नई दिल्ली/श्रीनगर। पहलगाम आतंकी हमले में निर्दोष हिन्दुओं की निर्मम हत्या के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के प्रति अपना रुख और सख्त कर लिया है। शुक्रवार को जलशक्ति मंत्रालय की एक अहम बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 से लागू सिंधु जल संधि को तीन चरणों में स्थगित किया जाएगा। इस फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए तीन स्तरों पर रणनीति तैयार की जा रही है।
इस उच्च स्तरीय बैठक की अगुवाई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की। उनके आवास पर आयोजित इस बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर और जलशक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल मौजूद रहे। बैठक के बाद जलशक्ति मंत्री ने स्पष्ट किया कि अब पाकिस्तान को भारत की ओर से सिंधु नदी की एक भी बूंद पानी नहीं दी जाएगी। हालांकि, तीन चरणों और रणनीति की विस्तृत जानकारी साझा नहीं की गई है।
पहलगाम हत्याकांड के बाद बदली नीति
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के निकट बैसरन घाटी में आतंकियों ने 26 हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या कर दी थी, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था। इस हमले में 10 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। इसके अगले ही दिन 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की आपात बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ पांच कड़े फैसले लिए गए। इन्हीं में से एक फैसला सिंधु जल संधि को स्थगित करने का भी था।
उमर अब्दुल्ला का समर्थन, कश्मीर को बताया पीड़ित
इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी भारत सरकार के कदम का समर्थन किया। श्रीनगर में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि जम्मू-कश्मीर पहले दिन से ही इस संधि के खिलाफ रहा है। "हमारा मानना है कि सिंधु जल संधि कश्मीर के लोगों के हितों के खिलाफ है। इससे राज्य को काफी नुकसान हुआ है," उमर अब्दुल्ला ने कहा।
भारत ने भेजा आधिकारिक पत्र, दी कानूनी चेतावनी
इस बीच भारत की ओर से जलशक्ति सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव मुर्तजा को एक पत्र लिखकर सूचित किया है कि भारत सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर रहा है। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि यह संधि मित्रतापूर्ण संबंधों की पृष्ठभूमि में की गई थी, लेकिन जब पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवाद का समर्थन करता है, तो ऐसी किसी संधि का औचित्य नहीं बचता।
पत्र में पांच अहम बिंदुओं का उल्लेख किया गया है:
1. संशोधन की मांग: भारत ने संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत समझौते में बदलाव की बात कही है।
2. बदलती जनसंख्या: बीते छह दशकों में भारत की जनसंख्या कई गुना बढ़ गई है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ी है।
3. आतंकवाद का मुद्दा: पाकिस्तान लगातार जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है, जो संधि की भावना के खिलाफ है।
4. सुरक्षा बाधाएं: सीमा पार हमलों के कारण भारत अपने जल अधिकारों का उपयोग भी ठीक से नहीं कर पा रहा।
5. पाकिस्तान की चुप्पी: भारत के तमाम आग्रहों के बावजूद पाकिस्तान की ओर से कोई जवाब नहीं आया, जिससे स्पष्ट होता है कि वह संधि का उल्लंघन कर रहा है।
पाकिस्तान की तीखी प्रतिक्रिया, बताया 'युद्ध की घोषणा'
भारत के इस कदम पर पाकिस्तान सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सिंधु जल संधि को रोकने के निर्णय को "एक्ट ऑफ वॉर" यानी युद्ध की घोषणा करार दिया है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के मुताबिक, यदि भारत इस दिशा में आगे बढ़ता है तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
संधि का इतिहास और जल बंटवारा
सिंधु जल संधि 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी। इसके तहत सिंधु बेसिन की छह नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था। रावी, ब्यास और सतलुज पर भारत को पूर्ण अधिकार मिला था, जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम का 80% पानी पाकिस्तान को देने की व्यवस्था की गई थी।
65 वर्षों तक इस संधि ने दोनों देशों के बीच जल विवाद को रोके रखा, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। भारत सरकार का कहना है कि वह अब अपने अधिकारों के अनुरूप कार्य करेगा और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होंगे।