यदुकुल के कंधे पर रघुकुल का मिलन, बारिश में भी नहीं डिगी आस्था, काशी में राम-भरत मिलाप ने भिगो दिया हर दिल, 5 मिनट की लीला के लिए आते हैं 5 लाख श्रद्धालु

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वाराणसी। बनारस अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता है और यह शहर बार-बार साबित करता है कि समय और परिस्थितियां चाहे जैसी हों, यहां की परंपरा कभी नहीं टूटती। इसका सबसे जीवंत उदाहरण शुक्रवार को उस समय देखने को मिला जब सुबह से हो रही मूसलाधार बारिश के बावजूद 482 साल पुरानी राम-भरत मिलाप की लीला बड़े ही उत्साह और धूमधाम के साथ पूरी की गई। भींगे मौसम में भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। लाखों की भीड़ ने छाते लेकर और बारिश में भीगते हुए भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के मिलन का अद्भुत दृश्य देखा। जब भगवान श्रीराम अपने भाई भरत और शत्रुघ्न से गले मिले, तो वातावरण भावविभोर हो उठा और ‘जय श्रीराम’ के जयकारों से गूंज उठा।

 

राम-भरत मिलाप सिर्फ भगवान के भाइयों के मिलन का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह काशी की उस अनूठी परंपरा का हिस्सा भी है जिसे यदुवंशी समाज सदियों से निभा रहा है। हर साल यह समाज भगवान के रथ को कंधों पर उठाता है। लगभग 200 किलो से ज्यादा वजनी इस रथ को उठाने के लिए हजारों यदुवंशी युवक पारंपरिक पोशाक में आते हैं। लाल पगड़ी, सफेद बनियान और धोती पहनकर वे सज-धजकर रथ खींचते और उठाते हैं। रथ पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, माता सीता और हनुमान विराजमान रहते हैं और पूरे शहर का भ्रमण करते हैं।

 

5 मिनट की लीला देखने आते हैं लाखों श्रद्धालु

इस अनोखी 5 मिनट की लीला को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। कई श्रद्धालु इसे अपने जीवन का सौभाग्य मानते हैं। 55 साल से इस आयोजन का हिस्सा रहे लक्ष्मण प्रसाद यादव बताते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत 482 साल पहले मेघा भगत जी ने एक स्वप्न देखने के बाद की थी। उनके अनुसार, तुलसीदास जी के समय से चली आ रही इस लीला में माना जाता है कि स्वयं भगवान श्रीराम अपने भाइयों के साथ साक्षात दर्शन देने आते हैं। यही कारण है कि एक झलक पाने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं और बारिश भी उनकी आस्था के आगे छोटी पड़ जाती है।

 

कुंवर अनंत नारायण ने अर्पित की सोने की गिन्नी

राम-भरत मिलाप की इस ऐतिहासिक परंपरा में काशी नरेश का विशेष स्थान होता है। वर्षों से यह परंपरा रही है कि काशी नरेश इस अवसर पर हाथी पर सवार होकर आते हैं और भगवान श्रीराम को स्वर्ण गिन्नी भेंट करते हैं। इस बार बारिश के कारण काशी नरेश के बेटे कुंवर अनंतनारायण सिंह गाड़ी से पहुंचे। उन्होंने भगवान को सोने की गिन्नी अर्पित कर आशीर्वाद लिया।

 

भीगी गलियों में गूंजे जयकारे

 

जब भगवान श्रीराम और उनके भाइयों का मिलन हुआ, तो काशी की गलियां भक्ति और भावनाओं से सराबोर हो गईं। भीगते हुए श्रद्धालु लगातार भजन-कीर्तन और जयकारे लगाते रहे। रथयात्रा के दौरान शहर की सड़कों पर आस्था का ऐसा अद्भुत संगम देखने को मिला जिसने बारिश को भी उत्सव में बदल दिया।

 

हर साल जीवंत होती है आस्था

482 साल से चली आ रही यह परंपरा बताती है कि बनारस सिर्फ धार्मिक नगरी ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर और लोक आस्था का जीवंत उदाहरण भी है। इस बार बारिश ने आयोजन को भले ही चुनौती दी हो, लेकिन श्रद्धा और परंपरा की ताकत ने हर बाधा को पीछे छोड़ दिया। राम-भरत मिलाप की इस लीला ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि काशी की आत्मा उसकी परंपराओं और भक्तिभाव में बसी है।

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