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किस्से: भारत-चीन युद्ध के कारण सफल नहीं हो पाया रतन टाटा का पहला प्यार, किताबों और संगीत से कर ली दोस्ती, कोरोना काल में किया था 500 करोड़ का दान

नई दिल्ली। टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार देर रात मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। दो दिन पहले मीडिया में उनके स्वास्थ्य को लेकर खबरें आई थीं, लेकिन उन्होंने खुद एक पोस्ट में स्पष्ट किया था कि वे पूरी तरह ठीक हैं और चिंताजनक स्थिति नहीं है।


दादी की देखरेख में बीता बचपन


रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर हुआ था। वे टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते थे। रतन टाटा का बचपन दादी के संरक्षण में बीता, क्योंकि उनके माता-पिता उनके बचपन में ही अलग हो गए थे। 1991 में उन्हें टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया।

 


शादी के किस्से और अधूरी कहानियां


रतन टाटा की चार बार शादी होते-होते रह गई। एक बार, जब वे अमेरिका में थे, उनकी शादी लगभग तय हो गई थी, लेकिन उनकी दादी के अचानक फोन करने पर वे भारत लौट आए। उसी समय भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया और वे वहीं फंस गए, जिसके बाद उस लड़की की शादी किसी और से हो गई।


पुस्तकों और संगीत के प्रेमी


रतन टाटा को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था, विशेष रूप से प्रेरणादायक कहानियां। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि रिटायरमेंट के बाद वे इस शौक को पूरा करने में समय बिता रहे थे। उन्हें 60 और 70 के दशक के गाने सुनना बहुत पसंद था। शास्त्रीय संगीत में उनकी विशेष रुचि थी, खासकर शॉपेन, बिथोवन और चेकोस्की के संगीत में। उन्होंने इच्छा जताई थी कि काश वे खुद पियानो पर इन्हें बजा पाते।

 


कारों के प्रति दीवानगी


रतन टाटा को कारों का बेहद शौक था। उन्होंने बताया था कि उन्हें पुरानी और नई दोनों तरह की कारें पसंद हैं। खासतौर पर उनकी डिज़ाइन और तकनीक के प्रति उनका गहरा रुझान था, और वे इन्हें खरीदकर चलाने में दिलचस्पी रखते थे।


21 साल तक नेतृत्व और टाटा समूह की जबरदस्त प्रगति


रतन टाटा ने 1962 में टाटा समूह में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया और बाद में मैनेजमेंट में ऊंचे पदों पर पहुंच गए। 1991 में, जे.आर.डी. टाटा ने उन्हें चेयरमैन का पद सौंपा। उनके 21 साल के नेतृत्व में, टाटा समूह का मुनाफा 50 गुना बढ़ गया, जिसमें बड़ी हिस्सेदारी जगुआर-लैंडरोवर और टेटली जैसे उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री से आई।

 


2012 में 75 वर्ष की आयु में रतन टाटा ने चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया और साइरस मिस्त्री को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। हालांकि, मिस्त्री और टाटा के बीच मतभेद बढ़ते गए, और 2016 में, मिस्त्री को टाटा समूह के बोर्ड से हटाने का निर्णय लिया गया। 2017 में नए चेयरमैन की नियुक्ति तक रतन टाटा ने चेयरमैन का पद अस्थायी रूप से फिर से संभाला।


COVID-19 में 500 करोड़ किया दान


रतन टाटा हमेशा टाटा समूह की परोपकारी शाखा, टाटा ट्रस्ट, से जुड़े रहे। इस ट्रस्ट ने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में उल्लेखनीय काम किया है। टाटा समूह के मुनाफे का 60-65% हिस्सा चैरिटी के कार्यों में जाता रहा है। COVID-19 महामारी के दौरान, रतन टाटा ने 500 करोड़ रुपए का दान दिया था। 


उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को 50 मिलियन डॉलर दान दिए थे, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा एक परोपकारी और दूरदर्शी नेता के रूप में और मजबूत हुई।

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