ओडीओपी प्रदर्शनी में झलकी आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर, हस्तशिल्पियों के हुनर को मिला मंच, 134 स्टालों में महिला उद्यमियों को मिली उद्यमिता की नई राह

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वाराणसी। रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में चल रहे तीन दिवसीय एमएसएमई सेवा पर्व-2025 का तीसरा और अंतिम  दिन हस्तशिल्प और लघु उद्योगों की रौनक से सराबोर है। “विरासत से विकास” की थीम पर आधारित इस आयोजन में ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट) योजना की झलक साफ नजर आ रही है। यहां लगाए गए 134 से अधिक स्टालों में पूर्वांचल और आसपास के जिलों के शिल्पकारों ने अपनी कला और उत्पादों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी में बनारसी साड़ियां, खादी, काष्ठ कला, लकड़ी के खिलौने, अचार-मुरब्बा, पूजा-पाठ की सामग्री और महिलाओं के श्रृंगार से जुड़े कई हस्तनिर्मित उत्पाद विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

 


प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण रहे वे स्टाल, जिनमें महिला उद्यमियों ने अपने उत्पादों के जरिए आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की। चिरईगांव से आई महिला समूह ने घर में बनाए गए अचार और मुरब्बों का स्टाल लगाया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। प्रदर्शनी में आए लोगों ने उत्पादों को देखकर न केवल सराहना की बल्कि उन्हें बनाने की प्रक्रिया और उनके विशेष गुणों के बारे में भी जानकारी हासिल की।

 


काशी विद्यापीठ की एमकॉम की छात्रा स्नेहा अग्रवाल ने वेस्ट मटेरियल को वेल्थ में बदलकर सबका ध्यान खींचा। उन्होंने बेकार पड़े कपड़ों और घरेलू सामान से बालों के बैंड, बैंगल्स, क्लचर और ईयर रिंग्स जैसे आइटम बनाए। स्नेहा ने बताया कि त्योहारों के मौसम में फैंसी कैंडिल्स की भी काफी डिमांड है और इस बार उन्हें अच्छे ऑर्डर मिले हैं। उनके इस प्रयास ने साबित किया कि थोड़ी रचनात्मकता और एमएसएमई का मंच मिल जाए तो छोटे उद्यम भी बड़े स्तर तक पहुंच सकते हैं।

 


प्रदर्शनी में बड़ी बाजार की रहने वाली प्रिया जायसवाल ने कॉस्मेटिक्स और डिजाइनर ज्वेलरी का स्टाल लगाया। उन्होंने बताया कि इन उत्पादों को वह खुद तैयार करती हैं और स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ रही हैं। उनकी डिजाइनर चूड़ियां और ईयर रिंग्स को लोगों ने काफी पसंद किया। वहीं महमूरगंज की अंजली जायसवाल ने रूद्राक्ष की मालाएं, धूपबत्ती, कपूर और पूजा-पाठ से जुड़ी सामग्री का स्टाल लगाया। अंजली ने बताया कि वह इस कार्य से लगभग 250 महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रही हैं और एमएसएमई के जरिए अच्छी आमदनी भी हो रही है।

 


प्रदर्शनी में पारंपरिक काष्ठ कला भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी। खोजवां के रामचंद्र सिंह ने लकड़ी के खिलौनों, तोरण और कैंडिल स्टैंड जैसी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई। त्योहारों के अवसर पर इनके उत्पादों की मांग काफी बढ़ जाती है। इसी तरह गाजीपुर के महादेव खादी ग्रामोद्योग संस्थान के मुकेश कुमार ने खादी के परिधानों और वस्त्रों को प्रदर्शित किया, जिन्हें लोगों ने उत्साह से खरीदा।

 


दूसरे दिन प्रदर्शनी में लोगों की भीड़ उमड़ी और कई उत्पादों की खरीददारी भी हुई। आगंतुकों ने खासकर हस्तनिर्मित वस्तुओं को देखकर उनकी बारीक कारीगरी की सराहना की और बनाने के तरीकों के बारे में भी उत्सुकता जताई। महिला उद्यमियों के स्टालों पर खरीदारों की भीड़ अधिक नजर आई।

 


एमएसएमई अधिकारियों ने भी प्रदर्शनी का दौरा कर शिल्पकारों और उद्यमियों का हौसला बढ़ाया। उनका कहना था कि इस प्रकार के आयोजन न केवल स्थानीय कारीगरों और उद्यमियों को बाजार से जोड़ते हैं बल्कि उन्हें वैश्विक पहचान भी दिलाते हैं।


कुल मिलाकर, रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर की इस प्रदर्शनी ने दिखाया कि कैसे परंपरागत कारीगरी और आधुनिक सोच के मेल से आत्मनिर्भर भारत की राह और मजबूत हो सकती है। यहां लगी ओडीओपी प्रदर्शनी ने एक ओर जहां विरासत को संरक्षित किया, वहीं दूसरी ओर नई पीढ़ी को उद्यमिता की ओर प्रेरित करने का काम भी किया। 

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