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सवा सौ साल से भी पुरानी है काशी में गणेशोत्सव की परम्परा, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बाल गंगाधर तिलक ने कराया था शुरू, जानिए इस परम्परा का इतिहास

वाराणसी में गणेशोत्सव की परंपरा का आरंभ 1898 में हुआ था, जब लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने इसे एक सामाजिक आंदोलन के रूप में स्थापित किया। अंग्रेजी शासन के खिलाफ जनमानस को संगठित करने के उद्देश्य से तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की, जो काशी में आज भी धूमधाम से मनाई जाती है।

 


शुरुआत में यह उत्सव केवल मराठी और दक्षिण भारतीय समुदायों तक सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे शहर में लोकप्रिय हो गया। काशी में गणेशोत्सव डेढ़, पांच, सात, नौ और ग्यारह दिन तक मनाने की परंपरा है। इस समय शहर में लगभग 18 समितियां गणेशोत्सव का आयोजन करती हैं, जो इसे और भी भव्य बनाती हैं।


दक्षिण भारतीय परंपराओं के साथ उत्सव


श्रीराम तारक आंध्र आश्रम, जो मानसरोवर क्षेत्र में स्थित है, 1987 से गणेश नवरात्र महोत्सव का आयोजन करता आ रहा है। यहां मिट्टी की गणेश मूर्ति की पूजा दक्षिण भारतीय पद्धतियों से नौ दिनों तक की जाती है। इस परंपरा की शुरुआत आश्रम के तत्कालीन मैनेजिंग ट्रस्टी वेमुरी रामचन्द्रमूर्ति द्वारा की गई थी और अब वीवी सुंदर शास्त्री इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इस दौरान सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं और शोभायात्रा भी प्रमुख आकर्षण होती हैं।

 


लालबाग के राजा की धूम


श्रीकाशी मराठा गणेशोत्सव समिति द्वारा 2007 में रेशम कटरा में गणेशोत्सव का आयोजन शुरू किया गया। 2013 में मुंबई के कलाकारों द्वारा निर्मित 'लालबाग के राजा' की प्रतिमा की स्थापना ने इस आयोजन को और भव्य बना दिया। यह उत्सव ठठेरी बाजार में शेरवाली कोठी में आयोजित होता है, जिसमें मराठी कलाकारों की विशेष भागीदारी रहती है।


जंगमबाड़ी मठ में परंपरागत गणेशोत्सव


1930 में जंगमबाड़ी मठ में गणेशोत्सव की शुरुआत हुई, जिसका मार्गदर्शन जगद्गुरु शिवाचार्य महास्वामी द्वारा किया गया था। इस उत्सव को मठ की पुरानी परंपराओं के अनुसार संजोया गया है, और यह अब भी एक सप्ताह तक मनाया जाता है।


सार्वजनिक गणेशोत्सव का आरंभ


काशी में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत 1998 में उपेन्द्र विनायक सहस्त्रबुद्धे ने की थी। यह उत्सव पहले काशी विद्या मंदिर, मच्छोदरी में आयोजित किया गया था, और अब शहर के विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है, जिसमें चांदी की गणेश प्रतिमा विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।


काशी विश्वनाथ गणपति महोत्सव


1999 में मच्छोदरी में काशी विश्वनाथ गणपति महोत्सव शुरू हुआ, जो पहले 11 दिनों तक मनाया जाता था, लेकिन अब यह सप्ताहभर चलता है। इस दौरान बच्चों के लिए भजन और गीतों से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

 


रामघाट में सांगवेद विद्यालय का आयोजन


वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय, रामघाट में 1979 से गणेशोत्सव आयोजित हो रहा है। यहां गणेश प्रतिमा गंगा की मिट्टी से बनाई जाती है और इस आयोजन में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। 


नूतन बालक गणेशोत्सव मंडल


नूतन बालक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना 1909 में हुई थी, और इसका इतिहास 116 वर्षों का है। इस मंडल ने काशी के विभिन्न स्थानों पर गणेशोत्सव का आयोजन किया है, जिनमें दुर्गाघाट, गोविंदजी नायक लेन और काठ की हवेली प्रमुख हैं।

 


काशी गणेशोत्सव समिति: तिलक की परंपरा का निर्वाह


1898 में काशी के मराठा समाज ने लोकमान्य तिलक की परंपरा का अनुसरण करते हुए ब्रह्माघाट पर गणेशोत्सव की शुरुआत की। इस आयोजन की परंपरा आज भी काशी गणेशोत्सव समिति द्वारा जारी है।

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