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अमेरिका में कमला आउट, उषा इन: अमरीकी जनता ने हिंदू विरोधी मानसिकता को हराया, वामपंथ के निशाने पर रही हैं उषा चिलुकुरी - America Election Result

डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के साथ ही अमेरिका की राजनीति में नई करवट देखी जा रही है। उनकी जीत से भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस अब सत्ता से बाहर हो गई हैं। इस बार ट्रंप ने 270 इलेक्टोरल वोटों के साथ उन्हें बड़ी हार का सामना कराया, जो यह दर्शाता है कि अमेरिकी जनता ने ट्रंप पर फिर भरोसा जताया। हालांकि, कमला के जाने से भारतीयों का प्रभाव अमेरिकी राजनीति से खत्म नहीं हुआ है। 


इसकी झलक ट्रंप के द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए जेडी वेंस में देखने को मिलती है, जिनकी पत्नी उषा चिलुकुरी भारतीय मूल की हैं। इस चयन ने यह संकेत दिया कि भारतीय समुदाय का जुड़ाव नए प्रशासन में भी बरकरार रहेगा। उषा के भारतीय मूल होने और हिंदू धर्म से जुड़ी जड़ों के चलते उन्हें सोशल मीडिया पर आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। वामपंथियों ने उन्हें हिंदू धर्म के आधार पर निशाना बनाते हुए ट्रोल किया और उनके और जेडी वेंस के रिश्ते पर सवाल उठाए, यह दावा किया कि यह कदम सिर्फ भारतीय वोटों को पाने का प्रयास है। 

 


उषा चिलुकुरी का अमेरिका में बढ़ता प्रभाव


उषा चिलुकुरी अब अमेरिका की "द्वितीय महिला" कहलाने जा रही हैं। जेडी वेंस की सफलता में उषा का एक विशेष योगदान माना जाता है। दोनों की मुलाकात येल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हुई थी, और 2014 में दोनों ने हिंदू रीति-रिवाजों के साथ विवाह किया। इस शादी ने वेंस को भारतीय संस्कृति के करीब ला दिया और उनके भारत के प्रति समर्थन की भावना को मजबूत किया। 


उषा का भारतीय संस्कृति से जुड़ाव उनके परिवार से आता है। उनके माता-पिता भारत के आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले से हैं। अमेरिका में जन्मी उषा ने भारतीय परंपराओं और धार्मिक मूल्यों से जुड़े रहते हुए खुद को एक सफल वकील के रूप में स्थापित किया। 


हिंदू होने पर ट्रोल हुईं उषा


जेडी वेंस के उपराष्ट्रपति बनने की घोषणा के बाद उषा को सोशल मीडिया पर हिंदू होने के कारण ट्रोल किया गया। उनकी और वेंस की शादी को कुछ लोगों ने राजनीतिक लाभ के लिए किया गया कदम बताया। लेकिन उषा ने कभी इन आलोचनाओं का सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं दिया, और उनके संयम ने उन्हें एक दृढ़ और समझदार महिला के रूप में स्थापित किया। आज वे अमेरिकी राजनीति में एक नई पहचान बना रही हैं।

 


अमेरिका में भारतीय समुदाय का बढ़ता रुतबा


अमेरिका में हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने उन विचारधाराओं को भी चुनौती दी है जो हिंदुओं और भारतीयों के खिलाफ हैं। भारतीय मूल के लोग भले ही संख्या में कम हों, लेकिन उनका प्रभाव व्यापार और राजनीति में गहरा है। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला, गूगल के सीईओ सुंदर पिचई, और हॉटमेल के सह-संस्थापक सबीर भाटिया जैसे भारतीय-अमेरिकी टॉप पोस्ट पर काम कर रहे हैं, जिससे भारतीयों का प्रभाव अमेरिका में हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। 


वामपंथियों के निशाने पर उषा


वामपंथियों द्वारा हिंदू धर्म से जुड़े लोगों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति एक चिंता का विषय रही है। उषा अकेली नहीं हैं जिन्हें अपने हिंदू मूल के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा। इससे पहले तुलसी गबार्ड को भी उनकी हिंदू पहचान के कारण निशाना बनाया गया था। गबार्ड ने भी अपने अनुभव साझा किए, यह बताते हुए कि चुनावी दौड़ में उन्हें हिंदूफोबिया का सामना करना पड़ा। 


भारतीय मूल के लोगों का योगदान और भविष्य


डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम यह साबित करता है कि भारतीय समुदाय की अहमियत समझी जा रही है और वे अमेरिकी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जेडी वेंस जैसे नेताओं का उषा जैसी भारतीय मूल की महिलाओं से जुड़े होना इस बात का संकेत है कि भारतीय मूल के लोग अमेरिका में सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं बल्कि राजनीतिक शक्ति के रूप में भी उभर रहे हैं।


अमेरिकी राजनीति में भारतीयों का असर न केवल राजनीति तक सीमित है, बल्कि यह व्यापार और सामाजिक क्षेत्रों में भी बढ़ता जा रहा है। भारतवंशियों का प्रभाव आने वाले वर्षों में और बढ़ने की संभावना है, और यह एक प्रेरणा का स्रोत बन रहा है कि चाहे जहाँ भी रहें, भारतीय अपनी संस्कृति और योगदान से अपनी पहचान बनाते हैं। इस प्रकार, ट्रंप के प्रशासन में भारतीय मूल की उषा चिलुकुरी का उभार दर्शाता है कि अमेरिका में भारतीयों का प्रभाव अभी भी जारी रहेगा और आने वाले समय में और भी प्रबल हो सकता है।

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