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काशी में 350 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन, पूर्व महंत आवास से निकली गौना बारात, गौरा को ब्याह लाए बाबा विश्वनाथ, इतिहास में पहली बार ढककर ले जाई गई मूर्ति

वाराणसी। काशी में परंपराओं का विशेष महत्व है, और इन्हीं परंपराओं में से एक है बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के गौने की रस्म, जो बीते 350 वर्षों से निभाई जा रही है। इस वर्ष यह परंपरा एक अलग संदर्भ में संपन्न हुई, क्योंकि काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत के निधन के बाद उनके परिवार ने इस रस्म को निभाया।

 


हर साल दोपहर 3 बजे निकलने वाली यह गौना बारात इस बार सुबह 8:22 बजे महंत आवास से रवाना हुई। पुलिस सुरक्षा व्यवस्था के बीच यह बारात अपने पारंपरिक मार्ग से होते हुए काशी विश्वनाथ धाम पहुंची। परंपरा के अनुसार, बाबा विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा को शंकराचार्य चौक पर भक्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है। किंतु इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि मूर्ति को पूरी तरह ढककर महंत आवास से मंदिर तक ले जाया गया।

 


गौना परंपरा का ऐतिहासिक महत्व


गौना बारात का काशी में विशेष महत्व है। यह परंपरा इस मान्यता से जुड़ी है कि भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से होने के बाद उन्हें गौने के रूप में ससुराल से विदा कर काशी लाया जाता है। हर वर्ष इस शोभायात्रा के दौरान पालकी को मंदिर चौक से गर्भगृह तक ले जाया जाता था, जहां सप्तऋषि आरती के बीच मूर्ति को स्थापित किया जाता था। इसके पश्चात भक्त बाबा विश्वनाथ से होली खेलने की अनुमति मांगते थे और फिर अबीर-गुलाल से रंगों का त्योहार मनाते थे।

 


इस बार परंपरा को निभाने के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए। महंत आवास से मूर्ति को ढककर विश्वनाथ मंदिर ले जाया गया। मंदिर परिसर में इसे विधि-विधान से स्थापित किया गया और दोपहर 1 बजे विशेष पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद मंदिर के चारों कोनों में महादेव और माता गौरा की शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें भक्तों ने गुलाल उड़ाकर इस रस्म को हर्षोल्लास से संपन्न किया।


शाम को गर्भगृह में होगी सप्तऋषि आरती


शाम 4 बजे माता गौरा और बाबा विश्वनाथ की प्रतिमा को गर्भगृह में लाया जाएगा। सप्तऋषि आरती के दौरान पूरे मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाएगा और बाबा को विशेष रूप से गुलाल अर्पित किया जाएगा। इस रस्म के पूरा होते ही काशी में रंगों के उत्सव की शुरुआत हो जाएगी।

 


महंत परिवार को जारी किया गया था नोटिस


इस परंपरा को निभाने के दौरान मंदिर न्यास और प्रशासन के बीच कुछ मतभेद सामने आए। प्रशासन की ओर से महंत परिवार को यह निर्देश दिया गया था कि बिना अनुमति के वे अपने आवास से भगवान शिव और माता पार्वती की चल प्रतिमा को मंदिर नहीं ले जा सकते। यह नोटिस रंगभरी एकादशी से ठीक पहले शनिवार की रात को जारी किया गया था।


दशाश्वमेध थाना प्रभारी योगेंद्र प्रसाद की ओर से भेजे गए इस नोटिस में कहा गया कि पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद से व्यवस्थाएं बदली हैं, और अब किसी भी बाहरी प्रतिमा को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है। प्रशासन ने इस बात पर भी चिंता जताई कि अगर जुलूस के दौरान बड़ी संख्या में भीड़ एकत्र होती है, तो इससे सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

 


मंदिर प्रशासन और महंत परिवार के बीच बना सहमति का रास्ता


महंत पुत्र वाचस्पति तिवारी ने इस परंपरा को जारी रखने की इच्छा जताई और इसके लिए अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से चर्चा की गई। अंततः मंदिर चौक पर पालकी रखकर पूजन करने पर सहमति बनी, जिससे परंपरा भी निभाई जा सके और प्रशासन की सुरक्षा चिंताओं का भी समाधान हो सके।


गौरा सदनिका में हुआ विशेष पूजन और स्वागत


गौना रस्म की शुरुआत महंत आवास, जिसे गौरा सदनिका कहा जाता है, से की गई। जब बाबा विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा यहां पहुंची, तो विशेष आयोजन किए गए। बाबा के स्वागत के लिए पारंपरिक तरीके से खिचड़ी, रंगभरी ठंडाई और गुलाबजल अर्पित किया गया। इसके बाद महिलाओं और कलाकारों ने मंगलगीत, लोकनृत्य और भक्ति संगीत प्रस्तुत किए।


महंत वाचस्पति तिवारी के अनुसार, इस बार महादेव को मिथिलांचल से आई विशेष देव किरीट धारण कराई गई। बाबा को राजसी पगड़ी और मेवाड़ी परिधान पहनाया गया, जिसे नागा साधुओं ने अर्पित किया था। वहीं, माता गौरा गुलाबी बनारसी साड़ी में भक्तों को दर्शन देंगी।

 


रंगभरी एकादशी से होली का शुभारंभ


महंत पुत्र वाचस्पति तिवारी ने बताया कि यह परंपरा पिछले 350 वर्षों से निभाई जा रही है। इस अवसर पर पूर्व महंत का आवास माता गौरा के मायके के रूप में सजाया जाता है, और बाबा विश्वनाथ गौने के बाद चांदी की पालकी में सवार होकर भक्तों के साथ अबीर-गुलाल खेलते हैं, जिससे काशी में होली का शुभारंभ होता है। इस वर्ष फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, यानी 10 मार्च को यह आयोजन किया जा रहा है।

 


सावन के झूलनोत्सव में नहीं जा सकी थी प्रतिमा


गौरतलब है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत के आवास से पंचबदन चल रजत प्रतिमा हर वर्ष सावन में झूलनोत्सव के अवसर पर मंदिर परिसर तक जाती थी। किंतु इस बार मंदिर न्यास ने इसे अनुमति नहीं दी थी और खुद की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की थी। प्रशासन ने तब भी सुरक्षा का हवाला देते हुए प्रतिमा को महंत आवास से बाहर ले जाने की अनुमति नहीं दी थी।


रंगभरी एकादशी के बाद भक्तों संग बाबा खेलेंगे होली


आज के दिन बाबा विश्वनाथ, माता गौरा के साथ गौने के बाद भक्तों संग होली खेलेंगे। इस दौरान भक्त अबीर और गुलाल उड़ाकर इस धार्मिक आयोजन को उल्लासपूर्वक संपन्न करेंगे। इस रस्म के कारण काशी में रंगभरी एकादशी के दिन सप्तऋषि आरती और श्रृंगार/भोग आरती के समय में बदलाव संभव है।

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