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Mirzapur Season 3 Review: सत्ता, हनक और बदले की कहानी है ‘मिर्जापुर-3’, कालीन भैया नहीं इस बार गुड्डू पंडित ने मचाया ‘भौकाल’

Mirzapur Season 3 Review: मजबूरी में शुरू हुई गैंगस्टरबाजी का मजा ले रहे गुड्डू पंडित (अली फज़ल) मिर्जापुर की गद्दी से होते हुए अब पूर्वांचल के बाहुबली होने का ख्वाब देख रहे हैं। इसमें उनका साथ दे रही हैं- गोलू (श्वेता त्रिपाठी)। जौनपुर के जूनियर शरद शुक्ला पूर्वांचल में अपनी साख जमाने के लिए कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) के दम पर अपने पिता का सपना पूरा करने का ख्वाब देखते हैं। 

 

प्रेम के प्रपंच में भाई को भेंट चढ़ा चुके छोटे त्यागी गोलू से बदला लेने को आतुर नजर आ रहे हैं। उनकी हालत घायल शेर जैसी हो गई है। मौत के मुहाने से वापस लौटे कालीन भैया अब मिर्जापुर की विरासत संभाल पाएंगे या नहीं? और सबसे बड़ी बात कि मुन्ना भैया मौत की शैया से वापस लौटेंगे या फिर उनका अमर वाला डायलॉग सिर्फ डायलॉग ही बनकर रह जाएगा। सत्ता की कुर्सी पर बैठी माधुरी यादव (ईशा तलवार) के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। सत्ता भी संभालनी है तो पिता और पति की मौत का बदला भी लेना है, वह भी कानून के दायरे में रहकर।

मिर्जापुर का दूसरा सीजन कई सारे सवाल छोड़ गया था। तीसरा सीजन भी वहीं से शुरू होता है, जहां से दूसरा समाप्त हुआ था। 3 साल के इंतजार के बाद मिर्जापुर के बाहुबली लौट आए हैं और इस बार पूर्वांचल नहीं यूपी के कई जिलों के बाहुबली भी साथ आए हैं। गुड्डू पंडित पहले बागी बने, फिर गुंडे, फिर गैंगस्टर और अब उन्हें बनना है पूर्वांचल का बाहुबली, लेकिन इसके लिए उन्हें जरूरी है कालीन भैया की बॉडी। कालीन भैया यानी अखंडानंद त्रिपाठी, जिसकी खोज में लगी होती हैं गोलू यानी श्वेता त्रिपाठी। 

कालीन भैया के बिना कौन संभालेगा पूर्वांचल

 

कालीन भैया सिर्फ मिर्जापुर के बाहुबली ही नहीं थे वह पूर्वांचल के पावर को जोड़ने वाली एक मुख्य कड़ी थे। उनके जाने से यह पावर बिखर रही है, गुड्डू भले ही मिर्जापुर की कुर्सी पर बैठकर अपने आप को किंग घोषित कर दें, लेकिन उन्हें कुर्सी का हकदार अपने आप को साबित करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी। इस बार गुड्डू के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बनकर सामने आ रहा है, जौनपुर का जूनियर शरद शुक्ला। इसके पिता रति शंकर शुक्ला को गुड्डू ने एक सांस में क-ख-ग पढ़ते हुए मार दिया था। शरद पढ़ा लिखा और चालक भेड़िये जैसा है। वह अपने पिता की तरह जल्दीबाजी नहीं करता है, बल्कि उसका दिमाग सब्रब रखते हुए अल्फा-बीटा-गामा भी पड़ता है। 

हर किरदार की अलग कहानी

 

कालीन भैया और मुन्ना को मारकर गुड्डू ने पूर्वांचल में अपने खिलाफ बहुत दुश्मन खड़े कर लिए हैं। गोलू के हिस्से भी एक दिलजला आया है। भरत त्यागी बनकर जी रहा है। उसका जुड़वा भाई गोलू के चक्कर में पड़कर भाई को चुका है। शत्रुघ्न आशिकी में केकड़ा बनने जा रहा है।

इधर गुड्डू के परिवार की अलग ही कहानी चल रही है। एडवोकेट रमाकांत पंडित (राजेश तैलंग) ने सीजन 2 में गुड्डू को बचाने के लिए IPS अफसर एसपी मौर्या की हत्या कर दी थी। अपना गुनाह कबूल कर वह स्वयं जेल में हैं लेकिन कैदियों को देखकर उनकी नैतिकता का कांटा भी डगमगाने लगा है। उनका घर उनकी बेटी का प्रेमी रोबिन के जिम्मे है। 

 

माधुरी को पिता की परम्पराओं को बचाते हुए पिता और पति की मौत का लेना है बदला

 

इधर कालीन भैया की पत्नी बिना त्रिपाठी परिवार के आखिरी चिराग को मिर्जापुर की आंधियों से बचाने में जुटी हैं। गुड्डू को उनका फुल सपोर्ट है। लखनऊ में मुन्ना त्रिपाठी की पत्नी मुख्यमंत्री माधुरी यादव के सामने भी सर्वाइवल का सवाल बहुत तगड़ा है। एक ओर जहां माधुरी को अपने पिता की परंपराओं पर चल रहे उनके पॉलिटिकल साथियों और दुश्मनों से निपटना है, तो वहीं दूसरी ओर वह प्रदेश को भयमुक्त प्रदेश बनाना चाहती हैं।

उनके निशाने पर पूर्वांचल में माफियाओं का गढ़ रहे मिर्जापुर, जौनपुर, बनारस, आजमगढ़, बलिया समेत यूपी के जिले हैं। वह बाहुबलियों में कानून का भय भरना चाहती हैं। मगर बदले और ईगो से भरी हुई कहानी में मुख्यमंत्री कानून का पूरी तरह से पालन करें या थोड़ा सा असंभव है। मिर्जापुर के तीसरे सीजन में बाहुबली जगत के संहारकर्ता को अपने हठ से प्रसन्न कर चुके भस्मासुर हैं। बस देखना यह है कि दुस्साहस, हनक और निष्ठुरता की ताप पर नृत्य करते इन राक्षसों में कौन अपने सिर पर पहले हाथ रखता है?

