दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर अपनी दोमुंही चुनावी रणनीति को लेकर चर्चा बटोरी है। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए उन्होंने अपने बुजुर्ग माता-पिता को आगे कर दिया, जिससे उनकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सहानुभूति का सहारा लिया हो।
बदलते बयान और पलटते वादे
केजरीवाल कभी यह दावा करते थे कि उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और वे कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन जब मौका आया, तो उन्होंने अपने ही वादों को दरकिनार कर सत्ता की ओर कदम बढ़ा दिए। राजनीति में बदलाव लाने की बात कहने वाले केजरीवाल ने वही हथकंडे अपनाए, जिनकी वे आलोचना किया करते थे। यह बदलाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन अपने ही वादों से बार-बार पलटना उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
परिवारवाद और झूठी कसमों का खेल
भारतीय राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है। कई नेता अपने रिश्तेदारों को सत्ता के करीब लाने का प्रयास करते हैं, लेकिन केजरीवाल इस मामले में एक कदम आगे निकल गए। उन्होंने राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपने बच्चों की झूठी कसम तक खाई थी कि उनकी पार्टी कभी भाजपा या कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएगी। बावजूद इसके, उन्होंने अपनी पहली सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनाई और आगे भी उसी पार्टी के साथ गठबंधन किया।
घोटालों से घिरे केजरीवाल की नई रणनीति
हाल ही में हुए कथित शराब घोटाले के कारण भ्रष्टाचार विरोधी छवि रखने वाले केजरीवाल की साख को गहरी चोट पहुंची। उनकी सरकार पर गंभीर आरोप लगे और उन्हें तिहाड़ जेल की हवा भी खानी पड़ी। इसी बीच, जब 'शीशमहल' विवाद ने उन्हें घेरा, तो उन्होंने खुद को जनता की नजरों में साफ दिखाने के लिए सहानुभूति का कार्ड खेला।
बुधवार (5 फरवरी 2025) को दिल्ली में मतदान करने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें वे अपने माता-पिता के साथ वोट डालने पहुंचे। पोस्ट के साथ उन्होंने लिखा, “आज पूरे परिवार के साथ मतदान किया। हर दिल्लीवासी की तरक्की और हर गरीब परिवार के सम्मानजनक जीवन के लिए वोट दिया। आप भी अपने परिवार के साथ मतदान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें। दिल्ली की तरक्की रुकनी नहीं चाहिए। गुंडागर्दी हारेगी, दिल्ली जीतेगी।”
सहानुभूति की राजनीति?
अपने समर्थकों को वोट देने के लिए प्रेरित करना कोई गलत बात नहीं है। लेकिन, जिस तरह से उन्होंने अपने माता-पिता को व्हीलचेयर पर बैठाकर पूरे शहर में घुमाया, उससे यह ज्यादा सहानुभूति बटोरने का प्रयास नजर आया।
यह वही केजरीवाल हैं, जिन्होंने मई 2024 में अपील की थी कि उनके माता-पिता को परेशान न किया जाए, जब दिल्ली पुलिस स्वाति मालीवाल पर हुए हमले के सिलसिले में पूछताछ के लिए उनके घर पहुंची थी। लेकिन जब चुनाव की बारी आई, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने माता-पिता को मीडिया के सामने पेश कर दिया। यह दिखाता है कि उनके लिए राजनीति ही सबसे महत्वपूर्ण है।
लग्जरी गाड़ियों में चलने वाले केजरीवाल
एक समय आम आदमी की छवि गढ़ने वाले अरविंद केजरीवाल कभी वैगनआर कार से चलते थे। लेकिन अब वे करोड़ों की लैंड क्रूजर जैसी गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। उनके पास सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, फिर भी अपने माता-पिता को रोड पर व्हीलचेयर पर लेकर जाने का फैसला उनकी रणनीति पर सवाल खड़ा करता है। वे चाहते तो घर बैठे मतदान की सुविधा का लाभ उठा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
जनता को भ्रमित करने की कोशिश?
केजरीवाल यह सोचते हैं कि इस तरह के स्टंट दिखाकर जनता उनके पिछले 10 सालों के कामों को भूल जाएगी। खुद को एक 'फैमिली मैन' दिखाने की उनकी कोशिश से यह साफ झलकता है कि वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। वे राजनीति में अति महत्वाकांक्षी हैं और सत्ता की भूख में किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
लेकिन, शायद उन्हें यह एहसास नहीं है कि जनता अब पहले जैसी नहीं रही। अब वह नेता के दिखावे से ज्यादा उसके काम को तवज्जो देती है। जब जनता का फैसला आता है, तो उसकी लाठी बिना आवाज के पड़ती है। अब देखना यह होगा कि दिल्ली की जनता केजरीवाल के इस नए दांव को स्वीकार करती है या इसे मात्र एक राजनीतिक स्टंट मानती है।