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‘यूपी में भाजपा क्यों हारी...’ पेपर लीक, संविदा की नियुक्तियां, टिकट वितरण में जल्दबाजी, 15 पन्नों की समीक्षा रिपोर्ट में जानिए कारण

लखनऊ। लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा करीब 50 प्रतिशत वोट शेयर तक पहुंच गई थी। लेकिन इस बार के चुनाव में पार्टी को करीब आठ प्रतिशत वोट शेयर में गिरावट झेलनी पड़ी। इससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व काफी सकते में हैं। हार के कारणों को लेकर चली समीक्षा के बाद रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि यूपी में भाजपा के हार के एक नहीं दर्जन भर से अधिक कारण रहे हैं। अब रिपोर्ट के आधार पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आगे की तैयारियों में जुट गया है। पार्टी की नजर 2027 को होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गयी है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा हर हाल में अपनी खोयी हुई साख को वापस पाने की हरसंभव कोशिश करेगी।

 

पार्टी सूत्रों की माने तो पार्टी ने समीक्षा का बिंदू ‘यूपी में भाजपा क्यों हारी’ रखा था। समीक्षा रिपोर्ट में साफ हुआ है कि प्रदेश के सभी क्षेत्रों में भाजपा के वोट घटे। तमाम इलाकों में सीटों का नुकसान पार्टी को झेलना पड़ा। पार्टी के मजबूत इलाके अवध, काशी और गोरखपुर क्षेत्र में भी पार्टी की सीटें घटी। समीक्षा रिपोर्ट में कई अहम बातें सामने आई हैं। सूत्रों के हवाले से आई समीक्षा रिपोर्ट में माना गया है कि भाजपा के लिए संविधान संशोधन वाले बयान भारी पड़े। पार्टी की ओर से प्रदेश की 78 सीटों पर करीब 40 टीमों ने समीक्षा की। समीक्षा के दौरान करीब 40 हजार कार्यकर्ताओं से बात की गई। इसमें माना गया है कि पिछड़ी जातियां भाजपा से अलग हुई। हार की समीक्षा की 15 पेज की रिपोर्ट में 12 कारण गिनाए गए हैं। अब इस समीक्षा रिपोर्ट पर राष्ट्रीय स्तर पर बैठक में चर्चा होगी।

पार्टी सूत्रों की माने तो समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव परिणाम ने साफ कि योगी-मोदी इफेक्ट प्रदेश में कम हुआ है। समीक्षा बैठक में साफ किया गया कि ‘भाजपा आरक्षण हटा देगी’, यह नैरेटिव बना। विपक्षी दल इस नैरेटिव को जनता के बीच स्थापित करने में कामयाब हो गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी वोट समाजवादी पार्टी को गए। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा करीब 50 प्रतिशत वोट शेयर तक पहुंच गई थी। लेकिन बीते चुनाव में पार्टी को करीब आठ प्रतिशत वोट शेयर में गिरावट झेलनी पड़ी। इतना ही नहीं, भाजपा की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक का मुद्दा भी काफी चर्चा में रहा। इस मुद्दे ने भाजपा को लोकसभा चुनाव में काफी नुकसान पहुंचाया। युवाओं के साथ-साथ उनके परिजनों के वोट भी भाजपा से दूर हुए। 

 

वहीं, समीक्षा रिपोर्ट में यह बात भी सामने आयी है कि यूपी में सरकारी अधिकारियों से कार्यकर्ताओं की नाराजगी काफी ज्यादा थी। अधिकारियों की मनमानी के कारण यूपी में कार्यकर्ता चुनाव के समय में उदासीन हो गए। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि सरकारी स्तर पर भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। इस कारण मोटिवेटेड कार्यकर्ता भी पार्टी से दूर हो गए। समीक्षा में यह भी कहा गया कि सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट से भर्ती और आउटसोर्सिंग की गई। इससे भी कार्यकर्ताओं और वोटरों में नाराजगी थी।

पार्टी सूत्रों की माने तो रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पहले ही अपने पत्ते साफ कर दिए थे। उम्मीदवारों की घोषणा करने में जल्दीबाजी दिखायी गयी। उम्मीदवारों की घोषणा के बाद विपक्षी दलों ने उनके काट खोजे। अपनी रणनीति को बेहतर किया। समीक्षा में कहा गया है कि टिकट वितरण में जल्दबाजी की गई और यह भी हार का कारण बनी। 15 पेज की रिपोर्ट में गिनाए गए कारणों में समर्थकों के नाम मतदाता सूची से हटाने को भी कारण माना गया है। समाजवादी पार्टी को पीडीए के वोट मिले। गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी का वोट सपा के पक्ष में बढ़ा। संविधान संशोधन के बयानों ने पिछड़ी जाति को भाजपा से दूर किया। अब भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की होने वाली बैठक में उत्तर प्रदेश की हार वाली समीक्षा रिपोर्ट पर चर्चा होगी। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय पदाधिकारियों की होने वाली बैठक में समीक्षा रिपोर्ट पर चर्चा के बाद संगठन में बदलाव का दौर शुरू हो जाएगा। 

समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार हार के कारण

 

1. प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक का मुद्दा।

 

2. ठाकुर मतदाता भाजपा से दूर होते चले गए। 

 

3. पिछड़ों में कुर्मी, कुशवाहा, शाक्य का भी झुकाव नहीं रहा। 

 

4. बीएलओ द्वारा बड़ी संख्या में मतदाता सूची से नाम हटाए गए।

 

5. सरकारी विभागों में संविदा कर्मियों की भर्ती और आउटसोर्सिंग का मुद्दा।

 

6. भाजपा के कार्यकर्ताओं में सरकारी अधिकारियों को लेकर असंतोष की भावना।

 

7. राज्य सरकार के प्रति भी थाने और तहसीलों को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी।

 

8. सरकारी अधिकारियों का भाजपा कार्यकर्ताओं को सहयोग नहीं। निचले स्तर पर पार्टी का विरोध।

 

9. अनुसूचित जातियों में पासी और वाल्मीकि मतदाता का झुकाव सपा-कांग्रेस की ओर चला गया। 

 

10. टिकट वितरण में जल्दबाजी की गई, जिसके कारण भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ।

 

11. संविधान संशोधन को लेकर भाजपा नेताओं की टिप्पणी भी बड़ा मुद्दा। विपक्ष का ‘आरक्षण हटा देंगे’ का नैरेटिव बना देना।

 

12. बसपा के प्रत्याशियों ने मुस्लिम व अन्य के वोट नही काटे, बल्कि जहां भाजपा समर्थक वर्गों के प्रत्याशी उतारे गए, वहां वोट काटने में सफल रहे।

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