कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। फिल्मों से उम्मीद भी होती है कि समाज का सच उजागर हो। विक्की कौशल अभिनीत फिल्म 'छावा' भी कुछ ऐसी ही है। क्योंकि जिस इतिहास के पन्नों को वामपंथियों ने जिल्दसाजी करके छिपा दी थी, वह इस बार सामने आए हैं।
आज से दस वर्ष पहले किसी फिल्म मेकर अथवा डायरेक्टर/प्रोड्यूसर में हिम्मत नहीं थी कि वह इस तरह से किसी सत्य घटना पर आधारित फिल्म बना पाएं और फिर संभा जी भोंसले? जिन्हें इतिहास में मुगलों का गुणगान करने में भूला दिया गया, उनकी वीरता और हिंदुओं पर हुए मुगलों के अत्याचार को दिखाया गया है। पहले तो फ़िल्म मेकर रजिया सुल्तान और जोधा अकबर जैसी फिल्मों को बनाकर मुगलों का चरण चुम्बन करते रहे हैं।
हालांकि अब समय बदला है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरला फाइल्स’ जैसी फ़िल्में आई हैं, उससे लोगों का फिल्मों के प्रति रुझान बढ़ा है। इसी कारण से ‘छावा’ जैसी फ़िल्में बनाने में मेकर्स को सफलता मिली है, और इसे दर्शकों ने सराहा है।
बात फिल्म के कहानी की करें तो, इसकी कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज की है। शिवाजी के निधन के बाद वह अपने पिता की विरासत को संभालते हैं और उनके स्वराज के सपना को पूरा करने की कोशिश करते हैं। इस बीच उनके कर्तव्य में सबसे बड़ा रोड़ा बनता है – ‘मुग़ल आक्रांता औरंगजेब’। जिसके बाद औरंगजेब और मराठों की सेना का सीधे टकराव होता है, जिसमें कई बार मुगलों को मुंह की खानी होती है। लेकिन वह एक कहावत है न कि हर घर में एक विभीषण ज़रूर होता है। वैसा ही कुछ यहां भी होता है, जब संभाजी के ही विश्वासपात्र उनकी पीठ में छूरा घोंपते हैं। जिसके बाद शुरू होता है औरंगजेब का संभाजी पर अत्याचार। इसके अलावा फिल्म में मराठा और मुग़ल दोनों के परिवारों में आंतरिक कलह को भी दिखाया गया है।
क्यों देखें?
फिल्म परिवार के साथ जाकर देखने लायक है। फिल्म की सबसे बड़ी ख़ास बात यह है कि फिल्म में उस इतिहास के बारे में है, जिसे हम सब से छुपाया गया। इतिहास के किताबों में संभाजी के जगह मुगलों को बताया गया। बाबर से लेकर औरंगजेब तक के वंशजों के नाम रटते रटते कान पाक जाते हैं, लेकिन इतिहास है कि खत्म ही नहीं होता, जबकि उन्हीं मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार के बारे में चर्चा भी नहीं की गई। आध्यात्मिक नवचेतना और पुनर्जागरण के काल में जिस हिम्मत से फिल्म मेकर्स इस इतिह्गास को दिखाया है, वह काबिले तारीफ़ है। इस फिल्म को हर हिंदू को अपने परिवार और बच्चों के साथ थिएटर में जाकर देखना चाहिए, जिससे इस तरह की फ़िल्में बनाने वालों को बल मिल सके, और भविष्य में वह और बेहतर कर सकें।
एक्टिंग
फिल्म में सभी कलाकारों ने अपना शत प्रतिशत दिया है। विक्की कौशल ने छत्रपति के किरदार को जीवंत किया है। कई सींस में तो उनकी एंट्री ऐसी है, जो रोंगटे खड़े कर दे। वहीं रश्मिका भी महारानी के किरदार में खुबसूरत नजर आई हैं। उनके लिए फिल्म में ज्यादा सीन्स नहीं डाले गए थे, लेकिन जिन दो-चार सींस में वह नजर आई हैं, उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। अक्षय खन्ना ओरिजिनल औरंगजेब लगे हैं। इस फिल्म के बाद से लोग उन्हें औरंगजेब के तौर पर याद रखेंगे। उनके जिम्मे संवाद कम थे, लेकिन जितने थे, पर्याप्त थे। उन्होंने औरंगजेब की क्रूरता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
फिल्म में एक्टर विनीत कुमार सिंह को अच्छा स्क्रीन प्रेजेंस मिला है। वह संभाजी महाराज के सबसे खास और कवि कलश के रोल में नजर आए हैं। संभावना है कि इस फिल्म के बाद उन्हें भी आगे अच्छे रोल में लिया जाय। इस फिल्म में उन्होंने भी अपने एक्टिंग का लोहा मनवाया है। इसके अलावा आशुतोष राणा, दिव्या दत्ता, डायना पेंटी समेत सभी कलाकारों ने अपना शत प्रतिशत दिया है। बैकग्राउंड में जब एआर रहमान का संगीत बजता है तो वह रोंगटे खड़े कर देने वाला होता है।
अंत में बस एक ही बात कि यदि हिन्दुओं का इतिहास देखना है, तो इस फिल्म को अभी से ही देख आइए, बाकी वामपंथी और टुकड़े-टुकड़े गैंग वालों को तो इससे चिढ़ हो ही रही है।