The Railway Men: एक कांस्टेबल, एक GM, स्टेशन मास्टर और लोको पायलट, भोपाल गैस त्रासदी के चार गुमनाम रक्षकों की कहानी, पढ़ें रिव्यु

The Railway Men Review: बचाइए हुजुर इस शहर को बचाइए’, ‘ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल’, ‘ना समझोगे तो आखरी मिट जाओगे’ ये वो तीन हेडलाइन्स हैं, जो भोपाल के पत्रकार राजकुमार केसरवानी ने शहर में हुए हृदय विदारक गैस कांड के दो साल से पहले अपने समाचार पत्र ‘रपट’ की खबरों पर लगाई।


उन्हें इस बात का अंदेशा था कि भोपाल में कार्बाइड फैक्ट्री लोगों के लिए कभी जानलेवा साबित हो सकती है। लेकिन तब शासन और प्रशासन ने उनकी एक न सुनी और हुआ वही। केसरवानी अभी दो वर्ष पहले कोरोना संक्रमण काल में कोरोना का कहर नहीं झेल पाए और इस दुनिया से अलविदा हो गए।


मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के मतदान के ठीक एक दिन बाद नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’। नेटफ्लिक्स ने एक बढ़िया डिसिजन लिया इसे चुनाव से पहले न रिलीज़ करने का, नहीं तो यह मध्य प्रदेश के सियासी माहौल में एक बड़ा तूफ़ान ला सकता था।


कुछ घटनाएं इतिहास में दर्ज हो जाती हैं। उसके बारे में लिखने से पहले बस इतना कहना चाहूंगा कि काश यह केवल एक फिल्म या केवल एक वेब सीरीज (The Railway Men) होती। काश यह केवल एक कहानी होती, जिसे हम कुछ घंटे मनोरंजन की दृष्टि से देखते। काश ये वेब सीरीज काल्पनिक होती, जिसे हम सब केवल इस देखने के लिए देख रहे होते। काश के इसे देखने के बाद इसकी समीक्षा लिखने के लिए पूरी वेब सीरीज को मनोरंजक दृष्टि से लिखा गया होता। लेकिन यह तो एक ऐसी घटना है, जिसे सोच कर ही किसी की भी रूह कांप जाए।


अफ़सोस बस इस बात का है कि यह घटना, देश में घटित कभी न भूलने वाली घटनाओं में से एक है। वह भयानक रात भोपाल नामक खुबसूरत शहर की किस्मत पर लगा हुआ एक दाग है, जिसके निशान लोगों के जेहन में आजीवन के लिए दर्ज हो चुके हैं। एक घटना जिसने भोपाल का इतिहास से लेकर भूगोल तक बदल दिया। भोपाल के माथे पर वह दाग लगा दिया, जिसे लोग सदियों तक याद रखेंगे।


ये कहानी भारत के इतिहास में दर्ज उस हृदय विदारक घटना की है, जिसमें एक बार में 15 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। ये कहानी, उन हीरोज की है, जो हमारे और आपके बीच पले हैं। उन हीरोज ने साबित किया कि युद्ध कोई भी हो, तब तक लड़ा जा सकता है, जब तक प्राणों में प्राण है और प्राण तभी तक रहते हैं, जब तक सांसों में सांसे हैं। और जब सांसो पर प्रहार हो तो यह युद्ध और भी जटिल हो जाता है।


इतिहास गवाह है कि जब जब इस देश में त्रासदी ने कालरुपी बाहें फैलाई हैं, तब तब उन बाहों को नेस्तानाबूद करने के लिए इंसान रूपी योद्धाओं ने जन्म लिया है। ‘द रेलवे मेन’ नाम की यह वेब सीरीज उन्हीं योद्धाओं पर आधारित है। सत्य घटनाओं से प्रेरित इस वेब सीरीज में कुछ काल्पनिक पात्र भी गढ़े गए हैं, लेकिन वे आटे में नामक जितना नजर आते हैं। इनका ऑन रिकॉर्ड कोई जिक्र नहीं है। परन्तु ये पात्र उन लोगों को बताते हैं, जो नि: स्वार्थ भाव से उस रात लोगों की जान बचाने में जुटे हुए थे।


एंटरटेनमेंट तक नहीं सीमित है यह वेब सीरीज


इस वेब सीरीज को देखकर बस यही कहा जा सकता है कि फ़िल्में केवल एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट तक ही सीमित नहीं हैं। उससे आगे भी यहां करने को बहुत कुछ है। उसका साक्षात् उदाहरण यह सीरीज है। घुटती हुई सांसों का मंजर, तिल-तिल कर जमीन पर गिरते लोगों को देखते हुए कैसा मनोरंजन हैं। लेकिन इसमें कुछ है, तो वो यह सीख है कि कैसे अपनी जान की परवाह न करते हुए, हमारा जीवन लोगों के काम आ सकता है। कैसे हम अपनी जान को जोखिम में डालकर दूसरों की मदद कर सकते हैं।


कोरोना महामारी हो, या फिर भोपाल गैस त्रासदी, धरती के इन हीरोज ने ही ईश्वर बनकर लोगों को इओस संकट से उबारा है। इन हीरोज के जज्बे के आगे ही बड़ी से बड़ी त्रासदियां घुटने टेकने को मजबूर हैं।


क्यों देखें The Railway Men


इस सीरीज को देखते हुए इतना भावुक हूं कि समीक्षा के लिए ध्यान ही नहीं केंद्रित कर पा रहा हूं। क्योंकि वो हम जैसे ही थे और हमारे ही थे। जो आज यहां, इस दुनिया में रहने का, हमारी तरह सांस लेने का अधिकार रखते थे। पर अफ़सोस, उनके हाथों की लकीरों में जीवन रेखा, उसी रात थी, जिस रात का जिक्र इस सीरीज में है।


