राज कपूर: भारतीय सिनेमा के शोमैन की संघर्ष और सफलता की कहानी, कभी फ़िल्में हो रहीं थी फ्लॉप, नौकर से पैसे लेने पड़े थे उधार, ‘आवारा’ ने चमकाई किस्मत

मुंबई। भारतीय सिनेमा के महान शोमैन राज कपूर के जीवन संघर्ष को 100 वर्ष पूरे हो गए। उनका जीवन संघर्ष, जुनून और अभूतपूर्व सफलता की प्रेरणादायक कहानी है। उनके जीवन में उतार-चढ़ाव और उपलब्धियों के अनगिनत किस्से हैं। उन्होंने न केवल अपनी फिल्मों से दर्शकों को मनोरंजन किया, बल्कि समाज को गहरे संदेश भी दिए।


फ्लॉप फिल्मों से अपने बैनर की शुरुआत तक


राज कपूर को फिल्मों के प्रति जुनून विरासत में मिला था। मगर शुरुआती दौर में उनकी फिल्में सफल नहीं रहीं। जब उन्हें यह समझ आया कि फ्लॉप फिल्में बड़ा आर्थिक संकट पैदा कर सकती हैं, तो उन्होंने पीछे हटने की बजाय अपने रास्ते खुद बनाने का फैसला किया। 1948 में उन्होंने ‘आरके फिल्म्स’ की स्थापना की। इसके तहत पहली फिल्म ‘आग’ बनाई। यह फिल्म राज कपूर के लिए आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण साबित हुई। फिल्म की शूटिंग के दौरान इतनी तंगी हो गई थी कि यूनिट के चाय-नाश्ते के लिए उन्हें अपने नौकर से उधार लेना पड़ा।


नरगिस के साथ चमकी किस्मत


‘आग’ के जरिए राज कपूर ने नरगिस को साइन किया। यह जोड़ी जल्द ही हिंदी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय जोड़ी बन गई। इसके बाद राज ने ‘बरसात’ (1949) बनाई, जिसमें नरगिस ने फिर मुख्य भूमिका निभाई। इन फिल्मों के दौरान दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता बना। नरगिस न केवल उनके प्रोडक्शन हाउस का अभिन्न हिस्सा बन गईं, बल्कि उन्होंने इसमें वित्तीय योगदान भी दिया। हालांकि, राज की वैवाहिक स्थिति के कारण यह रिश्ता लंबा नहीं चल सका।


‘आवारा’ की सफलता के बाद मिली वैश्विक पहचान


1952 में रिलीज हुई ‘आवारा’ ने राज कपूर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। इस फिल्म में बेरोजगारी और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों को उठाया गया था। ‘आवारा’ का प्रभाव इतना व्यापक था कि इसे सोवियत संघ और तुर्की जैसे देशों में भी खूब सराहा गया। मॉस्को में फिल्म के प्रीमियर के दौरान राज कपूर और नरगिस को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी।


‘मेरा नाम जोकर’ के बाद आर्थिक संकट


1970 में राज कपूर ने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई। इस फिल्म में उन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार दो इंटरवल रखे। हालांकि, फिल्म की भव्यता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दांव पर लगा दी। दुर्भाग्य से, फिल्म फ्लॉप रही और कपूर परिवार आर्थिक तंगी में आ गया। अपने कर्ज चुकाने के लिए राज को स्टूडियो, घर और पत्नी के गहने तक गिरवी रखने पड़े।


‘बॉबी’ से धमाकेदार वापसी


इस मुश्किल दौर के बाद 1973 में राज कपूर ने ‘बॉबी’ बनाई। इस फिल्म ने उन्हें न केवल आर्थिक संकट से उबारा, बल्कि बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता भी दिलाई। उन्होंने इसमें अपने बेटे ऋषि कपूर को लॉन्च किया। फिल्म की सफलता से राज कपूर ने इंडस्ट्री में अपनी खोई हुई जगह वापस पाई।


राज कपूर की विशिष्टता


राज कपूर सेट पर हर सदस्य को तवज्जो देते थे। उनकी फिल्मों के गाने और कहानियां समाज के हर वर्ग को छूने वाली होती थीं। उन्होंने ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ (1978) जैसी कल्ट क्लासिक फिल्में बनाई, जिनमें गहराई और सुंदरता को दर्शाया गया। राज का खाना खाने का तरीका भी खास था—वे सेट पर हर किसी के साथ साधारण भोजन साझा करते थे।


आखिरी दिन और अनमोल विरासत


1988 में अस्थमा से जूझते हुए, राज कपूर ने फिल्म ‘हिना’ का निर्देशन जारी रखा। दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड प्राप्त करते समय उन्हें अस्थमा का गंभीर अटैक आया। इसके बाद वे कोमा में चले गए और 2 जून 1988 को दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन के बाद उनके बेटे रणधीर कपूर और ऋषि कपूर ने उनकी फिल्म ‘हिना’ को पूरा किया।


राज कपूर के बाद उनके परिवार ने उनकी सिनेमाई विरासत को संजोए रखा। उनकी फिल्में आज भी भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास का अहम हिस्सा हैं। उनकी रचनात्मकता और सामाजिक संदेश वाली कहानियां हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी।

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