लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की तैयारी अब जोर पकड़ने लगी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने 2026 की शुरुआत में संभावित पंचायत चुनावों को लेकर कवायद तेज कर दी है। माना जा रहा है कि जनवरी-फरवरी 2026 में यह चुनाव संपन्न हो सकते हैं, जो 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले एक तरह से ‘राजनीतिक सेमीफाइनल’ साबित होंगे।
प्रदेश में कुल 57,691 ग्राम पंचायतें, 826 विकास खंड और 75 जिला पंचायतें हैं। इस व्यापक चुनावी प्रक्रिया के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने तकनीकी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। हाल ही में आयोग ने 67 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए करीब 1.27 लाख मतपेटियों की आपूर्ति हेतु ई-टेंडर जारी किया है। ये मतपेटियां विशेष ग्रेड की सीआर-1 शीट से बनाई जाएंगी और इनकी आपूर्ति चार महीनों के भीतर सुनिश्चित की जानी है।
उप निर्वाचन आयुक्त संत कुमार ने बताया कि यह चुनाव एक बड़ा और संवेदनशील आयोजन है, जिसमें पारदर्शिता और सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसलिए मतपेटियों की गुणवत्ता, समयबद्ध आपूर्ति और सुरक्षा को लेकर सख्त मानदंड तय किए गए हैं। केवल उन्हीं कंपनियों को बोली में हिस्सा लेने की अनुमति दी जाएगी, जिन्हें सरकार या सार्वजनिक उपक्रमों को पिछले पांच वर्षों में कम से कम 15 करोड़ रुपये की आपूर्ति का अनुभव हो। इसके अलावा उनका वार्षिक कारोबार कम से कम 3 करोड़ रुपये होना आवश्यक है।
अगर पिछली बार के पंचायत चुनावों की बात करें तो अप्रैल-मई 2021 में संपन्न हुए इस चुनाव में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के विभिन्न स्तरों पर चुनाव हुए थे। हालांकि ये चुनाव पार्टी चिह्न के बिना होते हैं, मगर राजनीतिक दल अपने समर्थकों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से पूरी रणनीति बनाते हैं।
2021 के आंकड़ों के मुताबिक, जिला पंचायत सदस्यों की 3,047 सीटों में सबसे ज्यादा जीत निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली थी। निर्दलीयों ने 944 सीटों पर कब्जा जमाया था। वहीं भाजपा ने 768, सपा ने 759, बसपा ने 319, कांग्रेस ने 125, रालोद ने 69 और आम आदमी पार्टी ने 64 सीटें हासिल की थीं।
हालांकि जब जिला पंचायत अध्यक्ष पद की बात आई, तो भाजपा ने निर्णायक बढ़त बनाई। जुलाई 2021 में हुए अध्यक्ष पद के चुनाव में भाजपा ने 75 में से 67 जिलों में जीत दर्ज की, जबकि सपा को महज 5 और अन्य को 3 सीटें मिलीं। यह चुनाव पार्टी चिह्न पर हुआ था, जिससे राजनीतिक प्रभाव सीधे तौर पर नजर आया।
वहीं गांव स्तर पर सरगर्मियां अभी से नजर आने लगी हैं। आगामी प्रधान चुनाव को लेकर गांवों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। कई संभावित उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी की तैयारी भी शुरू कर दी है। दीवारों पर पोस्टर, गांव में बैठकों और प्रचार के शुरुआती संकेतों से माहौल गर्म होने लगा है। हालांकि सभी की नजर ग्राम पंचायतों में आरक्षण की घोषणा पर टिकी है, जिससे यह तय होगा कि किस वर्ग या जाति को कौन सा पद मिलेगा।
इसके साथ ही बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य पदों के लिए भी प्रचार प्रारंभ हो गया है। राजनीतिक माहौल धीरे-धीरे रंग पकड़ रहा है और गांव से लेकर जिला स्तर तक आगामी चुनावों की गूंज सुनाई देने लगी है।