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कहानी यूपी के उस माफिया की, जिसने मुख्यमंत्री को मारने की ली थी सुपारी, पूर्वी यूपी में फैलाया था दहशत का साम्राज्य, STF ने श्री प्रकाश शुक्ला का किया था एनकाउंटर 

लखनऊ। योगी सरकार में माफियाओं का अंतिम दौर चल रहा है। एक के बाद एक कई माफिया ढेर हो रहे हैं या फिर पुलिस के सामने सरेंडर कर रहे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया इतिहास में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सबसे खौफनाक अपराधियों में गिना जाता है। एक ऐसे अपराधी की कहानी, जिसने 25 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में तूफान खड़ा कर दिया और जिसकी जिंदगी 1998 में एक पुलिस मुठभेड़ में खत्म हो गई। उत्तर प्रदेश की सड़कों पर बर्बरता का परिचय देने वाला यह अपराधी पहले एक साधारण परिवार का बेटा था, लेकिन हालात ने उसे जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया।


अपराध की ओर पहला कदम


गोरखपुर जिले के मामखोर गांव में जन्मे श्रीप्रकाश शुक्ला का पालन-पोषण एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता शिक्षक थे, और परिवार अपने गांव में इज्जत की जिंदगी जीता था। श्रीप्रकाश खुद भी पहलवानी का शौकीन था और अखाड़े में अपना दमखम दिखाता रहता था। लेकिन 1993 में एक ऐसी घटना हुई जिसने श्रीप्रकाश की जिंदगी का रुख बदल दिया। उसकी बहन से छेड़छाड़ की एक घटना में शामिल राकेश तिवारी नाम के व्यक्ति को उसने क्रोध में आकर पीट-पीटकर मार डाला। इस हत्या के बाद वह भारत से भागकर बैंकॉक चला गया।

 


बैंकॉक से लौटकर चुनी जरायम की दुनिया


श्रीप्रकाश जब बैंकॉक से वापस भारत लौटा, तब तक वह एक मासूम युवक से एक उभरता अपराधी बन चुका था। इस समय उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे नाम थे, लेकिन श्रीप्रकाश ने जल्दी ही खुद को इनसे आगे साबित कर दिया। उसने एक के बाद एक हत्या और फिरौती की घटनाओं को अंजाम देना शुरू किया और अपने खौफ का सिक्का जमाने में कामयाब हो गया। 


1997 में उसने वीरेंद्र शाही की दिनदहाड़े हत्या कर दी। एके-47 से गोलियां बरसाकर शाही को मौत के घाट उतारना एक ऐसा कदम था जिसने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। इसके बाद से अपहरण और फिरौती के दौर का आगाज हुआ, जिसमें श्रीप्रकाश ने पूरी तरह अपना वर्चस्व जमा लिया। 


100 गोलियों का कहर और बाहुबली मंत्री का कत्ल


1 अगस्त 1997 का दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र का दिन था, जब श्रीप्रकाश ने दिलीप होटल के बाहर एके-47 से 100 से ज्यादा गोलियां चलाईं। इस वारदात की आवाज विधानसभा तक पहुंची, और श्रीप्रकाश का नाम एक बार फिर पूरे राज्य में दहशत का प्रतीक बन गया। कुछ ही समय बाद, उसने बिहार के बाहुबली मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की खुलेआम हत्या कर दी, जो उसकी बेखौफ और अपराधी छवि को और भी मजबूत करने वाला कदम था।

 


रेलवे ठेकों पर राज और मुख्यमंत्री की सुपारी


इस दौर तक श्रीप्रकाश की हैसियत इतनी बढ़ गई थी कि रेलवे ठेकों का टेंडर कोई दूसरा लेने की हिम्मत भी नहीं करता था। उसकी सत्ता और अपराध की भूख अब एक नई ऊंचाई पर पहुंच रही थी, और उसने तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी भी ले ली। इस काम के लिए उसे 5 करोड़ रुपये का भुगतान मिलने वाला था। यह खबर जैसे ही पुलिस के कानों तक पहुंची, उन्होंने श्रीप्रकाश को रोकने की ठान ली। इसी समय उत्तर प्रदेश पुलिस ने स्पेशल टास्क फोर्स (STF) का गठन किया और श्रीप्रकाश शुक्ला को हर हाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दिया गया।


सुनील शेट्टी की तस्वीर से जोड़ा गया चेहरा


STF ने श्रीप्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए अभियान शुरू किया, लेकिन उनके पास उसकी पहचान के लिए कोई तस्वीर नहीं थी। किसी रिश्तेदार के जन्मदिन समारोह में ली गई तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए, STF ने एक स्टूडियो में फोटो को एडिट करवाया। इस तस्वीर में शुक्ला के चेहरे के साथ एक्टर सुनील शेट्टी के शरीर का इस्तेमाल किया गया, ताकि यह गुप्त रहे कि तस्वीर कहां से मिली है।


फोन टैपिंग से पुलिस को मिली सफलता


श्रीप्रकाश को पकड़ना STF के लिए एक चुनौती थी, क्योंकि वह अक्सर सिम कार्ड बदलता था। लेकिन अपने आखिरी दिनों में उसने एक ही सिम का इस्तेमाल किया, जिससे STF को उसकी लोकेशन ट्रैक करने में आसानी हुई। 21 सितंबर 1998 को STF को मुखबिर से खबर मिली कि शुक्ला अगली सुबह रांची के लिए फ्लाइट लेगा। STF ने दिल्ली एयरपोर्ट पर घेराबंदी की, लेकिन शुक्ला फ्लाइट मिस कर चुका था। फोन टैपिंग से पता चला कि वह गाजियाबाद में अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने आ रहा है। 


दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर STF ने घेराबंदी कर ली। वह अपनी कार HR26 G 7305 से आ रहा था, लेकिन जब उसे लगा कि उसकी गाड़ी का पीछा किया जा रहा है, उसने अपनी कार एक कच्चे रास्ते की ओर मोड़ दी। उसके साथ दो साथी भी थे – अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी। एक किलोमीटर बाद STF ने उन्हें घेर लिया। शुक्ला ने खुद को घिरा हुआ देखकर फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन इस बार उसके पास एके-47 नहीं थी। उसने रिवॉल्वर से 14 गोलियां चलाईं, लेकिन STF की जवाबी फायरिंग में वह और उसके साथी मारे गए।


22 सितंबर 1998: पूर्वांचल के आतंक का अंत


22 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक खत्म हो गया। उसकी मौत के साथ ही यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल में उसके अपराधों का खौफ भी समाप्त हो गया। STF की यह सफलता उत्तर प्रदेश में अपराध पर नियंत्रण की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुई। 


श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन पर 2005 में फिल्म ‘सहर’ बनाई गई थी, जिसमें उसके अपराध और उसकी गिरफ्तारी के संघर्ष को दिखाया गया था। इसके अलावा 2018 में वेब सीरीज़ 'रंगबाज़' में भी उसकी कहानी को दर्शाया गया।

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