वो दिन था लॉक डाउन का, सोचा न था कि जब सारी दुनिया एक दूसरे से दूर भाग रही होगी, तब हम दोनों एक दूसरे के यूं नजदीक आ जाएंगे।
खैर, जो भी हो, अभी दुनिया के लिए समय थोड़ा विपरीत शुरू हो रहा था। अब तक हम दोनों एक दूसरे के लिए अंजान थे। अरे हां, कुछ क्षण पहले तुम्हारा नाम सुना था, लेकिन पता न था कि तुम हमेशा के लिए मेरे ख्यालों की मल्लिका बन जाओगी। वैसे तो फिल्मों में ही होता है कि नाम सुनकर हवाएं तेज होने लगे, पंक्षी सुरीली गीत गाने लगे, अपने साथ ऐसा कुछ नहीं था। सब कुछ फिलहाल नार्मल चल रहा था।
दुनिया एक विपरीत परिस्थितियों में जी रही थी। लोग एक दूसरे के पास जाने से डरते थे, लेकिन जब कुछ ही दिनों में तुमसे मुलाकात हुई, मन का भंवर बस तुम्हारे लिए ही हिलोरे मारने लगा। तुम्हारे पास बैठना, तुमसे बातें करना, अच्छे बुरे लम्हों को तुम्हारे साथ बीताना, ये सब जैसे अच्छा लगने लगा। कुछ ही दिनों में हम दोनों को समझ आ गया कि अब हम प्रेम में पड़ चुके थे। लॉकडाउन का पहला फेज बीतने को था, लोगों को भी अब समझ आ चुका था कि इसी के साथ जीना है।
हम दोनों अब एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे थे। साथ मरने जीने - मरने की कसमें तो नहीं, लेकिन जितना भी समय साथ रहना था, एक दूसरे संग पूरी ईमानदारी से रहना था। समय बीतता गया, रिश्ते और गहराते गए।
अब डर बस एक ही बात का था कि कहीं तुम मुझे छोड़कर चली न जाओ, खैर हर आदि का एक अंत होता है। शायद, राम वन न जाते तो 'दशरथ नंदन' से 'मर्यादा पुरुषोत्तम' ना बनते। कृष्ण मथुरा न छोड़ते तो 'योगेश्वर' न बनते। इतिहास त्याग मांगता है, हर तपस्या के पीछे एक त्याग की कहानी होती है।
अपना भी श्रृंगार रस समाप्त होने को था, अब बारी थी वियोग श्रृंगार की। लॉक डाउन अब समाप्त हो चुका था। दुनिया पटरी पर आ चुकी थी। एक अंतिम बार हम मिले, अंतिम विदाई ली, वो चंद महीनों की यादें आज भी ताजा हैं। अब तो तुम्हारी तस्वीर देखकर ही दिल को तसल्ली देता हूं। तुम्हारी कमी हमेशा खलती रहेगी, तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता। अब शायद ही कभी जीवन में मिलना हो, न मिलें तो बेहतर है।
खैर, जहां रहो, खुश रहो।
- अभिषेक सेठ