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काशी में नटवर नागर ने कालिया नाग का किया मान मर्दन, 498 साल पुरानी परम्परा का हुआ निर्वहन, पलभर के लिए गंगा बनीं यमुना
वाराणसी। काशी के प्रसिद्ध तुलसीघाट पर मंगलवार को लाखों श्रद्धालु श्रीकृष्ण की नागनथैया लीला का अद्भुत नजारा देखने पहुंचे। इस लक्खी मेले में भगवान श्रीकृष्ण का कालिया नाग पर विजय प्राप्त करने की लीला का मंचन किया गया, जिसमें काशी का यह ऐतिहासिक घाट पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में डूब गया।
जैसे ही कान्हा रूपी बाल कलाकार ने अपने सखाओं संग क्रीड़ा करते हुए कदंब वृक्ष से गंगा नदी, जो यमुना का प्रतीक बन जाती है, में छलांग लगाई, घाट पर उपस्थित भीड़ की सांसें थम गईं। क्षण भर बाद, सभी ने देखा कि श्रीकृष्ण रूपी कलाकार कालिया नाग के फन पर सवार होकर गंगा में प्रकट हुए। उस दृश्य के साथ ही ‘जय कन्हैया लाल की’ और ‘हर हर महादेव’ के गगनभेदी उद्घोष से घाट गूंज उठा, जबकि डमरुओं की ध्वनि और घंटे-घड़ियाल की आवाज़ से पूरे माहौल में भक्ति का संचार हुआ।
इस लीला में संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने भी हिस्सा लिया और आरती उतारी। काशी नरेश के परिवार ने भी नौका पर सवार होकर लीला का आनंद लिया और प्रभु के दिव्य दर्शन किए।
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्रा का कहना है कि तुलसीदास ने इस लीला में सभी धर्मों के भेदभाव को मिटा दिया है। सभी कलाकर अस्सी भदैनी के ही होते हैं। सबसे प्रमुख दीपावली के चार दिन बाद होने वाली नागनथैया अपने आप में अनोखी लीला है। बता दें कि काशी के चार लक्खा मेला प्रसिद्ध हैं। इसमें रथयात्रा का मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नाग नथैया शामिल है। इसमें से तीन लक्खा मेला तो संपन्न हो गए हैं। एक लाख से अधिक भीड़ आने के चलते इन्हें लक्खा मेला कहा जाता है।
498 साल पहले शुरू हुई थी लीला
भगवान राम के अनन्य भक्त संत गोस्वामी तुलसीदास ने शिव की नगरी काशी राम नाम के साथ भगवान कृष्ण को भी लीला के जरिए जन जन तक पहुंचाया। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भदैनी में लगभग 498 साल पहले कार्तिक माह में श्रीकृष्ण लीला की शुरुआत की थी। यह भक्ति और भाव का ही प्रभाव है कि काशी का तुलसी घाट गोकुल और उत्तरवाहिनी गंगा यमुना में बदल जाती हैं। तुलसीदास द्वारा शुरू की गई इस 22 दिनों की लीला की परंपरा आज भी कायम है। इसमें भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव से लेकर उनके द्वारा किए गए पूतना वध, कंस वध, गोवर्धन पर्वत सहित कई लीलाओं का मंचन किया जाता है। एक माह पहले कृष्ण बलराम और राधिका के पात्रों का चयन किया जाता है।