वाराणसी में कोडीन आधारित कफ सिरप की अवैध सप्लाई से जुड़े सबसे बड़े नेटवर्क पर पुलिस कमिश्नरेट की एसआईटी ने एक और बड़ा खुलासा किया है। जांच टीम ने सरगना शुभम जायसवाल के दो नज़दीकी सहयोगियों—विशाल जायसवाल और बादल आर्य को गिरफ्तार कर जाल के कई अनसुने पहलुओं पर से परदा उठा दिया। दोनों आरोपियों ने दवा लाइसेंस के नाम पर फर्जी फर्में खड़ी कीं, लाखों के काल्पनिक बिल तैयार किए और माल को बांग्लादेश तक पहुंचाया। पूछताछ में यह भी सामने आया कि हर खेप पर इन्हें 25 से 30 हजार रुपए और हर बोतल पर एक रुपए का कमीशन मिलता था। फर्म के खाते में आने वाला मोटा पैसा अंत में शैली ट्रेडर्स के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था।
सोमवार को आयोजित प्रेस वार्ता में डीसीपी देवेश बसबाल ने बताया कि जांच के दौरान शुरुआती जानकारी मिली है कि रैकेट का मुख्य संचालक शुभम जायसवाल देश छोड़कर बाहर भाग चुका है। ऐसे में उसकी गिरफ्तारी के लिए लुकआउट सर्कुलर जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इंटरपोल के माध्यम से रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की तैयारी भी की जा रही है। साथ ही, शुभम से जुड़े एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से भी गहन पूछताछ की जा रही है, जिससे कई वित्तीय लिंक मिलने की उम्मीद है।
सीए देवेश जायसवाल के पास था सभी अकाउंट का कंट्रोल
गिरफ्तार आरोपियों ने जांच में बताया कि सभी फर्मों के बैंक खातों की पूरी जानकारी शुभम के भरोसेमंद सीए देवेश जायसवाल के पास रहती थी। देवेश ही सभी ट्रांसफर और ओटीपी संबंधित प्रक्रिया को संभालता था। आरोपियों के मुताबिक, करीब एक वर्ष में उनके माध्यम से लगभग 7 करोड़ रुपए का टर्नओवर दिखाया गया जबकि असल में इन फर्मों पर सामान का कोई लेन-देन नहीं होता था। फर्में महज दिखावटी थीं और सभी ई-वे बिल व टैक्स इनवॉइस भी इन फर्जी कंपनियों के नाम पर तैयार किए जाते थे। वास्तविक तौर पर सिरप सीधे दूसरी जगह भेजा जाता था।
जांच में यह भी सामने आया है कि कई वाहनों के नाम पर तैयार किए गए ई-वे बिल पूरी तरह फर्जी थे—कुछ नंबर स्कूल वैन के निकले तो कुछ यात्री वाहनों के। न तो फर्मों के पास किसी प्रकार की तकनीकी योग्यता थी और न ही कर्मियों के पास कोई संबंधित डिग्री। इसके बावजूद देवेश जायसवाल की ओर से तीन वर्ष का अनुभव प्रमाणपत्र जारी कर लाइसेंस का इंतजाम कराया गया था।
आरोपियों का कबूलनामा: ‘हमें तो केवल मामूली रकम ही मिलती थी’
पूछताछ के दौरान बादल आर्य ने बताया कि उसका फर्म भी देवेश ने ही खुलवाया था और उसे प्रति माह 20 से 25 हजार रुपए मिल जाते थे। एक बार फर्म का भौतिक सत्यापन करने प्रशासनिक टीम उसके यहां पहुंची भी थी, लेकिन पूरी प्रक्रिया देवेश ने संभाल ली थी।
दूसरी ओर, विशाल जायसवाल ने बताया कि वह हुकुमगंज में रहता है और उसके मामा दिलीप जायसवाल के बेटे देवेश ने उसका हरिओम फार्मा नाम से फर्म रजिस्टर कराया था। उसके मुताबिक, फर्म के नाम पर माल मंगाया जरूर जाता था, लेकिन सिरप कभी उसकी दुकान तक पहुंचा ही नहीं। बदले में उसे केवल 20 से 30 हजार रुपए नकद मिलते थे। छह महीने पहले उसे एनसीपी का नोटिस मिला जिसके बाद उसने जीएसटी दफ्तर में जाकर फर्म को बंद करा दिया। उसका दावा है कि करीब सवा साल से यह पूरा खेल चल रहा था।
