Latest News
यूपी में इस साल अपराध का रहा बोल-बाला, लूट के केसेज में कमी आई तो साइबर अपराधियों ने दी पुलिस को चुनौती, हिंसक घटनाओं ने कानून व्यवस्था पर खड़े किए सवाल
लखनऊ। बीत रहा साल यूपी पुलिस के लिए काफी चुनौतियों भरा रहा। प्रदेश में कानून व्यवस्था को दरकिनार कर अपराधियों ने कई अपराध किए। एक ओर जहां अपराधों ने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, वहीं साइबर अपराध और पुलिस की भूमिका पर भी उंगलियां उठीं। लूट और डकैती जैसे अपराधों में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन चोरी, साइबर अपराध और हिंसक घटनाओं ने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा किया।
साइबर अपराधों में उत्तर प्रदेश अव्वल
साल 2024 में साइबर अपराधों में उत्तर प्रदेश ने देश में अव्वल स्थान प्राप्त किया। डिजिटल तकनीक के बढ़ते उपयोग के बीच अपराधियों ने लोगों की मेहनत की कमाई पर हाथ साफ कर दिया। अगस्त में नोएडा में नैनीताल बैंक का सर्वर हैक कर 17 करोड़ रुपये चुरा लिए गए। इस मामले में बीजेपी युवा मोर्चा के नगर अध्यक्ष हर्ष बंसल की गिरफ्तारी ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी।
बलिया में अवैध वसूली में पूरे थाने पर गिरी गाज
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ-साथ कई घटनाओं में उनकी भूमिका पर सवाल उठे। नरही थाना, बलिया में छापेमारी के दौरान लाखों रुपये की अवैध वसूली का खुलासा हुआ। एडीजी पीयूष मोर्डिया और डीआईजी वैभव कृष्ण के नेतृत्व में हुई कार्रवाई ने पुलिस महकमे की साख को हिलाकर रख दिया।
इसके अलावा, पुलिस कस्टडी में हुई मौतों ने भी लोगों का ध्यान खींचा। राजधानी लखनऊ के चिनहट कोतवाली में मोहित की मौत और फतेहपुर के थरियांव थाने में तैनात सिपाही प्रिया सरोज की आत्महत्या ने पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए।
संभल हिंसा में पांच लोगों की मौत से दहला प्रदेश
प्रदेश में हिंसक घटनाओं का सिलसिला पूरे साल जारी रहा। 24 नवंबर को संभल में मस्जिद के सर्वे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में पांच लोगों की मौत हुई। इसी तरह, 13 अक्टूबर को बहराइच में नवरात्रि के दौरान मूर्ति विसर्जन के दौरान हिंसा में रामगोपाल मिश्र की गोली लगने से मौत हो गई।
अमेठी के शिवरतनगंज में 4 अक्टूबर को शिक्षक सुनील कुमार, उनकी पत्नी और दो बच्चों की हत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। इस घटना में असनाई के शक को हत्या का कारण बताया गया।
वाराणसी में नवंबर के महीने में राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, उनकी पत्नी और तीन बच्चों की निर्मम हत्या ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया। पांच लोगों के हत्याकांड में पुलिस के हाथ अभी तक कोई सुराग नहीं लगे हैं। इसी तरह, गाजियाबाद में 16 अगस्त को एक व्यक्ति का अपहरण कर क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ। हत्या के पीछे प्रेम प्रसंग का मामला सामने आया।
भ्रष्टाचार और आत्महत्याओं का साया
साल 2024 में सरकारी अधिकारियों की आत्महत्याओं ने भी सुर्खियां बटोरीं। बुलंदशहर में सीबीआई छापे के बाद पोस्ट ऑफिस अधीक्षक टीपी सिंह ने आत्महत्या कर ली। उनके सुसाइड नोट में कई सहकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया गया। इसी तरह, दिल्ली में प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी आलोक रंजन ने ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली।
लूट और डकैती की घटनाएं
हालांकि, लूट और डकैती के मामलों में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन सुल्तानपुर में 28 सितंबर को सर्राफा की दुकान में लूट ने पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए। बदमाशों ने दुकान मालिक और उनके पुत्र को बंधक बनाकर लाखों रुपये के जेवर लूट लिए। इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी मंगेश यादव को एनकाउंटर में मार गिराया था।
महिलाओं और बच्चों पर अपराध
महिलाओं और बच्चों पर अपराधों के मामले में भी उत्तर प्रदेश ने लोगों को निराश किया। यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग के मामलों ने कानून व्यवस्था की पोल खोली। गाजियाबाद में 16 जुलाई को एक सिपाही ने ब्लैकमेलिंग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली।
पुलिस मुठभेड़ पर सवाल
साल 2024 में कई जिलों में हुई पुलिस मुठभेड़ों ने भी सुर्खियां बटोरीं। सुल्तानपुर समेत कई जगहों पर हुए एनकाउंटर पर सवाल उठे। पुलिस मुठभेड़ों में बदमाशों को मार गिराने का दावा किया गया, लेकिन इनकी पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगा रहा।
क्या सीख मिली 2024 से?
साल 2024 ने उत्तर प्रदेश के लिए कई सबक छोड़े। पुलिस और प्रशासनिक सुधार, साइबर सुरक्षा में निवेश, और महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस हुई। जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाना और पुलिस की साख बहाल करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। 2024 उत्तर प्रदेश के लिए एक चुनौतीपूर्ण साल रहा, जिसने कानून व्यवस्था, प्रशासन और समाज के हर वर्ग को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया।