वाराणसी। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर काशी की सांध्य बेला एक अनूठे सामाजिक और सांस्कृतिक संगम की साक्षी बनी, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बनवासी कन्या रजवंती का कन्यादान कर सनातन संस्कृति की मूल भावना को साकार किया। यह अवसर केवल एक सामूहिक विवाह का आयोजन नहीं था, बल्कि सामाजिक समरसता, जातीय एकता और परिवार केंद्रित जीवन दर्शन के पुनर्स्मरण का भी पर्व था।
खोजवां स्थित शंकुलधारा पोखरे पर जैसे ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सफेद कुर्ता, पीली धोती और कंधे पर पीले गमछे के साथ मंगलगीतों के बीच पहुंचे, समूचा वातावरण वैदिक संस्कारों की आभा से आलोकित हो उठा। उनके पैरों में आलता और मस्तक पर तिलक सनातन परंपरा की गरिमा का संदेश दे रहे थे। शंखध्वनि और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच द्वारकाधीश मंदिर परिसर के पोखरे की सीढ़ियों पर सजी वेदियों पर 125 जोड़े एक साथ अग्नि को साक्षी मानकर परिणय सूत्र में बंधे।
सामाजिक दीवारों को तोड़ एक-दूजे के हुए जोड़े
इस अवसर पर मोहन भागवत ने केवल उपस्थिति ही नहीं दर्ज कराई, बल्कि अपने हाथों से रजवंती के पांव पखारकर उसे पुत्रीवत अपनाते हुए पूर्ण पारंपरिक रीति से कन्यादान की रस्म निभाई। यह दृश्य न केवल भावुक कर देने वाला था, बल्कि जातीय भेदभाव और सामाजिक दीवारों को तोड़ने का प्रतीक भी बना। रजवंती का विवाह सोनभद्र निवासी आदिवासी युवक अमन से हुआ। मंच पर बैठकर भागवत विवाह की सभी वैदिक रस्मों को देख रहे थे और पूरी आत्मीयता के साथ वर-वधू के मिलन के साक्षी बन रहे थे।
दोपहर बाद जैसे ही द्वारकाधीश मंदिर से सज-धज कर निकली बारात बग्घियों, घोड़ा गाड़ियों और बैंड बाजे के साथ शहर के प्रमुख मार्गों से निकली, लोग जगह-जगह फूलों की वर्षा और जलपान से स्वागत करते रहे। यह दृश्य एक पारंपरिक राजसी शादी की याद दिला रहा था, पर अंतर यह था कि यहां कोई जात-पात, ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं था। किरहिया चौराहा, चुंगी, गांधी चौक होते हुए बारात जब शंकुलधारा पहुंची तो कन्या पक्ष की महिलाओं ने दूल्हों का पारंपरिक परछन किया, तिलक लगाया और आरती उतारी।
रीति-रिवाजों के साथ हुए विवाह
शाम को सवा छह बजे से वैदिक आचार्यों ने वेदियों पर विवाह की विधियों को संपन्न कराना शुरू किया। हर जोड़े के साथ एक आचार्य नियुक्त था, जिसने रीति-रिवाजों का पालन कराते हुए विवाह को पूर्ण कराया। जयमाला, सिंदूरदान और सप्तपदी के साथ जब वैवाहिक रस्में पूर्ण हुईं, तो नवविवाहितों को सामाजिक सहभागिता का परिचायक बनाते हुए वस्त्र, साइकिल, सिलाई मशीन, आभूषण, नकदी और मिष्ठान जैसे उपहार भी भेंट किए गए।
विशेष बात यह रही कि इस समारोह में कई अंतरजातीय विवाह भी कराए गए, जिससे सामाजिक समावेश की दिशा में एक बड़ी पहल मानी जा रही है। समारोह में केवल विवाह ही नहीं हुए, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का बोध कराते हुए पांच हजार से अधिक लोगों ने रक्तदान, नेत्रदान और अंगदान के लिए संकल्प पत्र भी भरे। यह आयोजन समाज में केवल वैवाहिक समरसता ही नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता का भी प्रतीक बन गया।
भागवत ने परिवार में 6 बिन्दुओं पर किया फोकस
इस भव्य आयोजन के दौरान मंच से मोहन भागवत ने कुटुंब प्रबोधन के छह मूल मंत्रों पर बल देते हुए समाज में परिवार की एकता और आत्मीयता की भावना को पुनः जागृत करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली और व्यस्तता के चलते परिवार के सदस्यों में संवाद और आत्मीयता की कमी होती जा रही है, जो समाज के विघटन का कारण बन रही है। भागवत ने सुझाया कि हर परिवार को भजन, भोजन, भवन, भाषा, वेशभूषा और भ्रमण—इन छह बिंदुओं को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि परिवार के सभी सदस्य दिन में एक बार एक साथ भोजन करें, मातृभाषा में संवाद करें और पारंपरिक पोशाक अपनाकर अपने संस्कारों को प्रदर्शित करें।
हम ऐसा घर बनाएं, जो हिंदू संस्कृति की पहचान हो: भागवत
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमें ऐसा घर बनाना चाहिए जो हिंदू संस्कृति की पहचान बने। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पारिवारिक आत्मीयता समाज की नींव है और यही हमारे देश की सांस्कृतिक ताकत है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन केवल शादी का उत्सव नहीं, बल्कि एक संस्कार है, जिसे हर साल दोहराया जाना चाहिए। यह स्वभाव में बदले, यही हमारी कामना है।
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्त नंदी समेत कई जनप्रतिनिधियों, उद्यमियों, समाजसेवियों और विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने उपस्थिति दर्ज कराई। बनवासी कन्या रजवंती के पिता ने भावुक होते हुए कहा कि यह क्षण उनके लिए जीवन का सबसे गौरवपूर्ण पल है। उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख द्वारा उनकी बेटी का कन्यादान करना उनके लिए अविस्मरणीय रहेगा। यह केवल व्यक्तिगत गर्व नहीं, बल्कि पूरे बनवासी समाज के लिए सम्मान की बात है।