ज्ञानवापी वजूखाना सर्वे मामले में फिर होगी सुनवाई: हाईकोर्ट में राखी सिंह की याचिका पर आज बहस संभव, मुस्लिम पक्ष से मांगा गया जवाब

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वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी परिसर विवाद में एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया तेज हो गई है। शुक्रवार, 5 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में वजूखाने के एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) सर्वे की मांग पर सुनवाई होगी। यह याचिका श्रृंगार गौरी केस की प्रमुख वादिनी राखी सिंह द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें उन्होंने 21 अक्टूबर 2023 को वाराणसी जिला न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी है।


क्या है याचिका का उद्देश्य?

 

राखी सिंह की ओर से दाखिल इस सिविल रिवीजन याचिका में आग्रह किया गया है कि ज्ञानवापी परिसर में स्थित वजूखाने को छोड़कर शेष परिसर का सर्वे न किया जाए, बल्कि ASI को वजूस्थल का विशेष रूप से वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी जाए। हिंदू पक्ष का दावा है कि वजूखाने में जो संरचना है, वह कोई साधारण निर्माण नहीं, बल्कि एक प्राचीन शिवलिंग है। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष इसे पारंपरिक जलफव्वारा (फाउंटेन) बता रहा है।


हाईकोर्ट की पिछली सुनवाई में क्या हुआ था?

 

इससे पहले 5 मई को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई थी। उस दौरान अदालत को बताया गया कि उपासना स्थल कानून (Places of Worship Act, 1991) की वैधता से जुड़ा मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और उस पर सुनवाई स्थगित हो चुकी है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने भी उस दिन की सुनवाई स्थगित करते हुए अगली तारीख 4 जुलाई तय की थी।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच इस पूरे विवाद की सुनवाई कर रही है। पिछली कार्यवाही के दौरान कोर्ट ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।


मामला क्यों है संवेदनशील?


यह विवाद मई 2022 से अधिक गंभीर हो गया, जब ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में कथित तौर पर एक शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया। इसके बाद अदालत के आदेश पर वजूखाने को सील कर दिया गया था। तब से यह स्थल विवाद के केंद्र में बना हुआ है।


हिंदू पक्ष का कहना है कि यह शिवलिंग प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं और इसकी विधिवत पूजा-अर्चना होनी चाहिए। जबकि मुस्लिम पक्ष इसे एक फव्वारा बताते हुए दावा करता है कि यह मस्जिद के निर्माण का पारंपरिक हिस्सा है।


सुप्रीम कोर्ट दे चुका है अंतरिम आदेश


सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस विवाद पर अंतरिम आदेश दे चुका है, जिसमें अदालतों को सर्वेक्षण कराने या कोई अंतिम निर्णय पारित करने से रोका गया है। कोर्ट ने साफ किया है कि जब तक उपासना स्थल कानून की वैधता पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक निचली अदालतें कोई ठोस आदेश पारित नहीं करेंगी।

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