भारत में ‘लैंग्वेज वार’: तमिलनाडु के सीएम स्टालिन बोले – हिंदी ने 25 भाषाओँ को समाप्त किया, धर्मेंद्र प्रधान बोले - "स्टालिन का बयान मूर्खतापूर्ण, तमिल भाषा शाश्वत"

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चेन्नई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कथित तौर पर हिंदी थोपने के खिलाफ एक बार फिर अपनी आवाज बुलंद की है। गुरुवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा कि बीते 100 वर्षों में जबरन हिंदी थोपने के कारण उत्तर भारत की करीब 25 भाषाएं खत्म हो चुकी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एकरूप हिंदी पहचान बनाने की कोशिश भारत की प्राचीन भाषाओं को मिटा रही है।


स्टालिन ने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार को हिंदी भाषी क्षेत्र मान लिया गया है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से ये राज्य हिंदी क्षेत्र नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि इन राज्यों की पारंपरिक भाषाएं अब केवल अतीत की धरोहर बनकर रह गई हैं।


हिंदी के प्रभाव से क्षेत्रीय भाषाओं के अस्तित्व पर खतरा?


तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदी के वर्चस्व के कारण कई क्षेत्रीय भाषाओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उन्होंने उन भाषाओं की सूची भी साझा की जो उनके अनुसार धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। इसमें भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख और मुंडारी जैसी भाषाएं शामिल हैं।

 


स्टालिन का कहना है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं बल्कि संस्कृत के पुनरुत्थान का मुखौटा है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में दशकों पहले द्रविड़ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई ने दो-भाषा नीति लागू की थी ताकि तमिल भाषा और संस्कृति पर हिंदी और संस्कृत को हावी होने से बचाया जा सके।


बीजेपी का पलटवार: "स्टालिन का बयान मूर्खतापूर्ण"


स्टालिन के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तीखी प्रतिक्रिया दी। पार्टी के नेताओं ने इसे बेबुनियाद और राजनीतिक बयान बताया। बीजेपी ने कहा कि तमिलनाडु सरकार भाषा को लेकर झूठा प्रचार कर रही है और लोगों को गुमराह कर रही है। पार्टी के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी भाषा को जबरन थोपने के पक्ष में नहीं है, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहती है।


त्रिभाषा नीति पर छिड़ा विवाद


इस विवाद की शुरुआत 15 फरवरी को हुई जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान तमिलनाडु सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि डीएमके सरकार भाषा के मुद्दे को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है।


धर्मेंद्र प्रधान के बयान के बाद डीएमके नेताओं ने आक्रामक रुख अपनाया।


क्या बोली तमिलनाडु सरकार


•    18 फरवरी: तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार भाषा युद्ध छेड़ने की कोशिश कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि धर्मेंद्र प्रधान ने खुलेआम धमकी दी है कि त्रिभाषा नीति को लागू करने पर ही तमिलनाडु को केंद्र से आर्थिक सहायता मिलेगी। उदयनिधि ने कहा कि तमिलनाडु सरकार किसी से भीख नहीं मांग रही और अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए तैयार है।


•    25 फरवरी: मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी इस मुद्दे पर खुलकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार किसी भी तरह की भाषा थोपी जाने का विरोध करेगी। अगर केंद्र सरकार ने अपनी नीति नहीं बदली तो राज्य सरकार एक और भाषा आंदोलन के लिए तैयार है।


केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दिया जवाब


त्रिभाषा विवाद को लेकर 23 फरवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्टालिन को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) किसी भी भाषा को अनिवार्य रूप से लागू नहीं कर रही है। उन्होंने तर्क दिया कि विदेशी भाषाओं पर निर्भरता भारतीय भाषाओं को कमजोर कर रही है और NEP 2020 इसे ठीक करने का प्रयास कर रही है।


धर्मेंद्र प्रधान ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि "तमिल भाषा शाश्वत है।" प्रधान ने यह भी लिखा कि मोदी सरकार तमिल संस्कृति और भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

 


NEP 2020: त्रिभाषा नीति का क्या मतलब?


नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत स्कूलों में तीन भाषाओं को पढ़ाया जाना अनिवार्य किया गया है, लेकिन किसी विशेष भाषा को अनिवार्य रूप से लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है।


•    प्राइमरी कक्षाएं (कक्षा 1 से 5): पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश।


•    मिडिल कक्षाएं (कक्षा 6 से 10): तीन भाषाओं को पढ़ाने की अनिवार्यता। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेजी या कोई अन्य भारतीय भाषा हो सकती है।


•    सेकेंड्री कक्षाएं (कक्षा 11-12): स्कूलों को विदेशी भाषा को वैकल्पिक विषय के रूप में देने की अनुमति।


•    गैर-हिंदी राज्यों में: हिंदी दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जा सकती है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं किया गया है।


•    हिंदी भाषी राज्यों में: दूसरी भाषा के रूप में अन्य भारतीय भाषाएं (जैसे तमिल, तेलुगु, बंगाली आदि) को पढ़ाने की सिफारिश।


सरकार का कहना है कि राज्यों और स्कूलों को पूरी स्वतंत्रता दी गई है कि वे अपनी जरूरत के हिसाब से तीन भाषाएं चुन सकते हैं। किसी भी भाषा को अनिवार्य रूप से लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है।


क्या हिंदी वास्तव में क्षेत्रीय भाषाओं के लिए खतरा है?


भाषा विशेषज्ञों का मानना है कि हिंदी का बढ़ता प्रभाव जरूर कई क्षेत्रीय भाषाओं को प्रभावित कर रहा है, लेकिन इसे पूरी तरह से किसी भाषा के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। डिजिटल मीडिया, रोजगार के अवसर और सामाजिक प्रतिष्ठा जैसी कई वजहों से भी लोग अपनी पारंपरिक भाषाओं को छोड़ हिंदी या अन्य लोकप्रिय भाषाओं को अपनाने लगे हैं।

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