ही रह गया। ये नाम किसी भी मुस्लिम साहित्य में नहीं मिलता, सनातनी ग्रंथों में जरूर इसका जिक्र है। इसी ध्वस्तीकरण के बाद ज्ञानवापी (Gyanvapi) के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना की गई। वहाँ कोई मंदिर नहीं बनाया गया और हिन्दू चुपचाप गुप्त रूप से भगवान शिव की पूजा करते थे, ताकि मुगलों को इसके बारे में पता न चल जाए।
कुछ दस्तावेजों से पता चलता है कि रेवा के महाराज भाव सिंह, उदयपुर के जगत सिंह, और रेवा के अनिरुद्ध सिंह अलग-अलग वर्षों में यहाँ पूजा करने पहुँचे। सन् 1734 में उदयपुर के महाराज जवान सिंह ने विश्वेश्वर के नजदीक ही एक शिवलिंग की स्थापना की, जो जवानेश्वर कहलाया। उदयपुर के महाराज संग्राम सिंह और असी सिंह भी यहाँ पहुँचे। अंत में अहिल्याबाई होल्कर ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया, जिनकी प्रतिमा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में भी लगाई गई है।
इसमें से अधिकतर मंदिर ऐसे भी थे, जिसे हिन्दुओं के लिए बंद कर दिया गया और वहां पर मस्जिद बना दिया गया। काशी के कृतिवासेश्वर मंदिर का एक हिस्सा आज भी मस्जिद के कैद में है। कुछ हिन्दू अभी भी पिछले दरवाजे से महादेव की पूजा अर्चना के लिए जाते हैं। बाकि जो लोग इस मंदिर के बारे में नहीं जानते, वे मुख्य मंदिर के छोटे से हिस्से में महादेव की पूजा अर्चना करके वापस लौट जाते हैं।
केवल कृतिवासेश्वर या ज्ञानवापी (Gyanvapi) नहीं, बल्कि काशी के पंचगंगा घाट पर स्थित बिंदु माधव के मंदिर पर भी औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) की नजर पड़ी। जिसके बाद उसने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कराकर वहां भव्य मस्जिद बनवाया। जिसे धरहरा (मस्जिद) का नाम दिया गया। इसके दोनों गुम्बदों पर चढकर पूरे शहर का दर्शन किया जा सकता है। पुरनिये बताते हैं कि कभी यहां पर चैतन्य महाप्रभु आकर निवास करते थे।
इसके अलावा काशी के महान संतों में से एक रामानंद का आश्रम आज भी यहां पर स्थित है। हिन्दुओं ने बिंदु माधव मंदिर के याद में मस्जिद का नाम ‘बिंदु माधव का धरहरा’ रख दिया था। जिसे इतिहास याद रखेगा कि मंदिर को तोडकर मस्जिद बनाई गई है। कालान्तर में किसी ट्रस्ट ने मस्जिद के बगल में ही वर्तमान बिंदु माधव के मंदिर का निर्माण कराया। भक्ति संतों के प्रयासों और आम लोगों की श्रद्धा ने हिन्दुओं को मानसिक रूप से मजबूत रखा और वो अपने धर्म से जुड़े रहे।
हम जानते हैं कि कैसे तुलसीदास ने वाराणसी में रह कर ही ‘रामचरितमानस’ की रचना की और वहाँ एक शिवलिंग समेत भगवान हनुमान के 4 मंदिरों की स्थापना की, जिनमें संकटमोचन प्रमुख है। हालाँकि, औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) की मौत के साथ ही वाराणसी में मजहबी आक्रांताओं के हमलों का भी अंत हो गया। इसके बाद मराठा शक्ति का उदय हुआ, जिसके रहते यहाँ कोई गड़बड़ी नहीं हुई। फिर अंग्रेज आए और उनके शासनकाल के बाद भारत आजाद हुआ।
ज्ञानवापी (Gyanvapi) मंदिर को पूरा इसीलिए नहीं तोड़ा गया था, ताकि आने वाले समय तक हिन्दू इसे देख कर इस क्रूरता को याद कर के डरते रहें। फारसी साहित्य में ज्ञानवापी (Gyanvapi) ध्वस्तीकरण पर एक रोचक प्रसंग मिलता है। औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) के दरबार में एक कवि था, जिसका कहना था कि वो ब्राह्मण है और 100 बार काबा जाने के बावजूद ब्राह्मण ही रहेगा। उसका कहना था कि उसका हृदय ‘कुफ्र’ से इतना मोहित है कि सौ बार काबा फर्क भी ब्राह्मण ही लौटेगा।
बता दें कि हिन्दुओं को इस्लामी कट्टरपंथी और आक्रांता ‘कुफ्र करने वाला’, अर्थात ‘काफिर’ कहते रहे हैं। ‘बरहमन’ नाम से लेखन कार्य करने वाले उस कवि चंद्रभान से औरंगजेब (Aurangzeb The Destroyer) ने जब पूछा कि क्या काशी में मंदिर ध्वस्त किए जाने और उस पर मस्जिद बनाए जाने पर वो कुछ कहना चाहेगा, तो उसने लिखा, ह्लऐ शेख, मेरे मंदिर की ये चमत्कारिक महानता तो देख कि यहाँ तुम्हारा खुदा भी तभी आया जब ये बर्बाद हुआ।ह्व कहा जाता है कि बूढ़े कवि की इस बात पर बादशाह चुप रहा। कुबेर नाथ शुक्ल ने ‘Varanasi Down The Ages’ पुस्तक में इसका जिक्र किया है।
चन्द्रभान शाहजहाँ के समय से ही मुगलों के दरबार में हुआ करता था और उसके पिता भी मुगल शासन में एक अधिकारी हुआ करते थे। उसे पता था कि काशी को लेकर हिन्दू क्या सोचते हैं, उनकी क्या श्रद्धा है। विश्वनाथ मंदिर, जिसे बाद में टोडरमल ने बनवाया था, वो भी भव्य था। 124 फीट के प्रत्येक साइड वाले वर्ग की आकृति में वो मंदिर बना था, जिसके बीच में गर्भगृह था। चारों तरफ 16*10 के मंडप थे। चारों कोने पर बाहर अलग से चार मंडप और छोटे-छोटे मंदिर थे।
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