image
image

Latest News

Rathyatra Mela 2024: 222 वर्ष पुरानी है काशी की ‘रथयात्रा’, रथ पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं जगत के तारनहार भगवान जगन्नाथ

Rathyatra Mela 2024: काशी के लक्खा मेले की शुरुआत भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले से होती है। 3 दिवसीय इस मेले में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके अंतिम दिन भगवान अपने भाई व बहन के साथ अस्सी घाट स्थित जगन्नाथ मंदिर में विराजमान हो जाते हैं। इस वर्ष 3 दिन में वाराणसी की रथयात्रा (Rathyatra Mela) में लगभग 4 लाख से भी अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है।

काशी की परम्परा के तहत काशीनरेश परिवार के अनंत नारायण सिंह ने भगवान का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया तथा 56 भोग लगाया जिसमें छौंका, मूंग, चना, पेड़ा, गुड़, खांडसारी नीबू के शर्बत का तुलसी युक्त भोग भी शामिल है। पूर्व काशी नरेश डा० विभूति नारायण सिंह आजीवन इस परम्परा का निर्वहन करते थे। अब काशीराज परिवार के ही अनंत नारायण सिंह और उनके पुत्र यह परंपरा निभाते हैं।

श्री जगन्नाथ जी ट्रस्ट के अध्यक्ष दीपक शापुरी बताते हैं की इसी रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले के साथ ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष में काशी के लक्खा मेले की शुरुआत होती है। पिछले 222 सालों से भगवान जगन्नाथ इसी एक ही रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। इस रथ में आज तक कोई बदलाव नहीं किया गया हैं। आज तक इसके डिजाईन में कोई बदलाव नहीं किया गया है। ना लकड़ियाँ बदली गई हैं और न ही कील और चक्के बदले गए हैं। जब भी इसमें कोई खराबी होती है तो इसे रिपेयर किया जाता है।

शापुरी ने आगे बताया कि सन् 1802 में भोसले के राजा व्यंकोजी महाराज और बेनीराम ने इस रथ का निर्माण नेपाली साखू की लकड़ी से करवाया था। सन् 1966 में पहली बार 164 वर्षों बाद इसकी मरम्मत की गई थी। मरम्मत के दौरान इसमें साखू की लकड़ी के अलावा कुछ शीशम की लकड़ी भी लगायी गई थी। रथ में सबसे खास है इसका घोडा। इसका मुख क्रोमियम और चांदी से निर्मित है। यही वजह है कि धूप पड़ने पर रथ का घोड़ा अधिक चमकदार दिखाई पड़ता है।

सन् 1802 में जब रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले की शुरुआत हुई थी उस समय इस जगह पर ऊँचीं-ऊँची बिल्डिंग और घना मार्केट नहीं था। तब यहां इक्का-दुक्का कच्चे घर हुआ करते थे। इस जगह को रथयात्रा (Rathyatra Mela) चौक के नाम से जाना जाता था। तब से अब तक यहां पर विभिन्न निर्माण कार्य हुए हैं, बगीचों पर कब्ज़ा कर लिया गया, चौड़ी सड़कें बना दी गईं, शोरूम, अस्पताल, और मार्केट का निर्माण हो गया। तस्वीर बदल गई लेकिन मेले का स्थान और पूजा की परम्परा आज भी वही है।

रथयात्रा (Rathyatra Mela) के पुजारी कहते हैं कि आज भी भगवान जगन्नाथ का रथ मेले में उसी स्थान पर खड़ा होता है जहां 221 वर्ष पहले होता था। इस जगह पर चाहे बुर्ज खलीफा का निर्माण हो जाए लेकिन यह जगह काशी के लक्खा मेले के लिए 221 साल से रिज़र्व है। जगह को बदलने की बहुत कोशिशें की गईं लेकिन आज भी पूजा उसी जगह होती है।

रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले पर वैज्ञानिक शोध भी हो चुकी है। आर्ट-हिस्ट्री डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डा० ज्योति राणा ने रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले पर रिसर्च करने के बाद बताया कि वाराणसी के अस्सी स्थितजगन्नाथ मंदिर की मान्यता ओडिशा के जगन्नाथ पुरी जितनी है। इन दोनों ही मंदिरों से एक समान सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है। सैकड़ों वर्ष पूर्व रथयात्रा (Rathyatra Mela) मेले में एक लाख भक्त आते थे और आज इससे भी कहीं ज्यादा भक्त आते हैं।

 

150 से अधिक सालों से बनवारी बेचते हैं फूल

 

