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कर्मयोगी का जीवन जी गए बनारसी सेठ, ‘स्मृति झरोखा’ के माध्यम से दी गई श्रद्धांजलि, शुभचिंतक बोले – जीवन जीने की कला सिखा गए...
श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने कहा था – कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनं। अर्थात् कर्म करते रहो फल की चिंता मत करो, फल तो नियति के हाथ में है। हमारे कर्मों के आधार पर ही हमारा वर्तमान और भविष्य निर्धारित होता है।
भगवान द्वारा कहे इस श्लोक को चरितार्थ किया, चंदौली के पीडीडीयू नगर (मुगलसराय) के रहने वाले स्व. बनारसी सेठ ने। बनारसी सेठ आजीवन दूसरों (समाज) के लिए जिए, लेकिन अपने अंतिम समय में भी वह समाज के लोगों को रौशनी दे गए। बनारसी सेठ भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके शुभ चिंतक उनके और उनके द्वारा किए गए कार्यों को सर्वदा याद रखेंगे।
मौका था, स्व. बनारसी सेठ की तेरहवीं का, जहां उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके शुभ चिंतकों व चंदौली के दिग्गजों का तांता लगा रहा। इस अवसर पर सभी ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इसके साथ ही बनारसी सेठ के जीवन पर आधारित किताब ‘स्मृति झरोखा’ का भी विमोचन किया गया। इसके साथ ही जिन रास्तों पर पैदल भ्रमण करते हुए स्व. बनारसी थक कर चूर हो जाते थे, वहां कोई और बुजुर्ग न थके, इसके लिए तीन कुर्सियों का भी लोकार्पण किया गया।
धर्मात्मा का जीवन जी गए बनारसी सेठ: प्रभु नारायण
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की भूमिका निभा रहे सकलडीहा से सपा विधायक प्रभु नारायण यादव ने कहा कि बनारसी सेठ जी की कमी हम सब को सदा ही महसूस होगी। वह एक धर्मात्मा की तरह अपना जीवन जी कर गए हैं। उन्होंने अपने अंतिम समय में नेत्रदान कर समाज को जो रोशनी दी है, वह हम सभी के लिए एक प्रेरणा है।
बनारसी सेठ की जीवन शैली हम सभी के लिए आदर्श: पूर्व राज्यमंत्री
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व राज्यमंत्री अच्छे लाल सोनी ने कहा कि बनारसी सेठ की जीवन शैली हम सभी के लिए आदर्श है। इसके साथ ही उनके सुपुत्र डॉ. विनय कुमार वर्मा ने अपने पिता की अंतिम इच्छाओं को जिस तरह से पूरा किया है और साथ ही उनके देह त्यागने के उपरांत उन्होंने इस किताब ‘स्मृति झरोखा’ के माध्यम से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राणा प्रताप सिंह ने कहा कि स्व. बनारसी सेठ का जीवन अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने अंतिम समय में नेत्रदान का जो कर्तव्य निभाया है, उनके इस योगदान को समाज हमेशा याद रखेगा। उनके इस कदम से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।
कर्मयोगी थे बनारसी सेठ: डॉ. अनिल यादव
कार्यक्रम का संचालन कर रहे लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. बनारसी सेठ से 30 वर्षों का अनौपचारिक संबंध रहा है। वह एक कर्मयोगी थे। काम के आगे उन्हें कुछ सूझता नहीं था। उनका केवल नाम ही बनारसी नहीं था, वह स्वभाव से भी ठेठ बनारसी थे। आज भले ही बनारसी सेठ इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हमारे दिल में हमेशा रहेंगी।
बाबू जी सदा हमारे दिल में रहेंगे: विनय
स्व. बनारसी सेठ के पुत्र डॉ. विनय कुमार वर्मा ने कहा कि बाबू जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह अपने द्वारा सिखाए आचरण, कार्य शैली, नैतिकता आदि के जरिए सदा हमारे बीच रहेंगे। उनके नेतृत्व में लगाया गया सीपीएस ग्रुप एक बड़ा वटवृक्ष बन चुका है। एक शाखा से शुरू हुआ विद्यालय आझ पांच शाखाओं में परिवर्तित हो चुका है। वह घर में ‘सिंगल विंडो सिस्टम’ के ‘सिंगल ऑपरेटर’ थे। उनकी व्यवस्थाएं पूरे घर को एक सूत्र में बांधे रखती थीं।
कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने स्व. बनारसी सेठ के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी व उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। इस दौरान सकलडीहा से सपा विधायक प्रभु नारायण यादव, सपा के पूर्व सांसद रामकिशुन यादव, मुगलसराय विधायक रमेश जायसवाल, पूर्व राज्यमंत्री अच्छे लाल सोनी, राज्यसभा सांसद साधना सिंह, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राणा प्रताप सिंह, स्वर्णकार समाज के पदाधिकारी, सेंट्रल पब्लिक स्कूल के अध्यापकगण व कर्मचारी समेत सैकड़ों लोगों ने स्व. बनारसी सेठ को श्रद्धांजलि दी।