इसलिए देखना या न देखना ये आपके ऊपर निर्भर करता है। पर हां, इतना ज़रूर है कि मदद करने वाले हाथों को ज़रूरत पड़ने पर मदद अवश्य मिलती है इसलिए जिस जज्बे का जिक्र यहाँ किया गया है, उसे विधा की तरह ग्रहण करें और कमर कस लें उस पल के लिए, जब हमारी ज़रूरत, हमारे अपनों को हो और हम उनके संग कंधे से कंधा जोड़कर उनके बुरे वक़्त में, उनके साथ खड़े हों।


यह वेब सीरीज (The Railway Men) चार एपिसोड की कहानी है। प्यार, मोहब्बत, आपिस झगड़े इन सब से कहीं अलग एक सच्चे स्क्रिप्ट बनाई गई इस वेब सीरीज में अगले सीजन की कोई गुंजाईश नहीं है। 10 साल से यशराज फिल्म्स में हर तरह का काम करते रहे शिव को इस सीरीज पर काम करने के लिएय यशराज फिल्म्स ने तब परमिशन दी, जब शिव ने कोई दो साल इसकी कहानी, पटकथा, संवाद और इसके इतिहास, भूगोल पर सब कुछ झोंककर काम किया।


ये मेहनत वेबस सीरीज में दिखती भी है। कहानी की शुरुआत थोड़ी धीमी है, लेकिन जब यह लय पकड़ती है, तो गोरखपुर एक्सप्रेस की तरह दर्शकों को बांधे चलती है। यहां गोरखपुर एक्सप्रेस का जिक्र क्यों किया गया है, इसका पता आपको वेब सीरीज देखने पर ही मिलेगा।


कास्टिंग


के के मेनन कहानी के मजबूत स्तंभ


शिव रवैल ने अपनी सीरीज के लिए जो किरदार गढ़े हैं, वह असल जिंदगी से उठाए गए हैं। हालांकि इसमें कुछ कल्पनाओं का भी तड़का लगाया गया है। स्टेशन मास्टर के किरदार में के के मेनन इस कहानी के मजबूत स्तंभ हैं। के के मेनन ने ‘बम्बई मेरी जान’, स्पेशल ऑप्स’, ‘फर्जी’ जैसी कहानियों में जो अपना आभामंडल दिखाया है, ‘द रेलवे मेन’ उसमें जान फूंक देती है।


The Railway Men का दूसरा अहम किरदार दिव्येंदु शर्मा ने निभाया है। पुलिस की वर्दी में होने का असर इस किरदार को पता है। उद्देश्य उसका कुछ और है और वह हादसे के बीच होने का एहसास समझने के बाद वह करता कुछ और है। कहानी में कुछ पल हास्य के भी इस किरदार के चलते आते हैं और ये शिव रवैल की लिखाई की मजबूती है कि एक बहुत ही गंभीर कहानी में भी वह कुछ हल्के फुल्के लम्हे छिड़कने में कामयाब रहे।


इरफ़ान खान के बेटे बाबिल का जबरदस्त अभिनय


The Railway Men का तीसरा और मजबूत किरदार दिवंगत अभिनेता इरफान खान के बेटे बाबिल का है। नौकरी के पहले ही दिन एक अजब हादसे में पड़ने और लोगों को बचाने में अपनी जान गंवा देने वाले बाबिल अभिनय को अन्जीदगी से निभाते हैं। फिल्म देखते हुए बाबिल को देखकर कभी कभी उनके पिता इरफ़ान खान की याद दर्शकों को आ ही जाती है। वह इरफान की छाया से निकले कलाकार के रूप में इस सीरीज में नजर आते हैं। भोपाल की बोली के लहजे को पकड़ने में कामयाब रहे बाबिल स्टेशन मास्टर का दायां कंधा बनने की कोशिश करते हैं।


खैर, इस वेब सीरीज (The Railway Men) के बाद दर्शकों की नजर बाबिल पर ही रहेगी कि इसके बाद वे कहां जाते हैं। जूही चावला और आर० माधवन ने भी बढ़िया अभिनय किया है। हालांकि उन्हें इसमें करने को कुछ खास करने को नहीं था। वे दोनों सरकारी तंत्र में ही उलझे से नजर आते हैं। जूही चावला ने ओटीटी पर अपना डेब्यू किया है। उम्मीद है कि इसके बाद उन्हें ओटीटी पर और भी काम मिलेगा।


इंदिरा गांधी की हत्या और सिखों के प्रति आक्रोश


इस सीरीज में राजीव गांधी का टीवी पर कहना ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’ और ट्रेन में सिखों की तलाश में दंगाइयों का हमला, सीरीज का बड़ा संकेत है। संकेत इसमें इस बात का भी है कि तत्कालीन रेल मंत्री के दफ्तर में जो कुछ हुआ, वह सामान्य नहीं है। भोपाल में लीक हुई गैस के प्राणनाशक होने की बात पता करने वाले जर्मन वैज्ञानिक का सौभाग्यवश भारत में होना और इस गैस का असर कम करने की दवा को भोपाल भेजे जाने से विफल करना, ये सारी वह घटनाएँ हैं, जो घटित हो चुकी हैं।


तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भले ही रेल मंत्री बदला हो, लेकिन सच ये भी है कि कंपनी के संचालन के लिए जिम्मेदारों को कटघरों तक पहुँचाने की बात अब तक अधूरी ही है। मामला सियासी है और इसलिए इसका मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक बाद रिलीज़ करके नेटफ्लिक्स ने सेफ गेम खेला है। इसके लिए वे शाबासी के हकदार हैं।

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