बनवारी की पीढियां भी परम्परा का निर्वहन करते हुए 150 से भी अधिक सालों से यहां पर माला-फूल बेच रही हैं। रथ पर अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ सवार भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने हेतु कुछ श्रद्धालु 50-60 सालों से निरंतर यहां आते हैं। यहां वे भगवान को नान खटाई का भी भोग लगाते हैं। 20 से 25 प्रकार की नान खटाई का मूल्य 40 रूपये लेकर 1200 रूपये प्रति किलोग्राम तक होता है। सबसे महंगी नान खटाई 1200 रूपये वाली होती है जो काजू से निर्मित होती है।

काशी की विरासत पर अतिक्रमण

 

वाराणसी में अस्सी क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ का मंदिर स्थित है। नागर शैली में बना यह मंदिर 88, 662 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इसके दायीं तरफ अस्सी नदी हुआ करती थी जो आज अस्सी नाला बन चुकी है। डॉ० ज्योति राणा के अनुसार, ”200 साल पहले यहां काशी का भगवान जगन्नाथ मंदिर भक्तों से काफी गुलजार था। भगवान जगन्नाथ की यह प्रतिमा पुरी से आई है, जो कि लकड़ी से निर्मित है। मंदिर के सामने विराजमान गरूड़ की सुंदर मूर्ति है। यह पूरा कॉरिडोर है, जिसकी लंबाई 400 मीटर से ज्यादा है। बीच-बीच में कुंड भी बने हैं। आज इस मंदिर का भूगोल बदल गया है। काशी की इस विरासत पर अतिक्रमण हो चुका है।”

इस मंदिर के 3 द्वार हैं। दूसरे द्वार के बाद शिव मंदिर, चंदन कुंड और फिर तीसरा द्वार आएगा। यहां पर मंदिर के पहले पुजारी तेजोनिधि ब्रह्मचारी की समाधि है। इसके बाद गरूड़ देव की प्रतिमा, लक्ष्मी नारायण श्राइन, श्री जगन्नाथ गर्भ गृह, राम दरबार, साक्षी गोपाल, नरसिम्हा मंदिर और कालिया दमन कक्ष है।

ये भी पढ़ें...

img

जब राष्ट्रपति भवन में सुनाई गई शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरगाथा, गम नहीं छुपा पाईं उनकी पत्नी स्मृति, राष्ट्रपति ने प्रदान किया कीर्ति चक्र

अंशुमान सिंह की वीरता और शहादत को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी स्मृति और मन मंजू सिंह को कीर्ति चक्र दिया। राष्ट्रपति भवन में शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की वीर गाथा सुनाई गई। बताया गया कि कैसे

img

Rathyatra Mela 2024: 222 वर्ष पुरानी है काशी की ‘रथयात्रा’, रथ पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं जगत के तारनहार भगवान जगन्नाथ

काशी की परम्परा के तहत काशीनरेश परिवार के अनंत नारायण सिंह ने भगवान का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया तथा 56 भोग लगाया जिसमें छौंका, मूंग, चना, पेड़ा, गुड़, खांडसारी नीबू के शर्बत का तुलसी युक्त भोग भी शामिल है। पूर्व काशी नरेश डा० विभूति नारायण सिंह आजीवन इस परम्परा का निर्वहन करते थे। अब काशीराज पर

img

Kargil War: 'तिरंगा लहराकर आऊंगा या उसमें लिपटकर, लेकिन वापस आऊंगा जरुर...' जानें कारगिल युद्ध के ‘शेरशाह’ विक्रम बत्रा के साहस की कहानी

बत्रा होली के त्योहार के दौरान छुट्टी पर अपने होमटाउन आए थे। जब पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भारत को कारगिल युद्ध के लिए मजबूर कर दिया गया था। विक्रम ने अपने दोस्तों और मंगेतर डिंपल चीमा से ये वादा किया था कि “मैं कारगिल में तिरंगा लहराकर या उसमें लपेटकर वापस आऊंगा, लेकिन मैं निश्चित रूप से वापस लौटूंगा”

img

अनोखा शिव मंदिर: ‘ऐरावतेश्वर महादेव’ के इस मंदिर की सीढियों से बजता है संगीत, जानिए इसका इतिहास

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां की सीढ़ियों से संगीत की धुन निकलती है, जिस वजह से ये मंदिर काफी अलग है। मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि ये प्राचीन वास्तुक्ला के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर की आकृति और दीवारों पर उकरे गए चित्र लोगों को काफी आकर्षित करते हैं।

img

भारत के अद्भुत 5 शिवलिंग जिनका बढ़ रहा है आकार, चमत्कार से विज्ञान भी हैरान

काशी का तिल भांडेश्वर मंदिर अत्यंत ही प्राचीन है। इस मंदिर का नाम इसके आकार के वजह से पड़ा है। मान्यता है कि यह मंदिर प्रतिदिन तिल भर बढ़ जाता है। महाशिवरात्रि और सावन के दिनों में यहां पैर रखने तक की जगह नहीं होती। महादेव का यह मंदिर काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में पड़ता है। इस मंदिर का जिक्र शिवपुरा

Latest News

Latest News