मां अन्नपूर्णा के स्वर्ण दर्शन से महक उठी काशी, अन्न और समृद्धि की देवी के द्वार उमड़ी श्रद्धा, खजाने के रूप में लावा और सिक्कों का प्रसाद पा रहे भक्त

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वाराणसी। धनतेरस से अन्नकूट तक के पांच दिवसीय पर्व की शुरुआत के साथ ही काशी में मां अन्नपूर्णा के स्वर्ण रूप के दर्शन का शुभ अवसर आरंभ हो गया है। शनिवार भोर से ही भक्तों का सैलाब श्री अन्नपूर्णा मंदिर में उमड़ पड़ा। ऐसे दृश्य देखने को मिले, जब श्रद्धालु मां के खजाने का प्रसाद पाने के लिए 18 घंटे पहले ही कतारों में लग गए। आस्था और उत्साह का ऐसा संगम शायद ही कहीं और दिखाई दे, जैसा काशी के इस महापर्व पर नजर आ रहा है।

यह वही क्षण है, जिसका भक्तों को पूरे वर्ष इंतजार रहता है। क्योंकि मां अन्नपूर्णा के दर्शन साल में केवल एक बार, धनतेरस से लेकर अन्नकूट पर्व तक पांच दिनों के लिए ही होते हैं। इन दिनों काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में बने अस्थायी मार्ग से भक्त फर्स्ट फ्लोर पर विराजमान मां के दर्शन कर उनके चरणों में नतमस्तक हो रहे हैं। मंदिर से बाहर निकलते समय हर श्रद्धालु को मां के खजाने के प्रतीक स्वरूप लावा और सिक्के का प्रसाद दिया जा रहा है।

 

 

महंत शंकर पुरी के अनुसार, धनतेरस के दिन भक्तों में 11 लाख से अधिक सिक्के और करीब 11 क्विंटल लावा बांटे जाएंगे। यह खजाना प्रसाद के रूप में मिलने वाला सिक्का हर घर के भंडार में समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। विश्वास है कि इसे घर में रखने से अन्न और धन की कभी कमी नहीं होती।

भोर की मंगला आरती और मां का दिव्य श्रृंगार

शनिवार की भोर में जैसे ही मंदिर के पट खुले, मंगला आरती की गूंज से पूरा क्षेत्र आलोकित हो उठा। मां अन्नपूर्णा को अर्पित भोग और स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित रूप का दर्शन कर भक्त भावविभोर हो उठे।
महंत काशी मिश्रा ने बताया कि मां का रंग जवापुष्प के समान लालिमा लिए हुए है। कमलासन पर विराजमान मां अन्नपूर्णा के बाएं हाथ में अन्न से भरा मणिक्य पात्र और दाहिने हाथ में रत्नजटित कलछुल है। उनके समीप चांदी की प्रतिमा में भगवान विश्वनाथ झोली फैलाए खड़े हैं, जिन्हें मां अन्नदान दे रही हैं। मां के दाईं ओर देवी लक्ष्मी और बाईं ओर भूदेवी विराजमान हैं, जो संसार के पालन-पोषण की दिव्य व्यवस्था का प्रतीक हैं।

 

अंबानी परिवार ने भेजी मां के लिए श्रृंगार सामग्री

इस बार विशेष रूप से देश के उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार की ओर से मां अन्नपूर्णा के लिए खास श्रृंगार सामग्री भेजी गई है। इसमें कीमती आभूषण, बनारसी रेशमी साड़ी, चूड़ियां, हार, बिंदी और कंगन शामिल हैं। यह श्रृंगार दीपावली की पूर्व संध्या पर मां को अर्पित किया गया। साथ ही, अंबानी परिवार के सभी सदस्योंमुकेश, आकाश, अनंत, श्लोका और राधिका के नामों वाला दीपावली ग्रीटिंग कार्ड भी भेजा गया है।

अन्नपूर्णातीनों लोकों की अन्नमाता

पुराणों के अनुसार, मां अन्नपूर्णा को तीनों लोकों की अन्नदायिनी माता कहा गया है। जब काशी में अकाल पड़ा, तब भगवान शिव ने मां से भिक्षा मांगी थी। उस समय मां ने आशीष दिया था कि काशी में अब कोई भूखा नहीं सोएगा।यही कारण है कि यह मंदिर आज भी समृद्धि और अन्न के अधिष्ठान का प्रतीक माना जाता है।

 

कथा यह भी बताती है कि देवी पार्वती ने भगवान शंकर से विवाह के बाद काशी में निवास की इच्छा जताई थी। जब वे काशी पहुंचे तो यह नगरी श्मशान भूमि थी। तब शिव-पार्वती ने विचार कर यह नियम बनाया कि कलियुग में यह भूमि अन्नपूर्णा की पुरीकहलाएगी। इसी कारण आज यह देवीपीठ काशी का प्रधान शक्ति स्थल माना जाता है।

श्रीयंत्र के आकार में निर्मित है भारत के एकमात्र मंदिर

अन्नपूर्णा मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जो श्रीयंत्र के आकार में निर्मित है। यहां प्रतिदिन हजारों भक्त मां की आठ परिक्रमाएं करते हैं। स्कंदपुराणके काशीखंडमें उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और मां भवानी उनकी गृहस्थी संभालती हैं। अतः काशीवासियों के अन्न और सुख-समृद्धि का भार भी इन्हीं पर है।
प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भक्त अन्नपूर्णा व्रत रखकर मां की उपासना करते हैं और उन्हें अन्न अधिष्ठात्रि देवीके रूप में पूजते हैं।

महंत शंकर पुरी बताते हैं कि इन चार विशेष दिनों में मां का खजाना भक्तों के बीच वितरित होता है। इसमें लावा और 1, 2, 5 10 रुपये के सिक्के शामिल होते हैं। यह प्रसाद घर में रखने से धन-धान्य की वृद्धि और परिवार में सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाबदेशभर से पहुंचे भक्त

मां अन्नपूर्णा के स्वर्ण रूप के दर्शन के लिए न केवल काशीवासी, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंचे हैं।
महंत रामेश्वर पुरी ने बताया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, ओडिशा, मुंबई, दिल्ली, गुजरात और मद्रास से बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे हैं। इस दौरान मंदिर में सुरक्षा और व्यवस्था के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं।

हर वर्ष की तरह इस बार भी भक्तों का उत्साह देखने लायक है। कोई सिक्के को मां की कृपा मान रहा है, तो कोई लावा को समृद्धि का प्रतीक बताकर घर ले जा रहा है। काशी के गलियारों में इस समय दीपों की रौशनी के साथ मां के जयकारों की ध्वनि गूंज रही हैअन्नपूर्णे सदापूर्णे, शंकरप्राणवल्लभे। 

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