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विपक्ष के मुस्लिम कबूल, लेकिन BJP के मुस्लिम नहीं कबूल: ‘सबका विकास’ वाले मामन खान के समर्थकों का नहीं जीत सके भरोसा

भारत में हर तीन-चार महीने में चुनावों का दौर चलता है और हर चुनाव के साथ वोटबैंक राजनीति और उससे जुड़ी समस्याएं चर्चा का विषय बनती हैं। भाजपा जब भी अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करती है, तब हमेशा मुस्लिम नामों की कमी की शिकायत उठती है। आरोप लगाया जाता है कि भाजपा की राजनीति में मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है, जैसा कि गुजरात, उत्तर प्रदेश और हालिया लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला है।


हालांकि, 2024 के हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस आरोप का जवाब दिया। भाजपा ने इन चुनावों में कुल 28 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से 2 हरियाणा और 26 जम्मू कश्मीर से थे। हरियाणा के नूंह जिले की 3 सीटों में से 2 पर भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार दिए—फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद और पुन्हाना से एजाज खान को टिकट दिया।

 


लेकिन चुनाव के परिणामों में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को कोई सफलता नहीं मिली। हरियाणा में भाजपा के दोनों मुस्लिम उम्मीदवार हार गए, जबकि जम्मू कश्मीर में भी स्थिति ऐसी ही रही। फिरोजपुर झिरका में मुस्लिम समुदाय ने नसीम अहमद को नहीं चुनकर कांग्रेस के मामन खान को विजयी बनाया, जो कि 98,000 मतों के अंतर से जीतने में सफल रहे। 


मामन खान, जिन पर नूंह दंगों में आरोप लगे थे और जेल जा चुके थे, ने यह दर्शाया कि मुस्लिम समुदाय भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा नहीं कर रहा। यह घटना यह भी दिखाती है कि मुस्लिम मतदाता ऐसे नेताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं जो भाजपा को हराने में सक्षम हैं, भले ही उन पर दंगे भड़काने के आरोप लगे हों।

 


मामन खान और अन्य ऐसे उम्मीदवारों की जीत से यह स्पष्ट है कि मुस्लिम आबादी विकास के मुद्दों से अधिक राजनीतिक लाभ के लिए वोट कर रही है। मेवात, जो देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है, में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इस स्थिति में मुस्लिम समुदाय को विचार करना होगा कि वे कब तक केवल भाजपा को हराने के लिए वोट करते रहेंगे, भले ही उनके पास अपने समुदाय के उम्मीदवार मौजूद हों। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि केवल भाजपा के खिलाफ खड़ा होना ही समाधान नहीं है; उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत को विकास और वास्तविक मुद्दों की दिशा में मोड़ना होगा।

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