उत्तर प्रदेश में कोडिन युक्त कफ सिरप को लेकर सामने आया मामला केवल एक स्वास्थ्य या दवा से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह संगठित अपराध, अवैध तस्करी और गलत सूचना के फैलाव से जुड़ा गंभीर प्रकरण बन चुका है। अब तक इस मामले में 128 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, 280 ड्रग लाइसेंस रद्द किए गए हैं और लाखों की संख्या में कफ सिरप की शीशियां जब्त की गई हैं। इसके साथ ही इस अवैध नेटवर्क से जुड़े 32 प्रमुख आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है। योगी सरकार इस पूरे सिंडिकेट को जड़ से खत्म करने के लिए लगातार सख्त कार्रवाई कर रही है, लेकिन समानांतर रूप से इस मामले को लेकर भ्रम और अफवाहें भी तेजी से फैलाई जा रही हैं।
देश के अलग-अलग हिस्सों में कफ सिरप से जुड़ी घटनाओं को उत्तर प्रदेश के इस मामले से जोड़कर संदर्भ से बाहर प्रस्तुत किया जा रहा है। सोशल मीडिया और कुछ माध्यमों पर ऐसी जानकारियां फैलाई जा रही हैं, जिससे आम लोग भ्रमित हो रहे हैं। संभव है कि आप भी ऐसी किसी भ्रामक सूचना की चपेट में आए हों। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि इस पूरे विवाद को तथ्यों के आधार पर समझा जाए।
क्या है उत्तर प्रदेश का कफ सिरप मामला?
संक्षेप में कहा जाए तो यह मामला वैध दवाओं की अवैध बिक्री, भंडारण और तस्करी से जुड़ा है। जांच में सामने आया कि कुछ आपराधिक तत्वों ने एक संगठित रैकेट बना रखा था, जिसके जरिए ऐसी कफ सिरप को खुले बाजार में बेचा जा रहा था, जिन्हें केवल डॉक्टर की पर्ची पर ही बेचा जाना चाहिए। नियमों को दरकिनार करते हुए फर्जी दस्तावेजों के सहारे इन दवाओं की जरूरत से कहीं अधिक ओवर-स्टॉकिंग की जा रही थी।
इसके बाद शेल कंपनियों के माध्यम से इन सिरपों को दूसरे राज्यों और सीमापार तक भेजा जाता था। यह नेटवर्क केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं था, बल्कि कश्मीर, पश्चिम बंगाल और यहां तक कि बांग्लादेश तक इसकी पहुंच पाई गई। उत्तर प्रदेश एसटीएफ को जब इस रैकेट की सूचना मिली तो लखनऊ में छापा मारा गया, जहां से पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ।
क्या कफ सिरप बेचना गैरकानूनी है या दवा मिलावटी है?
इस मामले को लेकर सबसे बड़ा भ्रम यही फैलाया जा रहा है कि जब्त की गई कफ सिरप नकली या जहरीली है। हालांकि, यह पूरी तरह गलत है। एफएसडीए (फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के कमिश्नर रौशन जैकब ने 8 दिसंबर को हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ किया था कि अब तक सामने आए सभी मामले ओवर-स्टॉकिंग, अवैध बिक्री और तस्करी से जुड़े हैं, न कि दवा की गुणवत्ता से।
उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन कफ सिरप को जब्त किया गया है, वे शेड्यूल-एच के अंतर्गत आती हैं और चिकित्सकीय सलाह पर इनका उपयोग पूरी तरह वैध है। कार्रवाई का आधार इन दवाओं को नियमों के खिलाफ बेचना और उनका अवैध भंडारण करना है। चूंकि इस पूरे नेटवर्क को एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) एक्ट के दायरे में लाया गया है, इसलिए आरोपितों को जमानत मिलने में भी कठिनाई हो रही है।
क्या तमिलनाडु कफ सिरप केस से है कोई संबंध?
तमिलनाडु में निर्मित एक कफ सिरप के सेवन से मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत का मामला पूरी तरह अलग है। उत्तर प्रदेश में अब तक कफ सिरप पीने से किसी बच्चे की मौत की कोई पुष्टि नहीं हुई है। तमिलनाडु से जुड़े उस मामले की जांच केंद्र सरकार कर रही है। उत्तर प्रदेश के प्रकरण को उससे जोड़ना केवल भ्रम फैलाने का प्रयास है।
वास्तविकता यह है कि उत्तर प्रदेश में चल रही जांच वैध दवाओं की अवैध तस्करी पर केंद्रित है। इसका मध्य प्रदेश या राजस्थान में हुई दुखद घटनाओं से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
क्या कफ सिरप का इस्तेमाल नशे के रूप में किया जाता है?
चिकित्सकीय दृष्टि से कोडिन युक्त कफ सिरप का उपयोग खांसी और उससे जुड़े दर्द से राहत के लिए किया जाता है। यह एक ओपियोइड दवा है, जिसमें अफीम से प्राप्त तत्व शामिल होते हैं। आमतौर पर प्रति 5 मिलीलीटर में 10 से 20 मिलीग्राम कोडिन होती है। डॉक्टर की सलाह पर सीमित मात्रा में इसका सेवन दवा के रूप में सुरक्षित माना जाता है।
हालांकि, जांच में यह भी सामने आया है कि नशे के आदी लोग इसका अत्यधिक मात्रा में सेवन करते हैं। अधिक मात्रा में ली गई कोडिन 6 से 8 घंटे तक नशे जैसा प्रभाव देती है, जिसके कारण यह नशे के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होने लगी।
120 रुपये की सिरप 1500 रुपये में क्यों बिकती है?
इसका जवाब सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से जुड़ा है। बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुल देशों और भारत के कुछ राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और सिक्किम—के उन इलाकों में, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, इस कफ सिरप का उपयोग नशे के तौर पर किया जा रहा है। चूंकि इस्लाम में शराब को हराम माना जाता है, इसलिए कोडिन युक्त कफ सिरप नशे का एक ‘हलाल’ विकल्प बन गया। यही वजह है कि 120 से 160 रुपये की कीमत वाली यह दवा अवैध बाजार में 1200 से 1500 रुपये तक में बेची जा रही है।
अफवाहों से रहें दूर
स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश का कफ सिरप मामला नकली दवा या उससे होने वाली मौतों से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह अवैध भंडारण, गैरकानूनी बिक्री और अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय तस्करी का मामला है। तमिलनाडु में हुई मौतों से इसे जोड़कर भ्रम फैलाया जा रहा है, ताकि इस सिंडिकेट के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई कर रही योगी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके। ऐसे में जरूरी है कि अफवाहों से दूर रहकर केवल तथ्यों के आधार पर इस पूरे मामले को समझा जाए।