पहलगाम में हुए आतंकी हमले के महज एक सप्ताह बाद ही भारतीयों ने अपने अदम्य साहस से आतंकवादियों और उनके सरपरस्तों के नापाक इरादों को चकनाचूर कर दिया है। जिस तरह से पर्यटकों ने घटनास्थल पर पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी और अपना समर्थन जताया, उसने साफ कर दिया कि भारत की आत्मा को आतंक की कोई भी आंधी डिगा नहीं सकती। पाकिस्तान और उसके पाले हुए आतंकियों को भी अब यह स्पष्ट संदेश मिल चुका है कि उनके कायराना हमलों से भारतीयों के हौसले टूटने वाले नहीं हैं। अब वक्त आ गया है कि आतंकवाद के इस जहर को जड़ से खत्म किया जाए।
सोमवार को श्रीनगर से पहलगाम तक जिस तरह से टूरिस्टों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उससे न केवल आतंकियों के मंसूबे पस्त हुए हैं बल्कि पाकिस्तान के शासकों की भी पेशानी पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। बिना एक भी गोली चलाए, भारतीय नागरिकों ने यह जता दिया कि हमारा आत्मविश्वास अडिग है और अगर जरूरत पड़ी तो आतंकवाद को कुचलने के लिए हर मोर्चे पर तैयार हैं। ऐसी स्थिति में यदि आतंकियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई होती है, तो पाकिस्तान को संभलने का मौका भी नहीं मिलेगा।
पहलगाम में पर्यटकों का बुलंद हौसला
पहलगाम में पर्यटकों की वापसी ने यह भी साबित कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने की कोशिशें नाकाम होंगी। हालांकि हमले के बाद कुछ समय के लिए डर का माहौल बन गया था और बुकिंग्स रद्द होने लगी थीं, लेकिन अब टूरिस्टों ने जिस साहस और विश्वास के साथ वापसी की है, वह कश्मीर की उम्मीदों को नई उड़ान दे रहा है।
यह समय है जब सरकार को भी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करना चाहिए ताकि कश्मीर में आने वाला हर सैलानी खुद को सुरक्षित महसूस कर सके। पर्यटन केवल एक उद्योग नहीं, बल्कि कश्मीर के लोगों की रोजी-रोटी का बड़ा जरिया है। इसके साथ-साथ यह कश्मीर और भारत के बाकी हिस्सों के बीच सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव का भी सेतु है।
पाक की नापाक नजर कश्मीर की तरक्की पर
बीते कुछ वर्षों में जम्मू और कश्मीर ने विकास की नई इबारत लिखी थी। 2018 तक जहां घाटी में आतंकवाद चरम पर था, वहीं हाल के वर्षों में आतंकी घटनाओं में एक तिहाई से भी ज्यादा कमी आई थी। टैक्स संग्रहण में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। जहां 2014 से 2021 के बीच आठ वर्षों में निवेश 900 करोड़ रुपए तक नहीं पहुंचा था, वहीं 2022-23 में यह 2,150 करोड़ को पार कर गया और अनुमान है कि हालिया वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा 5,000 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में यह उल्लेख किया कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है, नागरिकों की आय बढ़ रही है और नए अवसर सृजित हो रहे हैं। यह सब देखकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां बौखला उठी थीं और इसी बौखलाहट में उन्होंने कश्मीर की अमन-शांति को एक बार फिर से चोट पहुंचाने का प्रयास किया।
पर्यटन बना उम्मीद की नई किरण
पहलगाम हमले के बाद हालांकि एक झटका जरूर लगा था। रिपोर्टों के अनुसार 60-90% तक होटल बुकिंग्स रद्द हो गई थीं। होटल संघों ने बताया कि अगस्त के महीने के लिए ही 13 लाख से अधिक बुकिंग्स रद्द हो चुकी थीं। हालांकि पर्यटन सामान्य स्थिति का पूर्ण पैमाना नहीं होता, लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए इसका सीधा संबंध आर्थिक और सामाजिक स्थिरता से है।
2021 से 2024 के बीच जम्मू क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या लगभग 90% बढ़ी, जबकि कश्मीर में यह आंकड़ा 425% तक उछला। वर्ष 2021 में जहां कश्मीर में 6.7 लाख टूरिस्ट पहुंचे थे, वहीं 2024 में यह संख्या 35 लाख को पार कर गई थी। विदेशी पर्यटकों के आंकड़े भी उत्साहजनक रहे। 2021 में जहां केवल 1,614 विदेशी सैलानी आए थे, वहीं पिछले वर्ष यह संख्या बढ़कर 43,654 हो गई थी।
यह सब इस बात का प्रमाण था कि देश और दुनिया का कश्मीर पर भरोसा बढ़ रहा था।
पर्यटन को बचाए रखना है राष्ट्रीय संकल्प
सरकार के लिए अब सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए कि कश्मीर एक भी सीजन के लिए टूरिस्ट मानचित्र से गायब न हो। अगर एक बार पर्यटकों का विश्वास डगमगाया तो इसका असर वर्षों तक दिख सकता है। कश्मीरी जनता की आजीविका पर्यटन पर निर्भर है और उन्हें अलगाव की भावना से निकालने के लिए भी पर्यटन एक अहम साधन है।
हमें यह संकल्प लेना होगा कि मुट्ठीभर आतंकियों को कश्मीर को फिर से पीछे धकेलने की इजाजत नहीं दी जाएगी। 2025 का टूरिस्ट सीजन अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है। गर्मियों की छुट्टियां और अमरनाथ यात्रा अभी शेष हैं। ऐसे में सही रणनीति और सुरक्षा प्रबंधों के जरिए घाटी में फिर से रौनक लौटाई जा सकती है।
जिंदगी का जज्बा आतंक से बड़ा
पिछले साल अप्रैल के अंत तक तीन लाख से ज्यादा पर्यटक पहलगाम आए थे। इस साल भी शुरुआत शानदार रही थी, लेकिन हमले के बाद स्थिति डगमगाई। फिर भी जो पर्यटक साहस के साथ पहलगाम लौटे हैं, उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि भारतीय जिंदादिली कभी आतंक के सामने हार नहीं मानती।
अब वक्त आ गया है कि आतंक के फन को हमेशा के लिए कुचल दिया जाए ताकि कश्मीरियत की खूबसूरती पर कोई आंच न आए और कश्मीर फिर से जन्नत बन सके।