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मेरा पहला पहला प्यार और उसका अलगाव

"अच्छा ! तुम्हें गए बरसों बीते ??

लगता है यूं कल की ही बात थी।

याद नहीं किया माना,

तुम भूल कैसे गई?

तस्वीर ही तो दिल में बसी है तुम्हारी?

जन्नत तो तुम्हारे आखों में बसी थी।"


कुछ यही ख़याल आज मन में आए, जब एक लम्बे अरसे बाद तुम्हारा मैसेज देखा। हम 2024 में आ गए थे, देखा तो 2014 का मैसेज पड़ा था। सोचा एक लम्हा गुजर गया, तुम्हें गए हुए। 10 साल कैसे बीते पता ही न चला। लगता है अभी कल ही तुम मिली थी मुझसे। 


खैर ! जो भी हो, तुम खुश हो अपनी लाइफ में ये सुनकर अच्छा लगता है। अब तो तुम्हारी गलियों में जाना भी नहीं होता। वरना कभी अड़ियां लगती थीं। कभी गलती से उधर चले जाओ तो पुरानी याद ताजा हो जाती है। ये सब हमारे जीवन के सुंदर काण्ड जैसा था। जिसमें कभी लंका दहन नहीं होता। कांड तो ज़रूर हैं, लेकिन यहां तक सारे सुन्दर ही हैं।


आगे की कहानी सीता के वनवास जाने के बाद राम के संघर्षों की है। हालांकि राम जैसा व्यक्तित्व मुझमें कहां, हम तो उनके अंश मात्र भी नहीं। लेकिन मन में जो ख्याल आया, सोचा लिख दूं। यादें तो बहुत हैं, चाहे वो तुम्हारे साथ पार्क में घूमना, या घाट की सीढ़ियों पर अकेले में बैठना, या फिर बन्द कमरे में तुमसे मोहब्बत करना सब अच्छे से याद है। तुम्हारे साथ जो सुकून मिलता था, वो कहीं और कहां !


लेकिन अब हालात भी बदल चुके हैं। परिस्थितियां बिल्कुल भी वैसी नहीं हैं, जैसी पहले थी। अब किसे इश्क़ करने की फुरसत है। कौन अब दोबारा उन घाट की सीढ़ियों पर बैठने जाए, जो साक्षी हैं हमारे मोहब्बत की, जो साक्षी हैं हमारे कसमों की। जिनके कण- कण देखा है, हमारे पहले व आखिरी मिलन को, हमारी कहानी को, जो घाट से शुरू हुई और घाट पर ही खत्म हुई। 


सच कहूं तो तुम्हें खुद से कभी दूर ही नहीं कर पाया। जब कभी घाट पर एकांत में बैठता, पास में तुम्हें ही पाता था। एक आदत सी लग गई थी तुम्हारी। ख्वाबों में भी तुम अक्सर दिख ही जाया करती हो। इसलिए तुमसे दूर होने का ज़रा भी गम नहीं। हां ! वो बात और है कि तुम पहले की तरह उतना नहीं बोलती, लेकिन तन्हाई में तन्हा न होने का अहसास तुम दिलाती हो। कभी कभी जब हम सोचते हैं अपने बीते दिनों के बारे में तो लगता है, "अरे यार ! वो सब बचपना था।" लेकिन तभी अंतर्मन से आवाज़ आती है, "नहीं ! वो मोहब्बत थी।" 


बचपन से जवान तो हो गए, लेकिन याद अभी भी ताजा है, लगता है तुम अभी ही आ जाओगी और मैं तुम्हें गले से लगा लूंगा। लेकिन क्यूं ये भूल जाता हूं कि तुम अब इस दुनिया में नहीं। अब लौट कर नहीं आओगी तुम कभी। तुम्हारा सफर हमारे दिल से होकर श्मशान तक पहुंचना था। बदकिस्मत ऐसा कि अंतिम समय में पता भी न चला कि तुम हमें हमेशा के लिए छोड़कर चली गई। अब तुम बस एक याद बनकर हमारे दिल में जिंदा हो। सोचा था कि तुम कभी चली जाओगी तो कैसे रहेंगे तुम्हारे बिना। लेकिन तुम अब भी यहीं हो, यहीं हो।


© अभिषेक सेठ

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