
देश में आजादी का जश्न (Aazadi ka Jashn) मनाया जा रहा है। 4 दिन बाद देश की आजादी को 76 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हर घर तिरंगा 2.0 अभियान की शुरुआत की जा रही है। प्रत्येक देशवासी अपने पूर्वज क्रांतिकारियों को याद कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में विभिन्न जगहों पर कई तरह के देशभक्ति कार्यक्रम भी कराए जा रहे हैं।
सावन के पवित्र माह और आजादी के जश्न (Aazadi ka Jashn) के इस सुनहरे मौके पर आज हम बात करेंगे भगवान शिव के ऐसे मंदिर के बारे में, जहाँ से 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई थी। वैसे तो उत्तर प्रदेश में ही कई क्रांतियों की शुरुआत की बात इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यूपी के मेरठ के कैंट में बाबा औघड़नाथ शिव का एक मंदिर है, जहां से क्रांति की शुरुआत हुई थी। यह मंदिर एक सिद्धपीठ है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है।
सावन महीने में शिवरात्रि पर यहां लगभग 25 लाख शिवभक्त जलाभिषेक के लिए आते हैं। इनमें 5 लाख से अधिक कांवड़िए होते हैं। वे बाबा को जल चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। वहीँ स्वतंत्रता दिवस के मौके पर (Aazadi ka Jashn) भी इस मंदिर में भक्त आकर दर्शन करते हैं, और अपने पुरखों को याद करते हैं।

Aazadi ka Jashn: कारतूस के कारण भारतीय सैनिक नहीं पीते थे पानी
बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर के महंत श्रीधर त्रिपाठी ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में इस मंदिर के महत्व और मान्यता के बारे में बताया। श्री औघड़नाथ मंदिर (Aazadi ka Jashn) में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारतीय सैनिक पानी पीने के लिए आते थे। मंदिर के पुजारियों ने भारतीय सैनिकों को यहां मौजूद कुंए से पानी पीने से मना कर दिया। क्योंकि, भारतीय सैनिक जिन कारतूस का इस्तेमाल अपनी बंदूकों में करते थे। उनमें गाय की चर्बी मिली होती थी। इसी के बाद यहां पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय सैनिकों में विद्रोह की ज्वाला भड़की थी। 1857 की क्रांति की शुरुआत यहीं से हुई थी।
समय के साथ बदला स्वरुप
बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर का शिवलिंग बहुत ही छोटे आकार का है। यह शिवलिंग खुद प्रकट हुआ है। यहां मेरठ के अलावा दूर-दूर से शिवभक्त जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। 1944 तक यह मंदिर एक कुंए के रूप में था। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता (Aazadi ka Jashn) गया। मंदिर के सौंदर्यीकरण के बाद इसका रूप बदलता गया। आज ये मंदिर सफेद रंग के संगमरमर में बना हुआ है।

1944 में नए स्वरुप में आया मंदिर
बाबा औघड़नाथ मंदिर की ऊंचाई 75 फीट तक की है। पहली बार इस मंदिर का 1944 में जीर्णोद्धार (रिनोवेशन) कराया गया। उसके बाद 1968 में जगतगुरु शंकराचार्य कृष्ण बोधाश्रम महाराज ने नए मंदिर का शिलान्यास कराया। मंदिर के बीच में भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की मूर्तियां हैं। मंदिर के उत्तरी दिशा की तरफ नंदी महाराज की मूर्ति लगी हुई है।
परिसर के अंदर ही बना है राधा-कृष्ण का मंदिर
बाबा औघड़नाथ मंदिर के पीछे सत्संग भवन बना हुआ है। यहां पर भजन कार्यक्रम किए जाते हैं। परिसर के अंदर ही भगवान कृष्ण और राधा जी का भी एक मंदिर है। बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर और राधा-कृष्ण मंदिर दोनों की ऊंचाई 75 फीट है। दोनों मंदिर सफेद रंग के संगमरमर से बने हुए हैं।
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