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लारेंस बिश्नोई के सहयोगी आशीष बिश्नोई को मिली जमानत, पाकिस्तान बॉर्डर के पास से वाराणसी के साड़ी व्यापारी से की थी 27.50 लाख की ठगी
वाराणसी। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, विनोद कुमार की अदालत ने कुख्यात गैंगस्टर लारेंस बिश्नोई के सहयोगी और राजस्थान के अनूपगढ़ निवासी आशीष बिश्नोई की जमानत को मंजूरी दी है। आशीष ने अपने साथियों संग वाराणसी के एक साड़ी व्यापारी से निवेश के नाम पर 27.50 लाख रुपये ठगे थे। आशीष एक अंतरराष्ट्रीय हैकर है और लारेंस बिश्नोई तथा टुल्लू गैंग को सहयोग करता है।
इस मामले में महमूरगंज के रहने वाले अजय कुमार श्रीवास्तव ने 8 अगस्त 2024 को साइबर थाने में दर्ज कराई शिकायत में बताया कि साइबर अपराधियों ने BRP देसाई नामक व्हाट्सएप नंबर से संपर्क किया और खुद को संस्थागत निवेश प्राधिकरण का हिस्सा बताते हुए शेयर बाजार में निवेश का झांसा दिया। उन्होंने इस ठगी के लिए https://www.brp-fund.com और https://brp-fund.vip नामक फर्जी वेबसाइटों का इस्तेमाल किया और 27,25,000 रुपये की धोखाधड़ी की। इस पर पुलिस ने आईटी एक्ट की धारा 318(4) बी.एन.एस. और 66 डी के तहत मुकदमा संख्या 85/2024 के अंतर्गत मामला दर्ज किया।
जांच के दौरान, पुलिस ने वेबसाइट, टेलीग्राम खातों, मोबाइल नंबरों, और बैंक खातों का गहन विश्लेषण किया। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और डिजिटल फूटप्रिंट्स के माध्यम से राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ (पाकिस्तान सीमा से सटा) से गिरोह के सरगना समेत चार अपराधियों को गिरफ्तार किया गया। इनके पास से मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, चेकबुक, सिम कार्ड, और 30,000 रुपये नकद जब्त किए गए।
पुलिस ने आशीष बिश्नोई के साथ ही उसके तीन अन्य साथियों को भी राजस्थान से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार किए गए अपराधियों में प्रिंस खोड (20 वर्ष) हनुमानगढ़, आशीष विश्नोई (23 वर्ष) श्रीगंगानगर, हरीश उर्फ हरीश विश्नोई (21 वर्ष) बीकानेर, और मनदीप सिंह (26 वर्ष) श्रीगंगानगर, राजस्थान के निवासी हैं। इनमें आशीष ही इस गिरोह का मुख्य सरगना था।
अपराध का तरीका
इन अपराधियों ने ब्रांडेड कंपनियों की आधिकारिक वेबसाइटों से मिलती-जुलती फर्जी वेबसाइटें बनाईं। बल्क एसएमएस का उपयोग करते हुए, उन्होंने हजारों लोगों को पार्ट-टाइम जॉब और निवेश में अच्छे मुनाफे का लालच दिया। जब लोग इनके झांसे में आ जाते, तो उन्हें पहले छोटे-छोटे निवेश से धन कमाने का लालच दिया जाता था। फिर, उन्हें टेलीग्राम ग्रुप में जोड़ा जाता, जहां बड़े लाभ के नकली स्क्रीनशॉट दिखाए जाते थे।
इसके बाद, जब लोग बड़ी रकम का निवेश करते थे और उसे वापस निकालने की कोशिश करते थे, तो वे असफल हो जाते थे क्योंकि यह सारा पैसा सिर्फ दिखावे के लिए था। इस ठगी को अपराधियों ने वर्चुअल मशीन और विदेशों के आईपी एड्रेस के माध्यम से अंजाम दिया ताकि उनकी पहचान छुपी रहे।