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भाजपाई और संघी क्या जानें, मूल निवासियों की समस्याएं... चे ग्वेरा, मार्क्स, लेनिन के सपनों को बाबा ही करेंगे साकार

आज से पाँच साल साल पहले पुरुष दिन में क्रांति करता था और रात में लौंडियाबाजी। अब वो दिन भी लद गये ! बेचारे मूल निवासियों को इन सब चीज़ों को भी सुविधा नहीं मिली। 

 

मैंने मिस इंडिया की लिस्ट निकाली, उसमें एक भी पुरुष नहीं निकला !!! ये मोदी सरकार की नाकामी पर बाद प्रश्न चिन्ह है। मेरा मानना है कि मिस इंडिया, मिस वर्ल्ड जैसी सभी कंटेस्ट में आरक्षण का बिल पास होना चाहिए। 


इसमें भी आरक्षण होना चाहिए, जिसमें दलित, अल्पसंख्यक और पुरुष का अलग कॉलम होना चाहिए। खैर ये वामपंथी क्या जानें आरक्षण की महत्वाकांक्षा को। ये तो बस आदेश पर आदेश देना चाहते हैं। इन्हें क्या पता कि आरक्षण लाकर बाबा साहब ने दलितों को कैसे आरक्षण दिलाया। समाज को स्त्री-पुरुष के दैहिक ढाँचे से पहचानने वाले ये संघी हिप्पोक्रेट्स क्या जानेंगे चे ग्वेरा, मार्क्स, लेनिन, फ़िदेल कोस्ट्रो, चेचेन, माओ, लोटा-लहसुन आदि के सपनों की दुनिया कैसी होगी। 


इस पूरी प्रतियोगिता में मिस मूलनिवासी और मिस्टर मूलनिवासी का भी कांटेस्ट होना चाहिए। लेकिन नहीं, भाजपाइयों और संघियों को तो सिर्फ और सिर्फ सवर्णों की ही चिंता सताती है। इन्हें मूल निवासियों से कोई सरोकार नहीं। भाजपाई संघी क्या जानें मूल निवासियों की आवश्यकताएं।  


आज से पाँच साल साल पहले पुरुष दिन में क्रांति करता था और रात में लौंडियाबाजी। अब वो दिन भी लद गये ! बेचारे मूल निवासियों को इन सब चीज़ों को भी सुविधा नहीं मिली। बीते दिनों आरक्षण की रैली का भी कोई फायदा नहीं हुआ। भारत बंद तो नहीं हुआ, लेकिन बेचारे मूल निवासियों को इससे भी कोई लाभ नहीं मिला। रही सही कसर मिस इंडिया कांटेस्ट ने निकाल दी। 


खैर ! जो भी हो, अब मूल निवासियों को उम्मीदें बस बाबा से हैं, जिन्होंने मिस इंडिया जैसे अद्भुत कांटेस्ट में पुरुषों, अल्पसंख्कों व मूल निवासियों के लिए आवाज़ उठाई। बाबा ही हैं, जिनसे अल्पसंख्यकों को उम्मीदे हैं, बाकी संघी व भाजपाइ ने तो हमेशा से ही इन्हें 'बैल बुद्धि' बुलाते रहे हैं। 

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