 

मिर्जापुर का ट्रेडमार्क - खून खराबा और वायलेंस

 

मिर्जापुर का ट्रेडमार्क रहा है- खून खराबा और वायलेंस, लेकिन पहले सीजन से तीसरे सीज़न तक आते-आते मेकर्स दर्शकों का मूड भाप गए हैं। मिर्जापुर 3 की खासियत इसकी बुद्धिमानी है। पिछले दो सीजन के मुकाबले इस बार किरदार दिमाग ज्यादा लगा रहे हैं। यहां तक कि गुड्डू पंडित जिसकी USP वायलेंस है। इसका इस्तेमाल भी मेकर्स ने बड़े ध्यान से किया है। लेकिन गुड्डू को हमेशा भभकते देखने की इच्छा रखने वालों को यह बात थोड़ी कम पसंद आएगी। हालांकि शो के अंत में जेल के अंदर एक फाइट सीक्वेंस में इसकी पूरी भरपाई की गई है। 

मिर्जापुर में शुरू से ही कई कहानियां आपस में क्रॉस होती है। इस बार इसे बहुत बेहतर तरीके से दिखाया गया है मगर शत्रुघ्न त्यागी का सब प्लॉट और भी एक्सप्लोर किया जाना चाहिए था। सीजन 2 में भी त्यागियों का मामला अधूरा सा रह गया था। इस बार भी वह मेन मुद्दे में बहुत ज्यादा योगदान नहीं दे पाए।

 

मिर्जापुर-3 में महिलाओं ने दिखाई अपनी अदाकारी

 

तीसरे सीजन का असली मजा बांधा है, शरद शुक्ला और माधुरी यादव ने। इन दो किरदारों की राइटिंग बहुत उमड़ा तरीके से लिखी गयी है। दो यंग, पढ़े लिखे और एक नए यूनिवर्स में जीने का ख्वाब देखते लोगों का, विरासत में मिले कीचड़ में उतरना, उसमें पांव जमाना, काफी देखने लायक है। मिर्जापुर 3 में महिलाओं के किरदार पर भी फोकस किया गया है। बीना, माधुरी, गोलू, रधिया और ज़रीना अपनी-अपनी रौ में दमदार लग रहे हैं। 

 

डायरेक्टर्स गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर के साथ-साथ राइटर्स की टीम को इसके लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए। कलम में बारूद भरकर लिखे पुरुष किरदारों के बीच, ऐसे असरदार महिला किरदार बड़े भौकाली लगते हैं।

तीसरे सीजन में आकर ‘मिर्जापुर’ किरदारों के ट्रीटमेंट, कंफ्लिक्ट और कैमरे की नजर से डिटेल्स दिखाने में भी बेहतर हुआ है। डायलॉग हमेशा की तरह तैशबाजी से भरे हैं और इमोशंस वाले सीन्स में आपको इमोशंस महसूस होते हैं। शो ने अपना एक और फीचर बरकरार रखा है, किसी भी परिस्थिति में आप किरदारों से जैसे बर्ताव की आशा करते हैं, वो वैसा बिल्कुल नहीं करते। उसका ठीक उल्टा भी नहीं करते, बल्कि कुछ अलग ही कर देते हैं

 

मिर्जापुर से लाख शिकायतें हों, मगर एक्टर्स के काम के मामले में इस शो का लेवल बहुत ऊपर है। अली फजल, पंकज त्रिपाठी, रसिका दुग्गल और श्वेता त्रिपाठी तो पहले ही सीजन से लगातार फॉर्म में हैं। ये अपने किरदारों में आधा रत्ती भी गलती नहीं करते। लेकिन इस बार अंजुम शर्मा और ईशा तलवार ने अपने किरदारों के जरिए मिर्जापुर को एक नए मुकाम पर लाकर रख दिया है। दोनों एक्टर्स ने अपने बॉडी लैंग्वेज व आंखों के एक्सप्रेशन से गज़ब का परफॉरमेंस दिया है। विजय वर्मा कुछ एक सीन में माहौल बना पाते हैं, लेकिन राइटिंग के कारण उन्हें इसमें करने को कुछ खास नहीं था। शायर का किरदार निभाने वाले एक्टर ने भी बेहतरीन परफॉरमेंस दिया है। मिर्जापुर के बाद उन्हें अन्य वेब सीरीज और फिल्मों में जगह मिलेगी। इसके अलावा अन्य सपोर्टिंग एक्टर्स ने भी बढ़िया काम किया है। 

मिर्जापुर में अपराध जगत का डार्क वेब दिखाया है, जहां नैतिकता हमेशा की तरह की कमजोर होती है या यूं कहें कि मिर्जापुर के तीनों सीजन में नैतिकता के लिए कोई जगह नहीं होती। हालांकि एक पूरे डार्क वेब कुरूप संसार को रचने के ऐसा ज़रूरी भी है। कुल मिलाकर मिर्जापुर –3 सरप्राइज, शॉक और सनक से बांधे रखता है। इस बार मेकर्स ने दर्शकों के दिमाग से अच्छे से खेला है। एक्टर्स की शानदार परफॉरमेंस और किरदारों का तैश, डायलॉगबाजी और क्लाइमेक्स में कालीन भैया का खेल एकदम सोने पे सुहागा है। 

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