पिछले महीने दर्ज हुई एफआईआर से खुली परतें
डीसीपी गौरव बसबाल के अनुसार, ड्रग विभाग ने पिछले महीने 28 संदिग्ध फर्मों की सूची पुलिस को सौंपते हुए बताया था कि ये कंपनियां यह नहीं बता पा रहीं कि कोडीनयुक्त सिरप की सप्लाई आखिर किसे की गई। उसी आधार पर जब पुलिस ने खातों की जांच की तो पता चला कि कई फर्में कागजों में बनाई गई थीं, जिनका कोई वास्तविक अस्तित्व या व्यापार नहीं था। जांच में यह भी सामने आया कि प्रति बोतल एक रुपए के हिसाब से कमीशन तय किया गया था।
शुभम के पिता भी पकड़े जा चुके, 200 करोड़ की संपत्ति जब्त
इस पूरे रैकेट के केंद्र में शामिल शैली ट्रेडर्स के प्रोपराइटर और शुभम के पिता भोला प्रसाद को सोनभद्र पुलिस पहले ही कोलकाता से गिरफ्तार कर चुकी है। वहीं शुभम की तलाश में एसटीएफ और एसआईटी लगातार दबिश दे रही है। इन दोनों के खिलाफ कोतवाली समेत कई थानों में 10 से अधिक मामले दर्ज हैं। ईडी की जांच के दौरान परिवार की 200 करोड़ रुपए से अधिक की अवैध संपत्ति उजागर हो चुकी है।
एसआईटी चीफ एडीसीपी काशी जोन सरवणन टी. ने बताया कि दो और संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है और उनके दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं। उधर, निरंतर जारी पुलिस व नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई के बीच लगभग 10 दवा व्यापारियों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें अफवाहों और पुलिस जांच पर रोक लगाने की अपील की गई है। इस मामले में वाराणसी कोर्ट में आज सुनवाई भी तय है।
FSDA ने कैसे कसा शिकंजा?
फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ने इस नेटवर्क पर बड़ा प्रहार किया है। विभाग ने मैन्युफैक्चरिंग और डिस्ट्रीब्यूशन स्तर पर सख्ती करते हुए उन शेल फर्मों की जांच शुरू की, जिनके नाम पर ‘मेडिकल सप्लाई’ दिखाकर कोडीन सिरप को नशे के बाजार तक पहुंचाया जा रहा था। यह नेटवर्क वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आज़मगढ़, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र समेत पूरे पूर्वांचल में सक्रिय था।
वाराणसी में अकेले 26 फर्मों पर 15 नवंबर को केस दर्ज किया गया। इसके बाद 12 और फर्में जांच के दायरे में आईं। जौनपुर में दिल्ली स्थित वन्या ट्रेडर्स और तीन स्थानीय फर्मों पर 2.6 करोड़ रुपए के संदिग्ध लेन-देन को लेकर कार्रवाई हुई। पूर्वांचल और आसपास के जिलों में अब तक 128 से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं। FSDA लगातार नोटिस जारी कर लाइसेंस रद्द कर रहा है।
ED की एंट्री से बढ़ा दबाव, 500 करोड़ से अधिक का आर्थिक खेल
नवंबर 2025 के अंत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत केस दर्ज किया। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार इस रैकेट का आर्थिक आकार 500 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है। ईडी अब हवाला नेटवर्क, शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लान्ड्रिंग और भ्रष्टाचार की कड़ियों को खंगाल रही है। जांच का दायरा उत्तर प्रदेश से निकलकर मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और झारखंड तक फैल चुका है। वाराणसी में ही 15 सदस्यीय ईडी टीम लगातार छापेमारी और वित्तीय विश्लेषण में लगी है।