पूर्वांचल की सियासत और अपराध की दुनिया में एक नाम जिसने कभी खौफ का पर्याय बना लिया था, वह था मेराज अहमद खान। गैंगस्टर मुख्तार अंसारी का बेहद करीबी यह शख्स ‘भाई मेराज’ के नाम से पहचाना जाने लगा था। लेकिन 14 मई 2021 की सुबह एक खबर ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी—चित्रकूट जेल में मेराज की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
जेल में मौत, साजिश पर रहस्य
चित्रकूट की जेल में उस दिन अंशु दीक्षित नामक एक खूंखार अपराधी ने पश्चिम यूपी के दो बड़े माफियाओं—मेराज अहमद खान और मुकीम काला—को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद उसने पांच अन्य कैदियों को बंधक बना लिया। लेकिन पुलिस की जवाबी कार्रवाई में अंशु भी मारा गया। मामला वहीं खत्म नहीं हुआ। अंशु की मौत के साथ ही वह रहस्य भी वहीं दफन हो गया कि आखिर इस दोहरे हत्याकांड की साजिश किसने रची थी? क्या वह महज जेल में आपसी रंजिश का परिणाम था या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक साजिश थी?
परिवार का आरोप: STF की थी भूमिका
मेराज की हत्या को चार साल बीत चुके हैं, लेकिन परिजन उसकी मौत को लेकर आज भी साजिश का आरोप लगा रहे हैं। परिवार का आरोप है कि यह हत्या अंशु दीक्षित ने अकेले नहीं की, वह तो एक मोहरा था, असली साजिशकार उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) थी। मेराज के भतीजे आदिल का दावा है कि परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष जांच दल (SIT) से निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए याचिका दाखिल कर रखी है। पुलिस की वर्तमान जांच पर उन्हें कोई भरोसा नहीं। उनका आरोप है कि हत्या किसी 'ऊंचे आदेश' पर हुई थी, जिसे सब जानते हैं पर कोई बोलता नहीं।
पूर्वांचल में जबरदस्त दबदबा, फिर गिरफ्तारी
गाजीपुर जिले के महेन गांव का मूल निवासी मेराज वाराणसी में अशोक विहार कॉलोनी में रह रहा था। वह एक दर्जन से ज्यादा आपराधिक मामलों में संलिप्त था। 3 अक्टूबर 2020 को वाराणसी पुलिस ने उसे नकली दस्तावेजों के आधार पर असलहे के लाइसेंस के नवीनीकरण के आरोप में जैतपुरा के नक्खीघाट क्षेत्र से गिरफ्तार किया था। इसके बाद प्रशासन ने 20 मार्च 2021 को मेराज को चित्रकूट जेल स्थानांतरित कर दिया, जहां दो महीने बाद उसकी हत्या कर दी गई।
माफिया से नेता बनने तक का सफर
मेराज का जीवन किसी क्राइम थ्रिलर से कम नहीं रहा। नब्बे के दशक में जब पूर्वांचल में मुन्ना बजरंगी और मुख्तार अंसारी जैसे नामों का खौफ था, मेराज धीरे-धीरे इस दुनिया का अहम हिस्सा बन गया। शुरूआत में उसने पुलिस के लिए मुखबिरी की, लेकिन जल्द ही वह मुन्ना बजरंगी के संपर्क में आ गया और फिर उसका सबसे भरोसेमंद मैनेजर बन गया। वह रंगदारी, वसूली, विवाद समाधान जैसे सभी कामों में माहिर था।
जब मलदहिया इलाके में अनिल राय की हत्या हुई तो पुलिस ने शक जताया कि मुखबिरी मेराज ने ही की थी। इसके बाद मुन्ना बजरंगी, मुख्तार अंसारी से जुड़ गया और उसी रास्ते मेराज भी मुख्तार का करीबी बन गया। जल्द ही वह मुख्तार का राजनीतिक और आपराधिक रणनीति का अहम हिस्सा बन गया।
मुख्तार गया जेल, मेराज बना मैदान का प्रबंधक
29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद पूर्वांचल में सत्ता और अपराध के समीकरण पूरी तरह बदल गए। मुख्तार अंसारी को जेल भेजा गया और उसके गिरोह के कई लोग फरार हो गए। इसी समय मेराज ने पूरे गिरोह की कमान अपने हाथ में ले ली। वह मुख्तार की ओर से जमीन के विवादों को सुलझाता, लोगों को धमकाता और सियासी गठजोड़ भी करता।
जेल से फोन कॉल्स, धमकी भरे संदेश और सुलह के संदेशों में मेराज का नाम आम हो गया था। लोग कहते थे, जो मेराज की नहीं सुनेगा, वह या तो जेल जाएगा या कब्र में। देखते ही देखते वह मुख़्तार का ‘राइट हैंड’ हो गया था।
गाड़ियों और स्टाइल का दीवाना था मेराज
मेराज को गाड़ियों का बड़ा शौक था। वह तीन मेहरून रंग की टाटा सफारी गाड़ियों के काफिले में चलता था, जिनके नंबर 2500 से खत्म होते थे। ये गाड़ियां उसकी पहचान बन चुकी थीं। रसूख इतना बढ़ा कि उसने 2003 में बसपा सुप्रीमो मायावती की मौजूदगी में वाराणसी के सारनाथ में आयोजित कार्यक्रम में बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ले ली। इससे उसकी सियासी पहचान और मजबूत हो गई।
परिवार आज भी डर में जी रहा
मेराज की हत्या के बाद वाराणसी जिला प्रशासन ने उसके परिजनों से सभी असलहे जमा करवा लिए और अब तक उनके लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया है। वरुणा पुल के पास स्थित परिवार की संपत्ति भी कुर्क कर दी गई है। परिवार आज भी यह आशंका लेकर जी रहा है कि कहीं किसी और सदस्य पर हमला न हो जाए।
मेराज के दोनों बेटे शहर से बाहर नौकरी करते हैं, लेकिन उनके परिजन लगातार मानसिक तनाव में हैं। आदिल का कहना है कि "चाचा की हत्या सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह एक सोची-समझी योजना थी, जिसे सत्ता के संरक्षण में अंजाम दिया गया।"